& श्री लिंग पुराण @ १६५
रहेगी । राजा रक्षक नहीं रहेंगे । शुद्र ज्ञानी होकर ब्राह्मणों
से अभिवादन करार्येगे । ब्राह्मण शूद्रों के यहाँ जीविका
करेगे । तप और यज्ञ के फल को बेचने वाले ब्राह्मण
अधिक होगे । कलियुग में यति बहुत होंगे जिनमें पुरुष
थोड़े ओर स्त्रियाँ अधिक होगी । स्तयां व्यभिचारिणी
ज्यादा होगी । पृथ्वी राजा से शून्य हो जायेगी । देश-देश
तथा नगर-नगर में मण्डल बनाये जायेंगे। शासन प्रजा
की रक्षा नहीं कर सकेगा।
तरेता मे एक वर्ष में जो धर्म फल देता था और द्वापर
में एक माह में वही धर्म कलियुग में एक दिन में फल
देने वाला होगा।
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग की हजार चौकड़ी
का ब्रह्मा का एक दिन होता है । उतनी ही रात्रि होती हे ।
इसी प्रकार ७९ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है । यही
मन्वन्तर का लक्षण बतलाया है । यही युगो का संक्षेप में
लक्षण कहा तथा मन्वन्तरों का लक्षण हे ।
कल्प-कल्य में इसी प्रकार व्यवस्था होती है । इसी
प्रकार प्रत्येक कल्प में ऋषि लोक, मनुष्यों का लोक
तथा वर्णाश्रमो का विभाग, युग-युग में होता रहता है ।
प्रभु युग युग में युगो के स्वभाव वर्णाश्रमो के विभाग
युग सिद्धि के लिए करते हैँ । इस प्रकार युगो का परिमाण
तुमसे कहा । अब संक्षेप से देवी के पुत्रों का वर्णन करूगा।