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३५० कै श्री लिंग पुराण की

बार आहुति प्रदान करे इस प्रकार उपवास किये हुए

भक्त शिष्य को वस्त्र ओर पगड़ी आदि धारण कराकर

नेत्रों को बाँधकर प्रवेश करावे। तीन परिक्रमा करे।

रुद्राध्याय या प्रणव से परिक्रमा करनी चाहिए। शिव

ध्यान में परायण होकर देव देव के ऊपर पुष्प चढ़ावे।

जिस मन्त्र के कहने पर शिव पर पुष्य गिरे वह मन्त्र उसे

सिद्धि हो जाता है। शिव के जल से स्पर्श करके अघोर

मन्त्र से भस्म लगावे। शिष्य की मूर्धा पर गन्थ का लेप न

करे। प्रवेश करने के लिए पश्चिम का द्वार सर्व प्रकार

श्रेष्ठ है और क्षत्रियों के लिए तो विशेष श्रेष्ठ है। प्रवेश

कराने पर शिष्य के नेत्रं का आवरण खोलकर मण्डल

का दर्शन करावे। तब उसे कुशा के आसन पर बैठाकर

तत्व शुद्धि करे।

इसके बाद दक्षिण मूर्तिं शिव की प्रतिष्ठा करके

"अंग ' मन्त्र से हवन करे । शान्त्यातीत भगवान ईशान

का १०८ बार मन्त्र से हवन करना चाहिए । हवन के

बाद में सोने, चांदी या ताँबे के पात्रों में तीर्थ जल भर

करके रुद्र का धार्मिक रीति से संहिता मन्त्र से या

रुद्राध्याय से शिष्य का अभिषेक करे। वह शिष्य भी

शिव के आगे अथवा गुरु के आगे या अग्नि के आगे

दीक्षा को प्राप्त हुआ निम्न प्रकार प्रतिज्ञा करे कि--

प्राणों का परित्याग श्रेष्ठ है परन्तु शिव का पूजन

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