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* आपस्तम्यतीर्धं, शुक्लतीर्थं और श्रीविष्णुतीर्थकी पिपा * २९१

आपस्तम्बतीर्थ, शुक्लतीर्थं और श्रीविष्णुतीर्थकी महिमा

ब्रह्माजी कहते हैं--आपस्तम्बतीर्थ तीनों लोकमि | एक हौ है । उसे ही परब्रह्म कहते हैं। गुण और

विख्यात है। वह स्मरण करनेमात्रसे समस्त | कर्मके भेदसे एककी ही अनेक रूपोंसे अभिव्यक्ति

पापराशिका विध्वंस करनेमें समर्थ है । आपस्तम्ब | होती है । लोकोंका उपकार करनेके लिये एक ही

एक मुनि थे। वे परम बुद्धिमान्‌ और महायशस्वी | ब्रह्मके तीन रूप हो जाते है । जो इस परमतत्त्वको

थे। उनकी पल्लीका नाम अक्षसूत्रा था, वह | जानता है, वहौ विद्वान्‌ है; दूसरा नहीं । जो इन

पातित्रत-धर्मका पालन करनेवाली धी। मुनिके | तीनोंमें भेद बतलाता है, उसे लिङ्गभेदौ कहते है ।

एक पुत्र थे, जो "करकी ' नामसे विख्यात थे। वे | उसके लिये कोई प्रायश्चित्त नहीं है।* तीनों

बड़े विद्वान्‌ ओर तत्त्ववेत्ता थे। एक दिन उनके | देवताओंके रूप एक-दूसरेसे भिन्न ओर पृथक्‌-

आश्रमपर मुनिश्रेष्ठ अगस्त्यजी आये । शिष्योंसहित | पृथक्‌ है । सम्पूर्ण साकार रूपे पृथक्‌ -पृथक्‌

मुनीश्वर आपस्तम्बने अगस्त्यजीका पूजन किया | वेद प्रमाण हैं। जो निराकार तत्त्व है, वह एक है ।

और इस प्रकार पूछा--' मुनिवर ! तीनों देवताओंमें | वह उन तोनोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट माना गया दै ।

कौन पूज्य है? अनादि और अनन्त कौन है तथा आपस्तम्ब बोले-- इससे मैं किसी निर्णयपर

बेदोंमें किसका यशोगान किया गया है? महामुने ! | नहीं पहुँच सका। इसमें जो रहस्यकौ बात हो,

यही मेरा संशय है, इसे दूर करनेके लिये आप | उसे विचारकर बतलाइये।

कुछ उपदेश करें।' अगस्त्यजीने कह्म--यद्यपि इन देवताओंमें परस्पर

अगस्त्यजी बोले-- धर्म, अर्थ, काम और कोई भेद नहीं है तथापि सुखस्वरूप शिवसे ही

मोक्षकी सिद्धिम शब्द प्रमाण बतलाया जाता है । | सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त होती है । मुने ! पराभक्तिके

उसमें भी वैदिक शब्द सबसे श्रेष्ठ प्रमाण है।| साथ भगवान्‌ शिवकी ही आराधना करो।

वेदके द्वारा जिनका यशोगान होता है, वे परात्पर | दण्डकारण्ये गौतमीके तटपर भगवान्‌ शिव

पुरुष परमात्मा हैँ । जो मृत्युके अधीन होता है, समस्त पापराशिका निवारण करते हैँ ।

उसे अपर (क्षर पुरुष) जानना चाहिये ओर जो ¦ महर्षि अगस्त्यकी यह बात सुनकर आपस्तम्ब

अपृत है, उसे पर (अक्षर पुरुष) कहते है । | मुनिको बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने गङ्गे जाकर

अपृतके भी दो स्वरूप हैं-- मूर्तं ओर अमूर्त । जो | खान किया और व्रतपालनका नियम लेकर भगवान्‌

अमूर्तं (निराकार) है, उसे परब्रह्म जानना चाहिये | शंकरका स्तवन करना आरम्भ किया।

और मूर्तको अपर ब्रह्म कहते हैँ। गुर्णोकी | आपस्तम्ब योले- जो काष्ठोंमें अग्नि, फूलोंमें

व्यापकताके अनुसार मूर्तके भी तीन भेद है ब्रह्मा, | सुगन्ध, बीजोंमें वृक्ष आदि, पत्थरोंमें सुवर्ण तथा

विष्णु ओर शिव। ये एक होते हुए भी तीन | सम्पूर्ण भूतोंमें आत्मारूपसे छिपे रहते हैं, उन

कहलाते है । इन तीनों देवताओंका भी वेद्यतत्त्व॒ भगवान्‌ सोमनाथकी मैं शरण लेता हूँ। जिन्होंने

-- चन्र बर | जल का पल ज चक्क

तत्र यो भेदमाचष्टे लिङ्गभेदौ स उच्यते । प्रायश्चित्त न तस्यास्ति यश्चैषां व्याहरेद्‌ भिदाम्‌॥

(१३०। ११- १३)

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