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के४०

# चारणं वज सर्वेशं सृत्युंजयमुमापतिम्‌ #

[ संस्िघ्र स्कन्दपुराण

मार्गशीर्षमास-माहात्म्य

मार्गशीर्ष मासमें प्रात/ख्लानकी महिमा, स्लानविधि, विलक-धारण, गोपीचन्दनका माहातम्य,

तुलसीमालाका महत्व, भगवत्पूजनका विधान और श्वह्ककी महिमा

- न~

खतजी कहते हैं--

देवकीनन्दन॑ कृष्ण. जसदालन्वकारकस ।

आक्तिमुक्तिपद॑ बन्दे माधवं भक्तवस्सकम््‌ ॥

भ्वो सम्पूर्ण जगत्‌कों आनन्द प्रदान करनेवाले तथा

भोग ओर मोक्ष देनेताके हैं, उन लक्ष्मीपति भक्तवत्सल

देबद्ीनन्दन भ्रीकृष्णाकों मैं प्रणाम करता हूँ।!

इबेतद्वीपमें देषाभिदेष भगवान्‌ रमाकान्त सुखसे

बिराजमान ये | उस समय अझ्माजीने उन्हें नमस्कार करके

धूछा--इुपीकेश | आप सम्पूर्ण जगन्‌को धारण करनेयाले

हैं। आपके नामोंका अबण और कीर्तन परम पविन्न है |

आपने पहले यह फा है कि “मासानां मार्गशीषों 5दम!--महरीनो मे

मैं मार्गशीर्ष हूँ । अतः उस महीनेका माहात्प क्या दै, यह

मैं यथार्थरूपसे जानना चाहता हूँ ।'

अीभगवान्‌ बोस्छे--त्रक्षत्‌ ! जो गोहं पुष्य करने-

सि मेरे भक्त हैँ; उन्हें मार्गशीर्ष मासफा भत अवश्य करना

वाये, क्योंकि यद्‌ मेरी प्राप्ति करानेवाला है । मार्गीं

मास मुझे सदैय प्रिय है । जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर

मार्यशीषमें विधिपूर्वक स्नान करता दै, उसपर खन्दुशट होकर

मैं अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूँ । इस विषयमे

इस इतिदासका उदाहरण दिया करते हैं--इस शृ्वीपर

महाश्मा नन्दगोप सर्यत्र विख्यात थे । उनके रमभीय गोकुल-

में घस्रो गोपकन्याः थीं। उन सबका चित्त मेरे स्वरूपम

हग गया । तव मैंने उन्हें मार्गशीर्षं स्नान करनेकी सलाद

दी । उन्होंने उस समय प्रतिदिन प्रातःकाल विधिपूर्यफ

स्नान और पूजन किया, इविष्यात् भोजन क्षिया और

अपने श्देवको नमस्कार किया । इस प्रद्चर विधिपूर्वक

मार्गशीर्पअतका पाटन करनेसे मैं उनपर बहुत प्रसन्न दुआ

और वरदानके रूपमें मैने अपने आपको दी उनके अर्पित कर

दिवा । अतः सथ डोगेंझो मार्गशीषत्रतदी दिभिका पाटन

करना चाहिये ।

राभिके अन्तर्मे शयनसे उठकर विधिपू्ंक आचमन

झूरके अपने गुरूफों नमस्कार करें तथा आलस्य छोड़कर

मेरा चिन्तन करे । भक्तिपूर्वरु सहस्तनामोंका पाठ शयं

कीर्तन करे | फिर मौन होकर गोपे धरार आय और निधि.

पूर्वक्क महू मूजका त्याग करके हाय मुँह घोवे, यथोदित

रीतिसे कुछ करे तथा चुद होकर दन्तधावनूर्वक स्नान

करे । द्नानकी विधि इस प्रकार है--ठुरूसीके जड़की मिह्ठी-

को उसके पक्रके साथ केकर मूछमन्त्र ( ॐ नमो नारायणाय )

अथवा गायत्रीमल्जके द्वारा अभिमन्त्रित करे | मन्ते ही

उख सूलिकाको अपने अज्ञॉमें लगाव ओर जलूमें प्रवेश

करके अपमर्षण स्नान करे । विद्वान्‌ पुरुष उक्त अश्क्षर

मंन्जसे दी तीर्यकी कस्यना करें। “ॐ नमो नारायणाय' इस

मन्त्रको ही मूलमन्त्र कह्य गया है । स्नान करते ख्मय

निम्नाङ्धित सन्त्रे गज्नाजीफी प्रार्थना करे ।

विष्णुपादप्रसूताशि. बैष्णबी. विष्णुदेवता ।

श्राषि तस्वमधादस्सादाजस्ममरणान्तिकात्‌ ॥

धाज्ने ! तुम भगवान्‌ विप्णुके चरणेमि प्रदर हुई हे,

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