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युगमानं स्मृतं विप्र खचतुष्करदार्णवा:।

तहशांशास्तु चत्वारः कृताख्यं पदमुच्यते ॥६१॥

त्रयस्त्ेता द्वापरो द्वौ कलिरेक: प्रकीर्तितः ।

मनुः कृताब्दसहिता युगानामेकसप्ततिः ॥६२॥

बिधेर्दिने स्युर्विप्रे्न मनवस्तु चतुर्दश ।

तावत्येव निशा तस्य विद्र परिकीर्तिता ॥ ६३॥

स्वयप्भुवः सृष्टिगतानब्दान्‌ सम्पिण्ड्य नारद ।

खच्रानयनं कार्यमथवेष्टयुगादितः ॥ ६४॥

विप्रवर! चारों युगोंका सम्मिलित मान तैंतालीस

लाख बीस हजार वर्ष बतलाया गया है । उसके

दशांशमें चारका गुणा करनेपर सत्ययुग नामक पाद

होगा। (उसका मान १७ लाख २८ हजार वर्षं है) ।

दशौशमे तीनका गुणा करनेपर (१२९६००० वर्ष)

त्रेता नामक पाद होता है। दशांशमें दोका गुणा

करनेपर (८६४००० वर्ष) द्वापर नामक पाद होता

है और उक्त दशांशको एकगुना हो रखनेपर

(४२३२००० वर्ष) कलियुग नामक पाद कहा गया

है । कृताब्दसहित (एक सत्ययुग अधिक) इकहत्तर

चतुर्युगका एक मन्वन्तर होता है ॥ ६१-६२ ॥

ब्रह्मन्‌ । ब्रह्माजीके एक दिनमें चौदह मनु होते हैं

और उतने हौ समयक उनकी एक रात्रि होती

है ॥ ६३॥ नारद ! ब्रह्माजीके वर्तमान कल्पमें जितने

वर्ष बीत गये हैं, उन्हें एकत्र करके ग्रहानयन

(ग्रह-साधन) करना चाहिये। अधवा इष्ट युगादिसे

ग्रह-साधन करे ॥ ६४॥

युगे सूर्यज्ञशुक्राणां खचतुष्करदार्णवा:।

कुजार्किंगुरुशीघ्राणां भगणा: पूर्वयायिनाम्‌॥६५॥

इन्दो रसाम्रित्रित्रीषुसप्तभूधरमार्गणा:।

दस्रत्ष्टरसाङ्काक्षिलोचनानि कुजस्य तु॥६६॥

बुधशीपघ्रस्य शृन्यर्तुखाद्रिभ्यद्कनगेन्दवः।

बृहस्पते: खदस्त्राक्षिवेदपड्वह्यस्तथा॥ ६७॥

सितशीघ्रस्य षद्समप्त्रियमाश्विखभूधरा:।

शनेर्भुजङ्गषट्‌पञ्चरसवेदनिशाकराः

संक्षिप्त नारदपुराण

चन्द्रोच्चस्यथाग्रिशून्याश्विवसुसर्पार्णवा युगे।

वा पातस्य वस्वग्नियमाध्िशिखिदस््रकाः ॥ ६९॥

एक युगम पूर्व दिशाकी ओर चलते हुए सूर्य,

बुध और शुक्रके ४३२०००० *भगण' होते हैं।

तथा मङ्गल, शनि और बृहस्पतिके शीघ्रोच्च भगण

भी उतने ही होते हैं ॥६५॥ एक युगमें चन्द्रमाके

भगण ५७७५३३३६ होते हैं। भौमके २२९६८३२,

बुधके शीघ्रोच्के १७९३७०६०, बृहस्पतिके

३६४२२०, शुक्रके शीघ्रोच्चके ७०२२३७६, शनिके

१४६५६८ तथा चन्द्रमाके उच्चके भगण ४८८२०३

होते हैं। चन््रमांके पातकी वामगतिसम्बन्धी भगणोंकी

संख्या २३२२३८ है॥ ६६--६९॥

उदयादुदयं भानोर्भूमिसावनवासराः।

वसुद्रण्टाद्रिरूपाङ्कसपाद्रितिथयो युगे ॥७०॥

घड्वहित्रिहुताशाङ्कतिथयश्चाथिपासकाः ।

तिथिक्षया यमार्थाध्चिद्रषटव्योपशराश्चिनः ॥ ७१ ॥

खचतुष्क समुद्राष्टकुपञ्च रविपासकाः।

षट्त्यग्नित्रयवेदाप्निपञ्च शुध्रांशुमासका: ॥ ७२ ॥

प्राग्गते: सूर्यमन्दस्य कल्ये सप्ताष्टवह्नय:।

कौजस्य वेदखयमा बौधस्याष्टर्तुबल्लय: ॥ ७३॥

खखरन्ध्राणि जैवस्य शौक्रस्यार्थगुणेषव:।

गोऽग्रयः शनिमन्दस्य पातानामथ वामतः ॥७४॥

पनुदस््रास्तु कौजस्य बौधस्याष्टाष्टसागराः।

कृताद्रिचन्धा जैवस्य शौक्रस्याग्रिखनन्दकाः ॥७५॥

शनिपातस्य भगणाः कल्पे यमरसर्तवः।

सूर्यके एक उदवसे दूसरे उदयपर्यन्त जो

दिनका मान होता है, उसे भौमवासर या सावन

वासर कहते हैं। वे एक महायुग (चतुर्युग)-में

१५७७९१७८२८ होते हैं। (चान्द्र दिवस

१६०३००००८० होते हैं)। अधिमास १५९३३३६

होते हैं तथा तिथिक्षय २५०८२२५२ होते

हैं ॥ ७०-७१॥ रविमासोंकी संख्या ५१८४००००

॥ ६८ ॥ | है। चाद्र पास ५३४३३३३६ होते हैं॥ ७२ ॥ पूर्वाभिमुख

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