# श्री लिंग पुराण ॐ २३३
भी रुद्र का अर्चन करते हैं इससे ये निष्पाप हो जाते हैं।
इनके कार्यो में विध्न होना चाहिए तब इनका नाश होगा।
ऐसा विचार कर मायामयी पुरुष और उसका शास्त्र
भगवान ने उत्पन्न किया। उस मायावी पुरुष को तथा
शोडष लक्षण वाले शास्त्र को देखकर सभी मोहित हो
जाते हैं। बह वर्ण आश्रम आदि धर्म से रहित तथा
श्रुतिस्मार्त से विवर्जित है । वह दैत्यों के पुर में गया । दैत्य
उससे मोहित होकर श्रुतिस्मार्त को छोड़कर उसके शिष्य
बन गए। महादेव शंकर को त्याग दिया । स्वयां पति को
त्याग कर स्वच्छन्द विचरने लगीं । लक्ष्मी आदि जो तपस्या
से प्राप्त की थीं वे त्याग कर बाहर चली गई । स्त्री धमं
नष्ट हो जाने पर दुराचार फैल गया ।
तब विष्णु भगवान देवताओं के साथ महादेव जी
की स्तुति करने लगे--हे महेश्वर! हे देव! हे परमात्मने!
आपको नमस्कार है । इस प्रकार प्रार्थना करके जल में
स्थित भगवान रुद्र का जप करने लगे । देवता भी स्तुति
करने लगे--
हे प्रभु! आप ही पुरुष हो । आप ही प्रकृति हो।
योगियों के हृदय कमल में आप ही विराजमान हो । अणु
से अणु तथा महत से महत आप ही हो । श्रुतियों के सार
आप ही हो । तुम्हीं दैत्य सुर भूत, किन्नर, स्थावर, जङ्गम
आदि की रक्षा करने वाले हो । स्थावर जड़म सब आपका