* श्रीकृष्णजन्मखण्ड * ४८९
श्रीवनके समीप यज्ञ करनेवाले ब्राह्मणोंकी पत्रियोंका ग्वालबालोंसहित श्रीकृष्णको
भोजन देना तथा उनकी कृपासे गोलोकधामको जाना, श्रीकृष्णकी मायासे
निर्मित उनकी छायामयी स्त्रियोंका ब्राह्मणोके घरोमें जाना तथा
विप्रपत्रियोंके पूर्वजन्मका परिचय
नारदजी योले-- मुनिश्रेष्ठ ! ज्ञानसिन्धो! मैं | बालकोकि प्रति दयासे भरी हुई है ।
आपका शरणागत शिष्य हं । आप मुझे श्रीकृष्ण- ्रीकृष्णकौ बात सुनकर वे श्रेष्ठ गोपबालक
लौलामृतका पान कराइये। ब्राह्मणोंके सामने जा मस्तक झुकाकर खड़े हो
भगवान् श्रीनारायणने कहा--एक दिन | गये और बोले- विप्रवरो! हमें शीघ्र भोजन
बलरामसहित श्रीकृष्ण ग्वालबालोंको साथ ले | दीजिये।' परंतु उनमेंसे कुछ द्विजोंने तो उनकी
श्रीमधुवनमें गये, जहाँ यमुनाके किनारे कमल |बात सुनी ही नहीं और कुछ लोग सुनकर भी
खिले हुए थे। उस समय सब बालक सहस | ज्यों-के-त्यों खड़े रह गये। तब वे पाकशालामें
गौओंके साथ वहाँ विचरने और खेलने लगे।|गये, जहाँ ब्राह्मणियाँ भोजन बना रही थीं। उन
खेलते-खेलते वे थक गये और उन्हें भूख-प्यास | बालकोंने ब्राह्मणपत्नियोंको सिर झुकाकर प्रणाम
सताने लगी। तब सब गोपशिशु बड़ी प्रसन्नताके | किया। प्रणाम करके वे सब बालक उन पतिव्रता
साथ श्रीकृष्णके पास आये और बोले--' कन्हैया ! | ब्राह्मणियोंसे बोले--'माताओ ! हम सब बालक
हमें बड़ी भूख लगी है। हम सेवकोंको आज्ञा | भूखसे पीडित हैं। हमें भोजन दो।'
दो, क्या करें?" ग्वालबालॉंकी बात सुनकर| उन बालकोंकी बात सुनकर और उनकी
प्रसन्नमुख और नेत्रवाले दयानिधान श्रीहरिने उनसे | मनोहर आकृति देखकर उन सती-साध्वी ब्राह्मणियोंने
यह हितकर तथा सच्ची बात कही। मुस्कराते हुए मुखारविन्दसे आदरपूर्वक पूछा।
श्रीकृष्ण बोले--बालको ! जहाँ ब्राह्मणोॉंका|. ब्राह्मणपत्नियाँ बोलीं--समझदार बालको!
सुखदायक यज्ञस्थान है, वहाँ जाओ। जाकर उन | तुम लोग कौन हो ? किसने तुम्हें भेजा है? और
“यज्ञतत्पर ब्राह्मणोंसे शीघ्र ही भोजनके लिये अन्न | तुम्हारे नाम कया हैं ? हम तुम्हें व्यज्गनसहित नाना
माँगी। वे सभी अङ्गिरस गोत्रवाले ब्राह्मण हैं | प्रकारका श्रेष्ठ भोजन प्रदान करेंगी।
और श्रीवनके निकट अपने आश्रममें यज्ञ करते ब्राह्मणियोंकी बात सुनकर वे सभी लिग्ध
हैं। उन्होंने श्रुतियों और स्मृतियोंका विशेष ज्ञान | एवं हृष्ट-पुष्ट गोपबालक प्रसन्नतापूर्वक हँसते
प्राप्त किया है। वे सब निःस्पृह्ठ वैष्णव हैं और | हुए बोले।
मोक्षकी कामनासे मेरा ही यजन कर रहे हैं। . बालकोंने कहा--माताओ! हमें बलराम
परंतु मायासे आच्छादित होनेके कारण उन्हें इस | और श्रीकृष्णने भेजा है। हमलोग भूखसे बहुत
बातका पता नहीं है कि योगमायासे मनुष्यरूप | पीड़ित हैं। हमें भोजन दो। हम शीघ्र ही उनके
धारण करके प्रकट हुआ मैं ही उनका आराध्य | पास लौट जायँगे। यहाँसे थोड़ी दूरपर बनके
देव हूँ। केवल यज्ञकी ओर ही उन्मुख रहनेवाले | भीतर भाण्डोर-वटके निकट मधुवनमें बलराम
वे ब्राह्मण यदि तुम्हें अन्न न दें तो शीघ्र ही ओर केशव बैठे हैं। वे दोनों भाई भी थके-
जाकर उनकी पत्नियोंसे माँगना; क्योंकि वे |माँदे और भूखे हैं तथा भोजन माँग रहे हैं।