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पूर्वभाग-प्रथम पाद

अत्यन्त प्रसन्न हो आदरपूर्वक बोले--' राजकुमार !

तुम्हारा पौत्र यहाँ गङ्गाजीको लाकर अपने पितर्ोको

स्वर्गलोक पहुँचायेगा। वत्स ! तुम्हारे पौत्र भगीरथद्रार

लायो हुई पुण्यसलिला गङ्गा नदी इन सगरपुत्रोकि

पाप धोकर इन्हें परम पदकी प्राप्ति करा देगी।

बेटा! इस घोड़ेकों ले जाओ, जिससे तुम्हारे

पितामहका यज्ञ पूर्ण हो जाय।' तब अंशुमान्‌

अपने पितामहके पास लौट गये और उन्हें

अश्वसहित सब समाचार निवेदन किया। सगरने

उस पशुके द्वारा ब्राह्मणोके साथ वह यज्ञ पूर्ण

किया और तपस्याद्वारा भगवान्‌ विष्णुकी आराधना

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करके वे वैकुण्ठधामको चल गये। अंशुमान्‌के

दिलीप नामक पुत्र हुआ। दिलीपसे भगीरथका

जन्म हुआ, जो दिव्य लोकसे गङ्गाजीको इस

भूतलपर ले आये। मुने! भगीरथकी तपस्यासे

संतुष्ट हो ब्रह्माजीने उन्हें गङ्गा दे दी; फिर

भगीरथ, गड्भाजीकों धारण कौन करेगा-इस

विषयमें विचार करने लगे। तदनन्तर भगवान्‌

शिवकौ आराधना करके उनकी सहायतासे वे

देवनदी गङ्गाको पृथ्वीपर ले आये और उनके

जलसे स्पर्श कराकर पवित्र हुए पितरोंकों उन्होंने

दिव्य स्वर्गलोकमें पहुँचा दिया।

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बलिके द्वारा देवताओंकी पराजय तथा अदितिकी तपस्या

नारदजीने कहा--भाईजी! यदि मैं आपको | दैत्योकि सेनापति हुए। वे बहुत बड़ी सेनके साथ

कृपाका पात्र होऊ तो भगवान्‌ विष्णुके चरणोंके

अग्रभावसे उत्पन्न हुई जो गङ्गा बतायी जाती है,

उनकी उत्पत्तिकी कथा मुझसे कहिये।

श्रीसनकजी बोले--निष्पाप नारदजी ! मैं गड्राकी

उत्पत्ति बताता हूँ, सुनिये। वह कथा कहने और

सुननेवालेके लिये भी पुण्यदायिनी है तथा सब

पापोंका नाश करनेवाली है। कश्यप नामसे प्रसिद्ध

एक मुनि हो गये हैं। वे ही इन्द्र आदि देवताओंके

जनक हैं। दक्ष-पुत्री दिति और अदिति-ये दोनों

उनकी पत्नियाँ हैं। अदिति देवताओंकी माता है

ओर दिति दैत्योंकी जननी। ब्रह्मन्‌ ! उन दोनोंके दो

पुत्र हैं, वे सदा एक-दूसरेको जीतनेकी इच्छा

रखते हैं। दितिका पुत्र आदिदैत्य हिरण्यकशिपु बड़ा

बलवान्‌ था। उसके पुत्र प्रह्मद हुए। वे दैत्योमे बड़े

भारी संत थे। प्रह्मादका पुत्र विरोचन हुआ, जो

ब्राह्मणभक्त था। विरोचनके पुत्र बलि हुए, जो

अत्यन्त तेजस्वी ओर प्रतापी थे। मुने! बलि ही

इस पृथ्वीका राज्य भोगते थे। समूची पृथ्वीको

जीतकर स्वर्गको भी जीत लेनेका विचार कर वे

युद्धमें प्रवृत्त हुए। उन्होंने विशाल सेनाके साथ

देवलोकको प्रस्थान किया। देवशत्रु बलिने स्वर्गलोकमें

पहुँचकर सिंहके समान पराक्रमी दैत्योंद्वारा इद्रकी

राजधानीको घेर लिया। तब इन्द्र आदि देवता भी

युद्धके लिये नगरसे बाहर निकले। तदनन्तर

देवताओं ओर दैत्योंमें घोर युद्ध छिड़ गया।

दैत्योंने देवताओंकी सेनापर बाणोंकी झड़ी लगा

दी। इसी प्रकार देवता भी दैत्यसेनापर बाणवर्षा

करने लगे। तदनन्तर दैत्यगण भी देवता्ओंपर नाना

प्रकारके अस्त्र-शस्ोद्रारा घातक प्रहार करने

लगे। पत्थर, भिन्दिपाल, खड़, परशु, तोमर,

परिघ, क्षुरिका, कुन्त, चक्र, शङ्क, मूसल, अङ्कुश,

लाङ्गल, पद्िश, शक्ति, उपल, शतघ्नौ, पाश,

थप्पड़, मुक्के, शूल, नालीक, नाराच, दूरसे फेकनेयोग्य

अन्यान्य अस्त्र तथा मुदरसे वे देबताओंकों मारने

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