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क्या होगी । अहो ! संसारम पुण्यके ही बरसे उत्तम

पुत्रकी प्राप्ति होती है । मुझे पाँच पुत्र प्राप्त हुए हैं, जिनका

हृदय विदल है तथा जिनमें एक-से-एक बढ़कर है।

मेरे सभी पुत्र यज्ञ करनेवाले, पुण्यात्मा, तपस्वी, तेजस्वी

और पराक्रमी हैं।'

इस प्रकार माताके कहनेपर पुत्रौको बड़ा हर्ष हुआ

और वे अपनी माताको प्रणाम करके बोले--'माँ !

अच्छे माता-पिताकी प्राप्ति बड़े पुण्यसे होती है। तुम

सदा पुण्य कर्म करती रहती हो । हमारे बड़े भाग्य थे, जो

तुम हमें माताके रूपे प्राप्त हुईं, जिनके गर्भमें आकर

हमल्मेग उत्तम पुण्योंसे वृद्धिको प्राप्त हुए हैं। हमारी यही

अभिलाषा है कि प्रत्येक जन्ममे तुम्हीं हमारी माता और

ये ही हमारे पिता हों।'

पिता बोले--पुत्रो ! तुमल्लेग मुझसे कोई परम

उत्तम और पुण्यदायक वरदान माँगो। मेरे सन्तुष्ट होनेपर

तुमलोग अक्षय लोकॉका उपभोग कर सकते हो।

पुत्रोंने कहा--पिताजी ! यदि आप हमपर प्रसन्न

हैं और वर देना चाहते हैं तो हमें भगवान्‌ श्रीविष्णुके

गोल्म्रेकधाममें भेज दीजिये, जहाँ किसी प्रकारकी चिन्ता

और व्याधि नहीं फटकने पाती ।

पिता बोले--पुत्रो ! तुमल्लेग सर्वथा निष्पाप हो;

इसलिये मेरे प्रसाद, तपस्या और इस पितृभक्तिके बलसे

सूतजी कहते हैं--भगवान्‌ श्रीविष्णुका

गोलोकधाम तमसे पे परम प्रकाशरूप है पूर्वोक्त चारों

ब्राह्मण जब उस लोकम चले गये, तब महाप्राज्ञ

दिवदा्मनि अपने छोटे पुत्रसे कहा--“महामते !

सोमदार्मन्‌ ! तुम पिताकी भक्तिमें रत हो। मैं इस समय

तुम्हें यह अमृतका घड़ा दे रहा हूँ; तुम सदा इसकी रक्षा

करना। मैं पत्नीके साथ तीर्थयात्रा करने जाऊँगा।' यह

सुनकर सोमझर्माने कहा--“महाभाग ! ऐसा ही होगा।'

बुद्धिमान्‌ शिवह्ञर्मा सोमदामकि हाथमें वह घड़ा देकर

वहाँसे चल दिये और दस वर्षौतक निरन्तर तपस्यामें लगे

+ सोमशर्माकी पितृ-भक्ति [१

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वैष्णवधामकों जाओ ।

महर्षि दिवदामकरि यह उत्तम वचन कहते ही

भगवान्‌ श्रीविष्णु अपने हाथोंमें राङ्ख, चक्र, गदा और

पद्म धारण किये गरुड़पर सवार हो वहाँ आ पहुँचे और

पुत्रॉंसहित शिथशर्मासे बारेबार कहने लगे--'विप्रवर !

पुत्रोंसहित तुमने भक्तिके बलसे मुझे अपने बशमें कर

लिया है। अतः इन पुण्यात्मा पुत्रों तथा पतिके साथ

रहनेकी इच्छावाली इस पुण्यमयी पत्रीको साथ लेकर

तुम मेरे परमधामको चलो ।' ॥

हिवदामनि कहा-- भगवन्‌ ! ये मेरे चारों पुत्र ही

इस समय परम उत्तम वैष्णवधाममें चलें । मैं पत्नीके साथ

अभी भूलोके ही कुछ काल व्यतीत करना चाहता हूँ।

मेरे साथ मेरा कनिष्ठ पुत्र सोमशार्मा भी रहेगा।

सत्यभाषी महर्षि शिवशर्माके यों कहनेपर देवेश्वर

भगवान्‌ श्रीविष्णुने उनके चार पुत्रोंसे कहा--'तुमलोग

दाह और प्रलूयसे रहित मोक्षदायक गोत्तेकधामको

चलो ।' भगवानके इतना कहते ही उन चारों सत्यतेजस्वी

ब्राह्मणोंका तत्काल विष्णुके समान रूप हो गया, उनके

झरीरका इयामवर्ण इन्द्र नीरूमणिके समान शोभा पाने

लगा । उनके हाथोंमें शाङ्खं, चक्र, गदा और पद्य सुशोभित

होने छगे। वे विष्णुरूपधारी महान्‌ तेजस्वी द्विज

पितृभक्तिके प्रभावसे विष्णुधामको प्राप्त हो गये । , ..

रहे । धर्मात्मा सोमशर्मा दिन-राते आलस्य छोड़कर रस

अमृ त-कुम्भकी रक्षा करते रहे । दस वर्षोकि पश्चात्‌

पहायदास्वी शिवशर्मा पुनः लौटकर वहाँ आये । ये

मायाका प्रयोग करके भार्यासहित कोढ़ी बन गये । जैसे

वे स्वयं कुष्ठरोगसे पीडित थे, उसी प्रकार उनकी स्त्री भी

थी। दोनो ही मौसके पिण्डकी भाँति त्याग देनेयोग्य

दिखायी देते थे । वे धीरचितत ब्राह्मण महात्मा सोमदार्माकि

समीप आये । वहाँ पधारे हुए माता-पिताको सर्वथा

दुःखसे पीड़ित देख महायदास्वी सोमशर्माको बड़ी दया

आयी । भक्तिसे उनका मस्तक झुक गया। वे उन दोनोके

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