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जानकर चीत्कार करने लगे। उस अग्रिसे संतप्त हो

सम्पूर्ण सर्प तथा राक्षस समुद्रमें शीघ्रतापूर्वक समा

गये। अवश्य ही साधु-महात्माओंका कोप दुस्सह

होता है।

तदनन्तर देवदूतने राजाके यज्ञमें आकर यजमान

सगरको वह सब समाचार बताया। राजा सगर

सब शास्त्रोके ज्ञाता थे। यह सब वृत्तान्त सुनकर

उन्होंने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक कहा--दैवने ही उन

दुष्टोंको दण्ड दे दिया। माता, पिता, भाई अथवा

पुत्र जो भी पाप करता है, वही शत्रु माना गया

है। जो पापमें प्रवृत्त होकर सब लोगोंके साथ

विरोध करता है, उसे महान्‌ शत्रु समझना

चाहिये- यही शास्त्रोंका निर्णय है। मुनीश्वर नारदजी !

राजा सगरने अपने पुत्रोंका नाश होनेपर भी शोक

नहीं किया; क्योकि दुराचारियोंकी मृत्यु साधु

पुरुषोंके लिये संतोषका कारण होती है। ' पुत्रहीन

पुरुषोंका यज्ञमें अधिकार नहीं है'। धर्मशास्त्रकी

ऐसी आज्ञा होनेके कारण महाराज सगरने अपने

पौत्र अंशुमानकों ही दत्तक पुत्रके रूपमें गोद ले

लिया। सारग्राहो राजा सगरने बुद्धिमान्‌ और

संक्षिप्त नारदपुराण

बविद्वानोंमें श्रेष्ठ अंशुमान्‌को अश्च दढ लानेके

कार्यम नियुक्त किया। अंशुमान्‌ने उस गुफाके

द्वारपर जाकर तेजोराशि मुनिवर कपिलको देखा

और उन्हें साष्टाङ्ग प्रणाम किया। फिर दोनों

हाथोंकों जोड़कर वह विनयपूर्वक उनके सामने

खड़ा हो गया और शान्तचित्त सनातन देवदेव

कपिलसे इस प्रकार बोला।

अंशुमानने कहा--ब्रह्मन्‌ ! मेरे पिताके भाइयोंने

यहाँ आकर जो दुष्टता की है, उसे आप क्षमा करें;

क्योकि साधु पुरुष सदा दूसरोंके उपकारमें लगे

रहते हैं और क्षमा ही उनका बल है। संत-

महात्मा दुष्ट जीर्वोपर भी दया करते हैं। चन्द्रमा

चाण्डालके घरसे अपनी चाँदनी खींच नहीं लेते

हैं। सज्जन पुरुष दूसरोंसे सताये जानेपर भी सबके

लिये सुखकारक ही होता है। देवताओंद्वारा अपनी

अमृतमयी कलाके भक्षण किये जानेपर भी चन्द्रमा

उन्हें परम संतोष ही देता है। चन्दनकों काटा

जाय या छेदा जाय, वह अपनी सुगन्धसे सबको

सुवासितं करता रहता है। साधु पुरुषोंका भी ऐसा

ही स्वभाव होता है। पुरुषोत्तम! आपके गुणोंको

जाननेवाले मुनोश्ररगण ऐसा मानते हैं कि आप

क्षमा, तपस्या तथा धर्माचरणद्वारा समस्त लोकोंको

शिक्षा देनेके लिये इस भूतलपर अवतीर्ण हुए हैं।

ब्रह्मन्‌ | आपको नमस्कार है। मुने ! आप ब्रह्मस्वरूप

हैं, आपको नमस्कार है । आप स्वभावतः ब्राह्मणोंका

हित करनेवाले हैं और सदा ब्रह्मचिन्तनमें लगे

रहते हैं, आपको नमस्कार है।

अंशुमान्‌के इस प्रकार स्तुति करनेपर कपिल

मुनिका मुख प्रसन्नतासे खिल उठा। उस समय वे

बोले--' निष्पाप राजकुमार ! मैं तुमपर प्रसन्न हूँ,

वर माँगो।' मुनिके ऐसा कहनेपर अंशुमानने

प्रणाम करके कहा--' भगवन्‌! हमारे इन पितरोको

ब्रह्मलोकमें पहुँचा दे ।' तब कपिल मुनि अंशुमानूपर

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