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पूर्वभाग-तृतीय पाद

प्राप्त होते हैं। उसके सब पापोंका नाश हो जाता है।

"दाशरथाय विद्यहे। सीतावल्नभाव धीमहि। तन्नो

रामः भ्रचोदयात्‌।' यह राम-गायत्री कही गयौ है,

जो सम्पूर्ण मनोवाज्छित फलोंको देनेवाली रै ।

पद्मा (श्रीं) डे विभक्त्यन्त सीता शब्द ( सीतायै)

ओर अन्ते ठद्य (स्वाहा) यह (श्री सीतायै

स्वाहा) षडक्षर सीता-मन्तर है । इसके वाल्मीकि

ऋषि, गायत्री छन्द्‌, भगवती सीता देवता, श्रों

बीज तथा ' स्वाहा" शक्ति है । छ: दीर्घस्वरोंसे युक्त

बीजाक्षरद्रारा षडङ्ग-न्यास करे।

ततो ध्यायेन्महादेवीं सीतां त्रैलोक्यपूजिताम्‌।

तमरहाटकवर्णाभां पदायुग्मं क्ये ॥

सद्रनभूषणस्फूर्जद्दिव्यदेहां शुभात्मिकाम्‌।

नानावस्तरां शशिमुखीं पद्माक्षीं मुदितान्तराम्‌॥

पश्यन्तीं राघवं पुण्यं शय्यायां षड्गुणेश्वरीप्‌।

(ना पूर्वर १३३- १३५)

तदनन्तर त्रिभुवनपूजित महादेवौ सीताका ध्यान

करे । तपाये हुए सुवर्णके समान उनकी कान्ति है।

उनके दोनों हाथमे दो कमलपुष्पं शोभा पा रहे है।

उनका दिव्य-शरीर उत्तम रन्नमय आशभूषणोंसे

प्रकाशित हो रहा है । वे मङ्गलमयो सीता भाँति-

भाँतिके वस्त्रोंसे सुशोभित हैं। उनका मुख चन्द्रमाको

लज्जित कर रहा है। नेत्र कमलोँकौ शोभा धारण

करते हैं। अन्तःकरण आनन्दसे उल्लसित है। वे

ऐश्वर्य आदि छः गुणोको अधीश्वरी हैं और

शय्यापर अपने प्राणवक्नभ पुष्पमय श्रीराघवेन्द्रको

अनुरागपूर्ण दृष्टिसे निहार रही हैं।'

इस प्रकार ध्यान करके मन्तोपासके छः लाख

मन्त्रका जप करे और खिले हुए कमलोंद्वारा

दशांश आहुति दे। पूर्वोक्त पीठपर उनकी पूजा

करनी चाहिये। मूलमन्त्रसे मूर्ति निर्माण करके

उसमें जनकनन्दिनों किशोरोजीका आवाहन और

स्थापन करे। फिर विधिवत्‌ पूजन करके उनके

डंडे

दक्षिणभागमें भगवान्‌ श्रीरामचन्द्रजीकी अर्चना

करे। तत्पश्चात्‌ अग्रभागमें हनुमानूजीकी और पृष्ठभागमें

लक्ष्मौजीकौ पूजा करके छः कोणोंमें हदयादि

अङ्गका पूजन करे। फिर आठ दलोमें मुख्य

मन्त्रियोंका, उनके बाह्मभागमें इन्द्र आदि लोकेश्वरॉंका

और उनके भी बाह्मभागमें वज्र आदि आयुधोंका

पूजन करके मनुष्य सम्पूर्ण सिद्धियोंका स्वामी हो

जाता है। अधिक कहनेसे क्या लाभ ? श्रीकिशोरीजीकी

आराधनासे मनुष्य सौभाग्य, पुत्र-पौत्र, परम सुख,

धन-धान्य तथा मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

इन्दु (- अनुस्वार), युक्त शक्र (ल) तथा

"लक्ष्मणाय नमः ' यह ( लं लक्ष्मणाय नम: ) सात

अक्षरोंका मन्त्र है । इसके अगस्त्य ऋषि, गायत्री

छन्द, महावीर लक्ष्मण देवता, "लं ' बीज और

"नमः" शक्ति है । छः दीर्घ स्वरोंसे युक्त बीजद्वारा

षडङ्क-न्यास करे।

ध्यान

द्विभुजं स्वर्णरुचिरतनुं पद्मनिभेक्षणम्‌।

धनुर्वाणकरं रामं सेवासंसक्तमानसम्‌॥ ९४४॥

"जिनके दो भुजाएँ हैं, जिनकी अङ्गकान्ति

सुवर्णके समान सुन्दर है । नेत्र कमलदलके सदृश

हैँ । हाथोंमें धनुष-बाण हैं तथा श्रीरामचन्द्रजीकी

सेवामे जिनका मन सदा संलग्र रहता है (उन

श्रीलक्ष्मणजीकी मैं आराधना करता हूँ)।'

इस प्रकार ध्यान करके मन्त्रोपासक सात लाख

जप करे और मधुसे सींची हुई खीरसे आहुति देकर

श्रीयमपीठपर श्रीलक्ष्मणजीका पूजन करे । श्रीरमजीकी

हो भाँति श्रीलक्ष्मणजीका भी पूजन किया जाता है।

यदि श्रीरामचन्द्रजीके पूजनका सम्पूर्ण फल प्राप्त

करनेकी निश्चित इच्छा हो तो यत्रपूर्वक श्रोलक्ष्मणजीका

आदरसहित पूजन करना चाहिये । श्रीरामचन्द्र जीके

बहुत-से भिन्न-भिन्न मन्त्र हैं, जो सिद्धि देनेवाले हैं।

अत: उनके साधकोंको सदा श्रीलक्ष्मणजीकों शुभ

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