३४४ ] [ ब्रह्माण्ड पुराण
ने सुना तो बड़ा ही अधिक कोप किया था। इसी बीच में दुष्ट मन्सत्रियों से
भन््त्रणां करके चण्ड भण्ड ने देण अक्षौहिणी से संयुत-- महस् ओज वाले
कुंटिलाक्ष को ललिता की सेना के विनाश करने के लिये भेजा था ।६६-६७॥
जिस रीति से पीछे की ओर कल-कल ध्वनि को सुनकर आगे वाली सेना ते
आ सके इसी प्रकार से कुटिलश्नि ने महान् संग्राम [किया था ।६<। इसी
तरह से पीछे ओर आगे दोनों ओर था वह युद्ध हुआ छर और वह् युद्ध
शक्तियो के सैन्य में महान् तुमुल हुआ था ।६६। रात्रि में सत्त्व वाले दैत्पेन्द्र
थे जो तिमित से समावृत थे और उद्धतों ने कण्टक में णिचिलता को आप्त
कर दिया था ।७०। |
विषंगेण दुराशेन धमनादूयैश्चमूवरंः।
चमुभिश्च प्रणहिता न्यपतज्छत्रकोटयः ।\७१
ताभिदेत्यास्वमालाभिश्चक्रराजरथो वृतः ।
बकावलीनिविडतः शेलराज इवावभौ ।५२
आक्रांतपवंणाधस्ताद्िषगेण दुरात्मना ।
मुक्त एक: शरो देव्यास्तालवृ तमचर्णयत् ॥७३
अथ तेनावग्याहितेन संभ्रान्ते शक्तिमण्डले ।
कामेश्वरीमुखा नित्या महांतं क्रोधमायय् : 4७४
ईषदभूक्टिसंसक्त श्रीदेव्या वदनांबुजम् ।
अवलोक्य भृशोहिस्ना नित्या दध्रतिश्रमम्् 4७५
नित्या कालस्वरूपिण्य: प्रत्येकं तिधिविग्रहाः ।
क्रोधमुद्गीक्ष्य सम्राज्या युद्धाय दधुरुद्यममम् 4७६
प्रणिपत्य च तां देवीं महाराजीं महोदयाम् ।
ऊचुर्वाचमकांडोत्वां युद्धकौतुकगद्गदाम् ।७७
बुरे आशय वाले विषंग ने धमनादि श्रेष्ठ सेनाप तियों के और सेनाओं
के द्वारा प्रणहित शत्रु की कोटियाँ निपतित कर दी थीं ।७६{। उन देंत्यों के
अस्त्रों की मालाओं से वह् चक्रराज रथ ढक गया था और वह बक्रों की
पंक्तियों से ढके हुए शैल राज की ही भाँति जोभित हो गया था ।५२।
आक्रान्त पर्व के नीचे दुरात्मा विषंग के द्वारा छोड़े हुए एक वाण ने देवी के
तालवृन्त का चूर्ण कर दिया था ।७३। इसके पश्चात् अब्याहत उसके द्वारा