खुत्तचिरुकाप
दौर्भगेय किमारोदुमिच्छेरड्े महीपते:
बाल बालिशबुद्धित्वादभाग्याजाठरोद्धव:॥ ७
अस्मिन् सिंहासने स्थातुं सुकृतं किं त्वया कृतम्॥ ८
यदि स्यात् सुकृतं तत्किं दुभग्योदरगोऽभवः ।
अनेनैवानुमानेन युध्यस्व स्वल्पपुण्यताम्॥ ९
भूत्वा राजकुमारोऽपि नालंकु्यां ममोदरम्।
सुकुश्षिजममुं पश्य त्वमुत्तममनुत्तमम्॥ १०
अधिजानु धराजान्योमनिन परिवृंहितम्।
चूत उवाच
मध्येराजसभं बालस्तयेति परिभर्तिसित:॥ ११
निपतनेत्रवाष्पाम्युरधर्यात् किंचित्र चोक्तवान्।
उचितं नोचितं किंचिप्नोचिवान् सोऽपि पार्थिव: ॥ १२
नियन्त्रित महिष्यश्च तस्याः सौभधाग्यगौरवात्।
विसर्जितसभालोकं शोकं संहत्य चेष्टितैः ।। १३
शैशवैः स शिशुर्नत्वा नृपं स्वसदनं ययौ ।
सूनीतिनींतिनिलयमवलोक्याथ बालकम्॥ १४
मुखलक्ष्प्यैव चाज़ासीद् ध्रुवं राज्ञापमानितम्।
अध दृषा सुनीतिं तु रहोऽन्तःपुरवासिनीम् ॥ ९५
आलिङ्खघ् दीर्घं निःश्वस्य मुक्तकण्ठं रुरोद ह।
सान्त्वयित्वा सुनीतिस्तं वदनं परिपार्ख्यं च॥ १६
दुकूलाञ्चलसम्पकैर्वीग्य तं मृदटुपाणिना।
पप्रच्छ तनयं माता वद रोदनकारणम्॥ १७
विद्यमाने नरपतौ शिशो केनापमानितः।
ध्र उकाच
सम्पृच्छे जननि त्वाहं सम्यक् शंस ममाग्रतः ॥ १८
भायत्विऽपि च सापान्ये कथं सा सुरुचिः प्रिया ।
कथं न भवती मातः प्रिया क्षितिपतेरसि॥ १९
ण ऋण०० कमल मल
{ अध्याय ३९
सुरुचि बोली--अभागिनोके बच्चे! क्या तू भी
महाराजकी गोदमें चढ़ना चाहता है ? बालक ! मूर्खतावश
ही ऐसी चेष्टा कर रहा है। तू इसके योग्य कदापि नहीं
है; क्योकि तू एक भाग्यहीना स्त्रीके गर्भे पैदा हुआ है।
बता तो सही, तूने इस सिंहासनपर बैठनेके लिये कौन-
सा पुण्यकर्म किया है? यदि पुण्य हो किया होता तो
क्या अभागिनीके गर्भसे जन्म लेता? राजकुमार होनेपर
भी तू मेरे उदरकी शोभा नहीं बढ़ा सका है। इसी बातसे
जान ले कि तेरा पुण्य बहुत कम है। उत्तम कोखसे पैदा
हुआ है-कुमार “उत्तम' जो सर्वश्रेष्ठ है; देखो, यह
कितने सम्मानके साथ पृथ्यौनाय महाराजके दोनों घुटनोंपर
चैठा है॥ ७- १०१५,॥
सूतजी कहते हैं--राजसभाके ओच सुरुचिकरे द्वारा
इस प्रकार झिड़के जानेपर बालक भ्रुवकौ आँखोंसे अश्र
बिन्दु झरने लगे; किंतु चह धैर्यपूर्वक कुछ भौ = बोला।
इधर राजा भी रानोके सौभाग्य-गौरवसे आबद्ध हो,
उसका कार्य उचित था या अनुचित, कुछ भो न कह
सके। जब सभासद्गण चिद हुए, तन अपनी शैशलदोधित
चेष्टाओंसे शोककों दबाकर वह बालक राजाकों प्रणाम
करके अपने चरको गधा॥ ११--१३५,॥
सुनौतिने अपने नौतिके खजाने बालककों देखकर
उसके मुखकी कान्तिसे हो जान लिया कि श्रुवका
राजाके द्वारा अपमान किया गया है। माता सुनोशिकों
अन्तःपुरके एकान्त स्थाने देखकर धुव अपने दुःखके
आवेगको न रोक सका। बह माताके गलेसे लगकर
खलम्यो ससि खोचता हुआ फूट-फूटकर रोने लगा।
सुनौतिने उसे सान्त्वना देकर कोमल हाथसे उसका मुख
चोंछा और सादीके अहलसे हवा करती हुईं माता अपने
लालसे पूछने लगो--' बेटा! अपने रोनेका कारण बताओ।
राजाके रहते हुए किसने तुम्हारा अपमान किया
है ?'॥ १४--१७/, ॥
ध्रुव बोला--माँ! मैं तुमसे एक यात पूछता हूँ, मेरे
आगे तुम ठीक-ठोक यताओ॥ जैसे सुरुचि राजाकी
धर्मपत्नी है, पैसे हो तुम भी हो; फिर उन्हें सुरुचि ही क्यों
प्यारी है? माता, तुम उन नरेशकों क्यों प्रिय नहों हो?