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वैण्णयषण्ड-धीमयोध्या-माहात्म्य ] # अयोध्याक्षेत्रके अन्य विविध तीर्थोका यर्णन #

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उनके खब मनोर्पोे पूर्ण करूँगा । यह स्थान आजे

इस शृ्यीपर तुम्दोरे ही मामले बिर्यात होगा । ओ यहाँ

स्नान करेगा, बड अपनी सम्पूर्ण कामनाओँको प्राप्त कर लेगा ।

इस प्रकार वरदान देकर भगवान्‌ खूर्यदेव अन्तर्पान हो गये ।

राजाने भगवान्‌ सूर्यके ारीरमे प्रकट दुई दिव्य सूर्यमूर्ति

केकर वदां उसको स्थापित किया और स्वयं ए उसकी पूजा

की । अतः राजा घोषके नामपर उस तीर्थका नाम घोषा्क-

कुष्ड हुआ ।

अयोध्याधे्रके अन्य विविध तीथोंका वर्णन तथा विष्के मुखसे विभीषण आदिका

अयोध्या-माहात्म्य-अवण

~~

घोषा्कती से पश्चिम दिशामें रतिकुण्ड नामक

तीर्थ है, ओ शव पापको दरनेवाला दे । उससे पश्चिम

कुसुमायुघकुण्ड ह, ओ समस्त मनोरयोंकी सिद्धिके लिये

प्रमिद्ध है। जो पति-पत्नी इन दोनों कुष्डोंमें खान करते ट) वे

रति और कामदेयके तमान सुन्दर दोते हैं । कुसुमायुधकुण्डसे

पश्चिम दिम मन्त्रेश्वरतीर्थ है । उसमें श्लान करके जो

भगवान्‌ मन्तरेश्वरका दर्शन करता है, यह परम गतिकों पाता

है। उसके उत्तर कुमुद और कमछोसे सुशोभित एक सुन्दर

सरोयर है, जिसमें किये हुए शान अर दान अनेक प्रकारके

कष देनेवाले हैं । चैत्र शुक्ला चतुर्दशीकों वद्की वार्पिक

यात्रा उत्तम मानी गयी है | मन्त्रश्रकी महिमाहझ्म कोई भी

भरीर्भोति वर्णन नहीं कर सकता । सुगन्धित पुष्य, धूप,

चन्दन आदि उपचारोंसे उनका प्रयननपू क पूजन करना

चाहिये । गे सम्पूर्ण मनाओं और प्रयोजनोंकों सिद्ध

करनेवाले हैं। उनके पूजनसे मुक्ति हो जाती है। वहीं पूर्व

दिद्यामें महारक्षनामक तीर्यं है; जो सब ती्यामि उत्तम है।

उसमे छान, दान और आह्ृण-पूजन करनेसे समस्त

कामनाओंकी सिद्धि दती है । मादौ कृष्णा चर्र्दशीको

चकौ वार्षिक यात्रा होती है। उससे नैकऋत्यफोणमें दुर्भर

शरोवर है, जष्टं शरान करनेसे मनुष्य स्वर्गलोकक़ों प्रात करता

है । म्दारक और दुर्भर दोनों तीथोंमे भक्तिमावमे खान

करके नीलकणष्ठ महादेवजीका गन्ध-पुष्य भादिके द्वारा

मछीभाँति पूजन करना चाहिये । पार्वतीसदित भगवाम्‌

शिका ध्यान करके टनुप्य सत्र कामनाओंको शीघ्र पाकर सदैव

दिवस्टोफर्म निषास करता दै। भादों कृष्णा अलुर्दशीकों

ओ मनुष्य अद्धासहित पिषिपूर्यक शिवपूजा तथा आह्ाणपूज

विशेषरूफते करता टै, वह दिवल्यकम निवास करता दे ।

भगवान्‌ विध्णु और शिय उसके ऊपर बहुत प्रसन्न रोते रै,

जिन. स्मरणमाज्रसे मतुप्य सब प्यपोमे मुक्त दो जाता है |

दुर्भरस्थानसे इंशान कोणमें महाविद्या नामक मदान्‌

तीर्थ टै। उसके दर्शनमात्रसे मलुष्योंके शाथमे छव सिद्धियाँ

स्कन्द पुराण १७--

उपस्कित हो जाती हैं। महाकियाके आगे शरोवरमे ज्ञान

करके जो महाविद्याका अ्द्धा और भक्तिसे दर्शन कस्ता

द, भ परम शतिको पास हाता दे। कहीं सुप्रखिद सिद्धपीठ

है। चां उत्तम भक्तिते पूजा करनी चाहिये । जो पवित्र

मनुष्य यद्दां भरद्धासे शिय। शक्ति, गनपति तपा भगवान्‌ बिष्णुके

मन्‍्त्रकों प्रकाग्नण्षित द्वोकर जप्ता दै, उसको सदा सिद्धि

प्रात होती है। आश्विन शुक्ल पक्के नवरात्रमे वहाँकी यात्रा

करदे मनुष्य सब पापोसे मुक्त हो जाता है । उसके रूमीप

दी क्षीरकुण्डमें दुग्धेश्वर नामसे प्रसिद्ध भगवान्‌ शिव

विराजमान हैं। उस श्चौरसङ्कम कुण्डका सीताजीने बड़ा सरकार

किया है, इसलिये सीताकु*्डके नामसे भी उसकी प्रसिद्धि हुई

है। सीताकुण्डमे क्ञान करके शीता, राम, लक्ष्मण और

दु ग्थेश्वरना थका पूजन करके मनुष्य सर मनोरथोंको पा छेता ।

ज्येष्ठ मासकी चतुर्दशीकों बढ़ोंकी बाद यात्रा सम्पन्न होती

है। वहाँ पूर्व दिशामें सुग्रीवद्वारा निर्मित एक उत्तम तीर्य

है, जो तपोनिधितीर्यफे नामत ब्रिज़्यात है । उसमें क्ञान, दान

करके भ्रीरामचम्द्रजीका यकपूर्वक पूजन करनेसे मनुष्य

सम्पूर्ण कामनाओंफी प्राप्त कर छेता है । उससे पश्चिम

हनुमत्कुण्ड दे और दनुम्कुण्डके पश्चिम विभीज्नकुण्ड है |

उन दोनोंमें कान, दान और भीरामचनद्रजीका पूजन फरनेसे

मनुष्य सव कामनाओंकों पामे कर छेता है ।

पक समय विभीषण आदिने मुनिवर वश्षिप्ठले

पूछा--तपोनिएे | विद्यान्‌ पुरुष अवोध्याका

जो सर्वोत्तम माहात्म्य बतलाते हैं; उसका अर्णन कीजिये |

बशिष्ठजीले कहा--यह अयोध्या नामक उत्तम तीर्यं

अत्यन्त गुप्त है । यह खदा सभी प्राणियोंके मोक्षका साधक

है। इसमें विदध और देवता भी वेण्यवजतका आभय लेकर

नाना प्रकारके वेष घारण डिये किप्युकोझकी अभिलापासे

नित्य नियास करते हैं | नाना प्रकारके वृक्षोंसे व्यापन एवं

अनेकानेक विद्यो काठरबसे युक्त इस उत्तम तीर्पे हे

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