नंदा माहात्म्य | [ १६६
बताई जाती है वहाँ पर जह्याचारोी , शुचि, {नित रोध, जितेन्द्रिय---सब
प्रकार की हिसा ये निवृत्त--सब भूतोंके. हित में रत और शिवमें
समाक्षरण करने वाला जो अपने प्राणों का त्याग करता है, हे राजन्
उसका जो परम महन् पुण्य-फल हुआ करता उसे अकहित होकर सुन
लो । है पाण्डव ! वह पुरुष एक सौ सटस्र वषं पर्यन्त स्वगं मे आनन्द
प्राप्त क्रिया करता है, समुद्र पर्यन्त पृथ्वी में उसश्रकार का कोई भी -
उस्पन्न नहीं होता है, हे नप श्रेष्ठ ! जैसा यह अमरकण्टक पक्लंम
हुआ करता ।४५-४६।
तावत्तीथं तु विज्ञय पवंतस्य तु पश्चिमे ।
हदो छलेश्वरो नाम त्रिषु लोकेषु विश्व तः ।५०
तत्र पिण्डप्रदानेन गन्ध्योपासनकमंणा ।
पितरौ दशवर्षाणि तर्पितास्तु भवन्ति वे ।५१
दक्षिणे नमंदाकूले कपिलेति महानदी ।
सञ्लाजु नसंच्छन्ना नातिदूरे व्यवस्थिता ।५२
सापि पण्या महाभागा त्रिषु लोकेषु विश्व ता ।
तत्र कोटिशतं साग्र तीर्थानां तु युधिष्ठिर ।५३
पुराणे श्र्.यतेराजन् ! स्बेकोटिगुणं भवेत्;।
तस्यास्तीरे तु येःबृक्षाः पत्तिताः कालपर्ययात् ।५४ `:
नमंदातोयसंस्पृष्टास्तेऽपि यान्ति पराज्धतिस् ।
द्वितीया तु महाभागा विशल्यकरणी शुभा ।५५
तत्र तीर्थे नरः स्नात्वा विशल्यो भवति क्षणात् । .
तत्रदेवगणाः सर्वे सक्िल्नरमहो रगाः ।५६
यक्षरक्षसगन्धर्वा ऋषयश्च तपोधनाः ।
सर्वे समागतास्तत्र प्वेतेऽमरकण्टके ।५७
उस पर्वत के पश्चिम भागमे उस तीर्थ को जान लेना नाहिए जिस
का जनेश्वर कूद हे और बह तीनों लोकों में बहुत ही बिख्यात हूँ ५९