* अध्याय २१०
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इक्कीसवाँ अध्याय
विष्णु आदि देवताओंकी सामान्य पूजाका विधान
नारदजी बोले--अब मैं विष्णु आदि
देवताओंकी सामान्य पूजाका वर्णन करता हूँ तथा
समस्त कामनाओंको देनेवाले पूजा-सम्बन्धी मन्त्रोंको
भी बतलाता हूँ। भगवान् विष्णुके पूजनमें सर्वप्रथम
परिवारसहित भगवान् अच्युतको नमस्कार करके
पूजन आरम्भ करे, इसी प्रकार पूजा-मण्डपके
द्वारदेशमें क्रमशः दक्षिण-वाम भागमें धाता और
विधाताका तथा गङ्गा और यमुनाका भी पूजन
करे। फिर शङ्कनिधि और पदमनिधि -इन दो
निधिर्योकी, द्वारलक्ष्मीकी, वास्तु-पुरुषकी तथा
आधारशक्ति, कूर्म, अनन्त, पृथिवी, धर्म, ज्ञान,
वैराग्य और ऐश्वर्यकी पूजा करे । तदनन्तर अधर्म
आदिका (अर्थात् अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य ओर
अनैश्वर्यका) पूजन करे तथा एक कमलकी
भावना करके उसके मूल, नाल, पद्म, केसर और
कर्णिकाओंकी पूजा करे।
फिर ऋग्वेद आदि चारों वेदोंकी, सत्ययुग
आदि युगोंकी, सत्त्व आदि गुणोंकी और सूर्य
आदिके मण्डलकी पूजा करे। इसी प्रकार विमला,
उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, योगा आदि जो शक्तियाँ
हैं, उनकी पूजा करे तथा प्रह्वी, सत्या, ईशा,
अनुग्रहा, निर्मलमूर्ति दुर्गा, सरस्वती, गण (गणेश),
क्षेत्रपाल और वासुदेव ( संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध)
आदिका पूजन करे । इनके बाद हदय, सिर, चूडा
(शिखा), वर्म (कवच), नेत्र आदि अद्ञोंकी,
फिर शं, चक्र, गदा और पद्म नामक अस्त्रोंकी,
श्रीवत्स, कौस्तुभ एवं वनमालाकौ तथा लक्ष्मी,
पुष्टि. गरुड ओर गुरुदेवकी पूजा करे।
वायु, कुबेर, ईशान, ब्रह्म और अनन्त -इन
दिक्पालोकौ, इनके अस्त्रोकी, कुमुद आदि
विष्णुपार्षदा या द्वारपार्लोकी ओर विष्वक्सेनकी
आवरण-मण्डल आदिमे पूजा आदि करनेसे
सिद्धि प्राप्त होती है॥ १--८॥
अब भगवान् शिवकी सामान्य पूजा बतायी
जाती है-इसमें पहले नन्दीका पूजन करना
चाहिये, फिर महाकालका। तदनन्तर क्रमशः
दुर्गा, यमुना, गण आदिका, वाणी, श्री, गुरु,
वास्तुदेव, आधारशक्ति आदि और धर्म आदिका
अर्चने करे। फिर वामा, ज्येष्ठा, रौद्री, काली,
कलविकरिणी, बलविकरिणी, बलप्रमथिनी,
सर्वभूतदमनी तथा कल्याणमयी मनोन्मनी-इन
नौ शक्तियोंका क्रमसे पूजन करे। हां हं हां
शिवमूर्तये नमः।'--इस मन्त्रसे हदयादि अङ्ग
ओर ईशान आदि मुखसहित शिवकी पूजा करे ।
"हौ शिवाय हौ।' इत्यादिसे केवल शिवकी
अर्चना करे और ' हां ' इत्यादिसे ईशानादि * पाँच
मुखोंकी आराधना करे । 'हीं गौर्यै नमः ।' इससे
गौरीका और “गं गणपतये नमः।' इस मन्त्रसे
गणपतिकी, नाम-मन्त्रोंसे इन्द्र आदि दिक्पालोकी,
चण्डकी और हृदय, सिर आदिकौ भी पूजा
करे॥ ९--१२ ३॥
अब क्रमश: सूर्यकी पूजाके मन्त्र बताये जाते
हैं। इसमें नन्दी सर्वप्रथम पूजनीय हैं। फिर
क्रमश: पिङ्गल, उच्चैःश्रवा ओर अरुणकी पूजा
करे। तत्पश्चात् प्रभूत, विमल, सोम, दोनों संध्याकाल,
परसुख और स्कन्द आदिकी मध्यमे पूजा करे ।
तत्पश्चात् इन्द्र, अग्नि, यम, निरति, जल (वरुण), | इसके बाद दीप्ता, सूक्ष्मा, जया, भद्रा, विभूति,
* ईशान, वामदेव, सध्चोजात, अघोर और तत्पुरुष -ये शिवके पाँच मुख है । हां ईशानाय नमः। हौं वामदेवाय नमः। हूँ
सद्योजाताव नमः । है अघोराय नमः | हौ तत्पुरुषाय नमः ।-- इन मन्जोंसे इन मुखोंकौं पूजा करनी चाहिये।