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५० ऋग्वेद संहिता भाग - २

प्रसिद्ध नीतिज्ञ इन्द्रदेव ने वृत्रासुर को रोका । कार्यकुशल इन्द्रदेव ने शत्रुवध की इच्छा करके मायावौ असुरो

को मारा । उन्होंने वन में छिपे स्कन्धविहीन असुर को नष्ट करके अन्धकार में छिपायो गयी गौ ओं (किरणों) को

प्रकट किया ॥३ ॥

२७७१. इन्द्र: स्वर्षा जनयन्नहानि जिगायोशिग्भिः पृतना अभिष्टि: ।

प्रारोचयन्मनवे केतुमह्वामविन्दज्ज्योतिर्बृहते रणाय ॥४ ॥

स्वर्ग-सुख-प्रेरक इद्धदेव ने दिनों को उत्पन्न करके युद्धाभिलाषी मरुतो के साथ शत्रु सेना का पराभव कर

उन्हें जीता । तदनन्तर मनुष्यों के लिए दिनों के प्रज्ञापक (बोधकः) सूर्यदेव को प्रकाशित किया । उन्होंने महान्‌ युद्धो

में विजय प्राप्ति के निमित्त दिव्य ज्योति (तेजस्विता) को प्राप्त किया ॥४ ॥

२७७२. इन्द्रस्तुजो बर्हणा आ विवेश नृवद्॒धानो नर्या पुरूणि।

अचेतयद्धिय इमा जति प्रेम॑ वर्णमतिरच्छुक्रमासाम्‌ ॥५ ॥

विपुलं सामरर्थ्यों को धारण करके नेतृत्व-कर्ता की भाँति इद्धदेव ने अवरो धक शत्रु सेना के मध्य प्रविष्ट होकर

उसे चिन्न-भिन्न किया । उन्होने स्तुतिकर्ताओं के लिए उषा को चैतन्य किया और उनके शुभ वर्ण की दीप्ति को

वर्द्धित किया ॥५ ॥

२७७३. महो महानि पनयन्त्यस्येद््रस्य कर्म सुकृता पुरूणि।

वृजनेन वृजिनान्त्सं पिपेष मायाभिर्दस्यूँरमिभूत्योजा: ॥६ ॥

स्तोतागण महान्‌ पराक्रमी इन्दरदेव के श्रेष्ठ कर्मों का गुणगान करते हैं । वे इन्द्रदेव अपनी सापयो से शत्रुओं

के पराभव-कर्ता है । उन्होने अपने बल से युक्त माया द्वारा बलवान्‌ दस्युओं को पूरी तरह से नष्ट किया ॥६ ॥

२७७४. युथेन्द्रो महा वरिवश्चकार देवेभ्यः सत्पतिश्चर्षणिप्रा: ।

विवस्वतः सदने अस्य तानि विप्रा उक्थेभिः कवयो गृणन्ति ॥७ ॥

देव वृत्तियों के संगठक, अधिपति और मनुष्यों को शक्ति प्रदान करके उनको इच्छापूर्ति करने वाले इन्द्रदेव

ने अपनी महत्ता से वुद्धो में शत्रुओं को परास्त किया । उनका धन प्राप्त करके स्तोताओं को प्रदान किया । बुद्धिमान्‌

स्तोतागण यजम्ान के घर में इन्द्रदेव के उन श्रेष्ठ कर्मों की चर्चा एवं प्रशंसा करते हैं ॥७ ॥

२७७५. सत्रासाहं वरेण्यं सहोदां ससवांसं स्वरपश्च देवी: ।

ससान यः पृथिवीं द्यामुतेमामिद््रं मदन्त्यनु धीरणासः ॥८ ॥

स्तोताजन शत्रु-विजेता, वरणौय, बल- प्रदाता, स्वगं - सुख और दीप्तिमान्‌ जल के अधिपति इन्द्रदेव की उत्तम

स्तुतियों से वन्दना करते हैं, उन्होंने इस चयुलोक और पृथ्व लोक को अपने ऐश्वर्यों के बल पर धारण किया ॥८ ॥

२७७६. ससानात्याँ उत सूर्य॑ ससानेन्द्र: ससान पुरुभोजसं गाम्‌।

हिरण्ययमुत भोगं ससान हत्वी दस्यून्प्रार्य वर्णमावत्‌ ॥९ ॥

इन्द्रदेव ने अत्यो (लघ जाने वाले- अश्वो ) का दान किया । सूर्य एवं पर्याप्त भोजन प्रदान करनेवाली गौ ओं

(किरणों ) का दान किया । स्वर्णिम अलंकारो एवं भोग्य पदार्थों का दान किया । दस्युओ (दष्ट ) को मारकर आर्यो

(सज्जनो ) कौ रक्षा की ॥९ ॥

२७७७. इन्द्र ओषधीरसनोदहानि वनस्पतीरसनोदन्तरिक्षम्‌।

बिभेद वलं नुनुदे विवाचोऽथाभवदमिताभिक्रतूनाप्‌ ॥९० ॥

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