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इक -] क) [मत्स्य पुराणे

से विनाण के लिए ही दिखाई दे रहे थे ।५३। उस महान्‌ आत्मा वाले

दं त्येन्द्र के द्वारा कम्पायमान इस मोदिनी मं अमित ओज से सम्पन्न

महीधर ओर नागगण गिर गये थे ।५४। चार शीर्ष बाले-पाँच फणोसे

युक्त और सात मस्तको वाले पन्नग (सपं) विष की ज्वालाओं से

समाकुल मुख से हुताशन का चिमुञ्चन कर रहे थे । प्रमुख पन्‍नगो में

वासुकि-तक्षक-कर्कों टक-ध नडःजय-एला मुख-कालिक ओर महान्‌ वीयं

णाली महापद्म एबं सहस्न शीर्षो वाला-नग-हेमतालध्वज---प्रभु शेष

और महाभाग अनन्त--दुष्प्रकप्य---प्रकम्पित--जल के अन्दर स्थित

रहने वाले दीप्त और प्रथिबी धारण थे उस समय में ये सब चारों

ओर में महान्‌ क्र उसके द्वारा कम्पित हो गये य ।५५-५८।

नागास्तेजोधराश्चापि पातालतलचारिणः ।

हिरण्यकशिपुर्देत्यस्तदा संस्पृष्ट्वान्महीम्‌ ।५६

संदष्टौष्ठपुटः क्रोधाद्वा राह इव पूर्वज: ।

नदी भागीरथी चेव सरयूः कौशिको तथा ।६०

यमुना त्वथ कावेरो कृष्णवेणी च निम्नगा ।

सुवेणा च महाभागा नदी गोदावरीतथा ।६१

चमेण्वतो च च सिन्धुश्च तथा नदनदीपतिः ।

कलमप्रभवश्चैव णोणोमणिनिभोदकः ।६२

नमंदा शुभतोया च तथा वेत्रवती नदी ।

गोमती गीकुलाकीर्णा तथा पवं सरस्वती ।६३

मही कालमही चैव तमसा पुष्पवाहिनी ।

जम्बूद्वीपं रत्नवटं सवंरत्नोपशोभितम्‌ ।६४

तेज के धारण करने बालि और पाताल तल में संचरण करने बाले

नाश भी कम्पायमान हो गये ये उस समय में दैत्यराज हिरण्यकशिपु

ने इस मही को स्पशं क्रिया था और बह क्रोध से अपने होटों को

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