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मोहित हो गयीं । क्षिवके दर्शनसे इर्भको प्राप्त
हो प्रेणपुर्ण झटयलएली वे गारियं अदेश्चप्की
उष मूर्तिको अपने मनोमन्दिरमें चिठाकर इस
प्रकार मोलों ।
कहा--अहो !
पुरवासिनियेनिं
हिमवानके नगरमे निवास करनेवाले
त्योगोंके नेत्र आज सफल हो गये । जिस-
जिस व्यक्तिने इस दिव्य रूपका दर्शन किया
निष्फल हो जाता। इस उत्तम जोड़ीको
भमिल्ताकर ज्रक्ताजीने खहूत अच्छा कार्य किया
है। इससे सबके संभी कार्य सार्थक हो
गये। तपस्थाके निना मनुष्योंके लिये
चाम्भुका दर्शन दुर्लभ है। भगवान् शंकरके
दर्शानमात्रसे ही सब स्ओोग कृतार्थं हो गये ।
जो-जो सर्वेश्वर गिरिजापति दकरका दर्शन
करते हैं, वे सारे पुरुष शष्ठ हैं और हम सारी
है, निश्चय ही उसका जन्य सार्थक हो गया स्त्रियाँ भी धन्य हैं।
है। उसीका जन्म सफल है और उसीकी ब्रह्माजी कहते हैं--नारद ! ऐसी बात
सारी क्रियाएँ सफल हैं, जिसने सम्पूर्ण कहकर उन स्त्रियोंने चन्दन और अक्षतसे
पापोका नाश करनेवाले साक्षात् झिवका किवक्रा पूजन क्रिया और यदे आदरसे
दर्डान किया है। पार्वतीने शिव्के लिये जो उनके ऊपर खोलोंकी वर्षा की। ते सय
तपं किया है, उसके द्वारा उन्होंने अपना स्त्रियाँ सेनाके साथ उत्सुक होकर खड़ी रहीं
स्वपा नोर, स्वदि कर लिया। शिखको ॐत चेका तथा णिशरिशिजके भूरिभाग्यकी
पतिके रूपमे पाकर ये शिवा धन्य और सराहना करती रही । पुने ! स्ियोके भुखसे
कृतकृत्य हो गयी । यदि विधाता दिचिा ओर यैसी शुभ बातें सुनकर विष्णु आदि सब
शिवकी इस युगत्छ जोड़ीको सानन्द एक- देवता ओके साथ भगवान् दिवको यड़ा हर्ष
दूसरेसे मिल्ता न देते तो उनका सारा परिश्रम हुआ । (अध्याय ४५)
॥
मेनाद्वारा इारपर भगवान् शिवका परिछन, उनके रूपको देखकर संतोषका
अनुभव, अन्यान्य युवतियोद्वारा वरकी प्रशंसा, पार्वतीका अम्बिका-
पूजनके लिये बाहर निकलना तथा देवताओं ओर भगवान्
शिका उनके सुन्दर रूपको देखकर प्रसन्न होना
ब्रह्माजी कहते हैं--नारद ! तदनन्तर ऋषिपलियों तथा अन्य स्तरियोंके साथ
अगवा वद प्रसरन्ति छे आपने गर्णो, आतस्पुर्तक स्प आधधी। चहं आकर
सथ्स्त देवताओं तथा अन्य त्त्रोगोकि साथ मेनाने सम्पूर्ण देवताओंसे सेकतित गिरिजापति
कौतृहलपूर्वक गिरिराज हिमयानक्के धाममें महेश्वर शंकरको, जो द्रारपर उपस्थित थे; बड़े
गये । हिपाचलकी श्रेष्ठ पत्नी येना भी उन प्यारसे देखा। उनकी अज्जञक्रान्ति मनोहर
स्त्रियोंके साथ घरके भीतर गयीं और त्षम्पाके समान थी। उनके एक मुख और
जाप्मुकी आरती उतारनेके लिये हाथमें तीन नेत्र थे। सुस्वारविन्दपर
दीपकॉसे सजी हुईं थाली लेकर सभी मुसकानकी छटा छा रही थी। चे रत्न और