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युक्त होती है। यदि उन दोनों (लग्न और चन्द्रमा)
पर शुभग्रहकी दृष्टि हो तो वह सुशीलतारूप आभूषणसे
विभूषित होती है। यदि वे दोनों (लग्न तथा चपा)
विषमराशि और विषम नवमांशमें हों तो वह स्त्री
पुरुषसदृश आकार और स्वभाववाली होती है। यदि
उन दोनोंपर पापग्रहकी दृष्टि हो तो स्त्री पापस्वभाववाली
और गुणहीना होती है ॥२९८ ३ ॥
लग्र ओर चन्द्रमाके आश्रित मड्रलकी राशि
(मेष-वृश्चिक)-में यदि मड्भलका त्रिंशांश हो तो
वह स्त्री बाल्यावस्था ही दुषट-स्वभाववाली होती
है । शनिका त्रिंशांश हो तो दासी होती है। गुरुका
त्रिंशांश हो तो सच्चरित्रा, बुधका त्रिंशांश हो तो
मायावती (धूर्त) और शुक्रका त्रिंशांश हो तो वह
उतावलौ होतौ है । शुक्रराशि (वृष-तुला) -मेँ स्थित
लग्र या चन्द्रमामें मङ्खलका त्रिंशांश हो तो नारी बुरे
स्वभाववाली, शनिका त्रिंशांश हो तो पुनर्भूः (दूसरा
पति करनेवाली), गुरुका त्रिंशांश हो तो गुणवती,
बुधका त्रिंशांश हो तो कलाओंको जाननेवाली और
शुक्रका त्रिंशांश हो तो लोकमें विख्यात होती है।
बुधराशि (मिथुन-कन्या)-में स्थित लग्न या चन्द्रमाममें
यदि मड़लका त्रिंशांश हो तो मायावती, शनिका हो
तो हीजड़ी, गुरुका हो तो पतिव्रता, बुधका हो तो
गुणवती और शुक्रका हो तो चञ्चला होती है। चन्द्र-
राशि (कर्क)-में स्थित लग्न या चन्द्रमा यदि
मङ्गलका त्रिंशंश हो तो नारी स्वेच्छाचारिणौ,
शनिका हो तो पतिके लिये घातक, गुरुका हो तो
गुणवती, बुधका हो तो शिल्पकला जाननेवाली और
शुक्रका त्रंशांश हो तो नीच स्वभाववाली होती है ।
सिंहराशिस्थ लग्न या चन्द्रमामें यदि मङ्गलका
त्रिंशांश हो तो पुरुषके समान आचरण करनेवाली,
शनिका हो तो कुलटा स्वभाववाली, गुरुका हो तो
संक्षिप्त नारदपुराण
रानी, बुधका हो तो पुरुषसदृश बुद्धिवाली और
शुक्रका त्रिशांश हो तो अगम्यगामिनी होती है।
गुरुराशि (धनु-मीन)-स्थित लग्र या चन्द्रमामें
मङ्गलका त्रिंशांश हो तो नारी गुणवती, शनिका हो
तो भोगोंमें अल्प आसक्तिवाली, गुरुका हो तो
गुणवती, बुधका हो तो ज्ञानवती और शुक्रका
त्रिंशंश हो तो पतिब्रता होती है। शनिराशि
(मकर-कुम्भ) स्थित लग्न या चन्द्रमामें मङ्गलका
त्रिंशांश हो तो स्त्री दासी, शनिका हो तो नीच
पुरुषमें आसक्त, गुरुका हो तो पतिब्रता, बुधका हो
तो दुष्ट-स्वभाववाली और शुक्रका त्रिंशांश हो तो
संतान-हीना होती है। इस प्रकार लग्र और
चन्द्राश्नित राशियोंके फल ग्रहोंके बलके अनुसार
न्यून या अधिक समझने चाहिये॥ २९९ -{ -३०४॥
शुक्र और शनि ये दोनों परस्पर नवमांशमें
(शुक्रके नवमांशमें शनि और शनिके नवमांशमें
शुक्र) हों अथवा शुक्रराशि (वृष-तुला) लग्ममें
कुम्भका नवमांश हो तो इन दोनों योगोंमें जन्म
लेनेवाली स्त्री कामाग्रिसे संतप्त हो स्त्रियोंसे भी
क्रीड़ा करती है॥३०५॥
( पतिभाव-- ) स्त्रीके जन्मलग्रसे सप्तम भावमें
कोई ग्रह नहीं हो तो उसका पति कुत्सित होता है।
सप्तम स्थान निर्बल हो और उसपर शुभग्रहकी दृष्टि
नहीं हो तो उस स्त्रीका पति नपुंसक होता है। ससम
स्थानमें बुध और शनि हों तो भी पति नपुंसक होता
है। यदि सप्तम भावमें चरराशि हो तो उसका पति
परदेशवासी होता है। सप्तम भावमें सूर्य हो तो उस
स्त्रीको पति त्याग देता है। मड्भगल हो तो वह स्त्री
बालविधवा होती है। शनि सप्तम भावमें पापग्रहसे
दृष्ट हो तो वह स्त्री कन्या (अविवाहिता) रहकर ही
वृद्धावस्थाको प्राप्त होती है॥३०६-३०७॥
१. "पुनभ कहनेसे यह सिद्ध हुआ कि उसका जन्म शूद्रकुलं होता है; क्योंकि शूद्रजातिमें स्त्रीके
पुनर्विवाहकी प्रथा है।