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# चारणं वज सर्वेशं सृत्युंजयमुमापतिम् #
[ संस्िघ्र स्कन्दपुराण
मार्गशीर्षमास-माहात्म्य
मार्गशीर्ष मासमें प्रात/ख्लानकी महिमा, स्लानविधि, विलक-धारण, गोपीचन्दनका माहातम्य,
तुलसीमालाका महत्व, भगवत्पूजनका विधान और श्वह्ककी महिमा
- न~
खतजी कहते हैं--
देवकीनन्दन॑ कृष्ण. जसदालन्वकारकस ।
आक्तिमुक्तिपद॑ बन्दे माधवं भक्तवस्सकम्् ॥
भ्वो सम्पूर्ण जगत्कों आनन्द प्रदान करनेवाले तथा
भोग ओर मोक्ष देनेताके हैं, उन लक्ष्मीपति भक्तवत्सल
देबद्ीनन्दन भ्रीकृष्णाकों मैं प्रणाम करता हूँ।!
इबेतद्वीपमें देषाभिदेष भगवान् रमाकान्त सुखसे
बिराजमान ये | उस समय अझ्माजीने उन्हें नमस्कार करके
धूछा--इुपीकेश | आप सम्पूर्ण जगन्को धारण करनेयाले
हैं। आपके नामोंका अबण और कीर्तन परम पविन्न है |
आपने पहले यह फा है कि “मासानां मार्गशीषों 5दम!--महरीनो मे
मैं मार्गशीर्ष हूँ । अतः उस महीनेका माहात्प क्या दै, यह
मैं यथार्थरूपसे जानना चाहता हूँ ।'
अीभगवान् बोस्छे--त्रक्षत् ! जो गोहं पुष्य करने-
सि मेरे भक्त हैँ; उन्हें मार्गशीर्ष मासफा भत अवश्य करना
वाये, क्योंकि यद् मेरी प्राप्ति करानेवाला है । मार्गीं
मास मुझे सदैय प्रिय है । जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर
मार्यशीषमें विधिपूर्वक स्नान करता दै, उसपर खन्दुशट होकर
मैं अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूँ । इस विषयमे
इस इतिदासका उदाहरण दिया करते हैं--इस शृ्वीपर
महाश्मा नन्दगोप सर्यत्र विख्यात थे । उनके रमभीय गोकुल-
में घस्रो गोपकन्याः थीं। उन सबका चित्त मेरे स्वरूपम
हग गया । तव मैंने उन्हें मार्गशीर्षं स्नान करनेकी सलाद
दी । उन्होंने उस समय प्रतिदिन प्रातःकाल विधिपूर्यफ
स्नान और पूजन किया, इविष्यात् भोजन क्षिया और
अपने श्देवको नमस्कार किया । इस प्रद्चर विधिपूर्वक
मार्गशीर्पअतका पाटन करनेसे मैं उनपर बहुत प्रसन्न दुआ
और वरदानके रूपमें मैने अपने आपको दी उनके अर्पित कर
दिवा । अतः सथ डोगेंझो मार्गशीषत्रतदी दिभिका पाटन
करना चाहिये ।
राभिके अन्तर्मे शयनसे उठकर विधिपू्ंक आचमन
झूरके अपने गुरूफों नमस्कार करें तथा आलस्य छोड़कर
मेरा चिन्तन करे । भक्तिपूर्वरु सहस्तनामोंका पाठ शयं
कीर्तन करे | फिर मौन होकर गोपे धरार आय और निधि.
पूर्वक्क महू मूजका त्याग करके हाय मुँह घोवे, यथोदित
रीतिसे कुछ करे तथा चुद होकर दन्तधावनूर्वक स्नान
करे । द्नानकी विधि इस प्रकार है--ठुरूसीके जड़की मिह्ठी-
को उसके पक्रके साथ केकर मूछमन्त्र ( ॐ नमो नारायणाय )
अथवा गायत्रीमल्जके द्वारा अभिमन्त्रित करे | मन्ते ही
उख सूलिकाको अपने अज्ञॉमें लगाव ओर जलूमें प्रवेश
करके अपमर्षण स्नान करे । विद्वान् पुरुष उक्त अश्क्षर
मंन्जसे दी तीर्यकी कस्यना करें। “ॐ नमो नारायणाय' इस
मन्त्रको ही मूलमन्त्र कह्य गया है । स्नान करते ख्मय
निम्नाङ्धित सन्त्रे गज्नाजीफी प्रार्थना करे ।
विष्णुपादप्रसूताशि. बैष्णबी. विष्णुदेवता ।
श्राषि तस्वमधादस्सादाजस्ममरणान्तिकात् ॥
धाज्ने ! तुम भगवान् विप्णुके चरणेमि प्रदर हुई हे,