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है। मण्डलाकार सिर होनेपर व्यक्ति गौ आदि प्राणियॉसे

सम्पन्न होते हैं। घटाकार मूर्द्धाभागके होनेपर मनुष्य पापमें

अभिरुचि रखनेवाला तथा धनहीन होता है।

काले-काले घुँघराले, स्निग्ध, एक छिद्रमें एक-एक

उत्पन्न, अभिन्न अग्रभागवाले, अत्यधिक, न छोटे न बड़े,

सुन्दर केरशोषाले राजा होते हैं। एक छिद्॒में अनेक

बालवाले, विषम, स्थूलाग्र तथा कपिलवर्णके केशंसि युक्त

पुरुष निर्धन होते हैं। अत्यन्त कुटिल, सघन एवं काले

बालवाले भी निर्धन होते हैं।

मनुष्यके जो अङ्ग अतिजय रूक्ष, शिराओंसे व्याप्त

तथा मांसरहित होते हैं, वे सभी अशुभ हँ । यदि वे अङ्ग

इसके विपरीत होते हैं तो उन्हें शुभ मानना चाहिये।

मानवशरीरे तीन अङ्गं विज्ञाल और तीन अङ्ग

गम्भीर, पाँच अङ्ग दीर्घं तथा सूक्ष्म, छः अद्ग उन्नत, चार

हस्व एवं सात अङ्ग रक्तवण्कि होनेपर वह राजा होता है।

नाभि, स्वर तथा सत्व (स्वधाव) \-ये तीन गम्भीर

होते चाहिये । ललाट, मुख तथा वक्षःस्थल विशाल, नेत्र,

कक्षा (कख), नासिका तथा कृकाटिका अर्थात्‌ गरदनका शटता

उठा हुआ भाग, सिर और गरदनका जोड़-हइन छःको

उन्नत होना चाहिये, ऐसा होनेपर पनुष्य राजा होता है । जंघा,

ग्रीवा, लिङ्ग तथा पृष्ठभाग- ये चार अङ्ग हस्व होने चाहिये ।

कटहल, तालु, अधर और नख--ये चार रक्ताभ होने

चाहिये। नेत्रान्‍्तभाग चरणतल, जिह्वा और दोनों ओष्ठट-ये

पाँच सूक्ष्म होने चाहिये। दाँत, अँगुल, पर्व, नख, केश और

त्वचा-ये पाँच अङ्गं दीर्घ होनेपर शुभकारी हैं। दोनों

स्तनोंका मध्यभाग, दोनों भुजाएँ, दाँत, नेत्र और नासिकाका

भी दीर्घ होना शुभ है।

इस प्रकार मनुष्योंका लक्षण कहकर अब स्त्रियॉंका

लक्षण कह रहा हूँ।

रानीके दोनों चरण स्निग्ध, समान पदतलवाले, ताप्नवर्णकी

आभासे सुशोभित नखोंसे युक्त, सघन अंगुलिर्योवाले तथा

उन्नत अप्रभागवाले होते हैं। ऐसी स्थ्रीकों प्राप्तकर मनुष्य

राजा बन जाता है।

गृढ़ गुल्फ-प्रदेशसे युक्त पद्मपत्रके समान चरणतल

शुभ होते हैं। जिसके चरणतलोंमें पसीना नहीं छूटता है

और वे कोमल होते हैं, उनमें मत्स्य, अंकुश, ध्वज, वद्ध,

पद्म तथा हलका चिट्ट हो तो वह रानी होती है। इन

लक्षणोंसे रहित चरणवाली स्त्री दासी होती है। स्त्रियॉकौ

रोमरहित, सुन्दर, श्िराविहीन, गोल-गोल जंघाएँ शुभ हैं।

सन्थिस्थान तथा दोनों जानु समान होने चाहिये, ऐसा शुभ

होता है। गजशुण्डके सदृश, रोमरहित तथा समानं भागवाले

दोनों ऊरु श्रेष्ठ माने जाते हैं।

विस्तीर्ण, मांसल, गम्भीर, विशाल तथा दक्षिणावर्त

नाभि तथा मध्यभागमें त्रिवलियाँ श्रेष्ठ होती हैं। स्त्रियोंके

रोमरहित, विशाल, भरे हुए, सघत एवं समान भागवाले

कठोर स्तन-प्रदेश शुभ हैं। रोमरहित, शङ्खके आकारवाली

सुन्दर ग्रीवा प्रशस्त होती है। अरुणाभ अधरोष्ठवाला तथा

वर्चुलाकार मांसल भरा हुआ मुख श्रेष्ठ होता है। कुन्द-

पुष्यके समान दन्तपंक्ति तथा कोयलकी भाँति वाणी शुभ

होती है, जो सदैव दाक्षिण्य भावसे परिपूर्ण रहती है, उसमें

नहीं होती, अपितु हंसोंके समान मधुर शब्दोंका

प्रयोग करके वह दूसरोंको सुख प्रदान करती है, वहीं स्त्री

श्रेष्ठ होती है। स्त्रियोंकी नासिका और नासिका- छिद्र समान

होना मनोहर और सङ्गलदायी होता है।

स्वियेकि जीलकमलके समान नेत्र अच्छे होते हैं।

बालचन्द्रके सदृश् भौंहोंका होना शुभ है, किंतु उनका मोटा

होना अच्छा नहीं है। उनका मस्तक अर्द्धचन्द्रके समान

सुन्दर, समतल तथा रोमविहीत होना शुभ है।

सुन्दर, समान, मांसल एवं कोमल कान श्रेष्ठ होते हैं।

स्त्रियॉंके चिकने, नौलवर्णवाले, मृदु और घुँघाले केश

परशस्त माने गये हैं। उनका सम आकारवाला सिर शुभ होता

है। चरणतल अधवा करतलमें अश्च, हस्ति, श्री, वृक्ष, यूप,

बाण, यव, तोमर, ध्वज, चामर, माला, पर्वत, कुण्डल,

वेदी, शद्ध, छत्र, पद्म, स्वस्तिक, रथ तथा अङ्कुश आदि

चिह्वाली स्त्रियाँ राजवल्लभा होती हैं।

स्तियोकि मांसल मणिबन्धवाले तथा कमलदलके समान

३-किरागर्जुजीय १२। ३९ के अनुसर " सत्व ' का अथं स्वधाव धो होता है ।

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