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सदा योगाभ्यासमें तत्पर रहते थे । अपने कर्तव्यके पालन प्ेतोने कहा--हम भूख और प्याससे पीड़ित हो

और स्वाध्यायमें लगे रहना उनका नित्यका नियम था। सर्वदा महान्‌ दुःखसे घिरे रहते हैं । हमारा ज्ञान और विवेक

इस प्रकार संसारकों जीतनेकी इच्छसे वै सदा शुभ नष्ट हो गया है, हम सभी अचेत हो रहे हैं। हमें इतना भी

कर्मका अनुष्ठान किया करते थे । ब्राह्मणदेवताको वनम ज्ञान नहीं है कि कौन दिशा किस ओर है। दिज्ञाओंके

निवास करते अनेकों वर्ष व्यतीत हो गये। एक बार बीचकी अवात्तर दिशाओंको भी नहीं पहचानते।

उनका ऐसा विचार हुआ कि मैं तीर्थ-यात्रा करूँ, तीथॉकि आकाश, पृथ्वी तथा स्वर्गका भी हमें ज्ञान नहीं है । यह तो

पावन जलसे अपने इारीरको पवित्र बनाऊँ। ऐसा दुःखकी बात हुई । सुख इतना ही है कि सूर्योदय देखकर

सोचकर उन्होंने सूर्योदयके समय शुद्ध चित्तसे पुष्कर हमें प्रभात-सा प्रतीत हो रहा है। हममेंसे एकका नाम

तीर्थमें स्नान किया और गायत्रीका जप तथा नमस्कार पर्युषित है, दूसरेका नाम सूचीमुख है, तीसरेका नाम

करके यात्राके लिये चल पड़े । जाते-जाते एक ज॑गलके शीघ्रग, चौथेका रोधक और पाँचवेंका लेखक है।

बीच कण्टकाकीर्ण भूमिमें, जहाँ न पानी था न वृक्ष,

उन्होंने अपने सामने पाँच पुरुषोंको खड़े देखा, जो बड़े

ही भयङ्कर थे। उन विकट आकार तथा पापपूर्ण दृष्टि-

ब्राह्मणने पूछा--तुम्हारे नाम कैसे पड़ गये ?

क्या कारण है, जिससे तुमल्ओेगोंको ये नाम प्राप्त हुए हैं ?

ज्रेतॉमेंसे एकने कहा--मैं सदा स्वादिष्ठ भोजन

वाले अत्यन्त घोर प्रेतॉंको देखकर उनके हृदयमें कुछ किया करता था और ब्राह्मणोंको पर्युषित (वासी) अन्न

भयका सञार हो आया; फिर भी वे निश्चलभावसे खड़े देता था; इसी हेतुको लेकर मेरा नाम पर्युषित पड़ा है।

रहे । यद्यपि उनका चित्त भयसे उद्ठिग्न हो रहा था, तथापि मेरे इस साथीने अन्न आदिके. अभिलाषी बहुत-से

उन्होंने धैर्य धारण करके मधुर शब्दोंमें पूछा--

'विकराल मुखवाले प्राणियो ! तुमल्लेग कौन हो?

किसके द्वारा कौन-सा ऐसा कर्म बन गया है, जिससे

तुम्हें इस विकृत रूपकी प्राप्ति हुई है ?'

ब्राह्मणोंकी हिंसा की है, इसलिये इसका नाम सूचीमुख

पड़ा है। यह तीसरा प्रेत भूखे ब्राह्मणके याचना करनेपर

भी [उसे कुछ देनेके भयसे] शीघ्रतापूर्वक वहाँसे चला

गया था; इसलिये इसका नाम शीघ्रग हो गया। यह

चौथा प्रेत ब्राह्मणोंको देनेके भयसे उद्विग्र होकर सदा

अपने घरपर ही स्वादिष्ठ॒ भोजन क्रिया करता था;

इसलिये यह रोधक कहलाता है तथा हमलोगोमें सबसे

बड़ा पापी जो यह पाँचवाँ प्रेत है, यह याचना करनेपर

चुपचाप खड़ा रहता था या धरती कुरेदने लगता था,

इसलिये इसका नाम लेंख़क पड़ गया। लेखक बड़ी

कठिनाईसे चलता है । गेघकको सिर नीचा करके चलना

पड़ता है। शीघ्रग पगु हो गया है। सूची (हिसा

करनेवाले) का सके समान मुँह हो गया है तथा मुझ

पर्युषितकी गर्दन लम्बी और पेट बड़ा हो गया है। अपने

पापके प्रभावसे मेरा अण्डकोष भी बढ़ गया है तथा दोनों

ओट भी म्ये होनेके कारण कटक गये हैं। यही हमारे

प्रतयोनिमे आनका वृत्तान्त है, जो सब मैंने तुम्हें बता

दिया। यदि तुम्हारी इच्छा हो तो कुछ और भी पूछो ।

पूछनेपर उस बातको भी बतायेंगे।

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