३७० |] [ मत्स्य पुराण
आज्यप पितरों का भक्ति भाव से तिलोदक चन्दन के द्वारा भली भाँति
तर्पण करना चाहिए । फिरं धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल
सर्वभूत क्षय, औदुम्बर, पद्म, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और
चित्रगुप्त के लिए नमस्कार है । डाभ हाथ में ग्रहण करने वाले बधु
पूरुष को विधि के साथ पितृगणों का तर्पण करना चाहिए ।१६-२२।
पित्रादीन्नामगोत्रेण तथा माममहानपि ।
सन्तप्यं विधिना भक्त्या इमं मन्त्रमुदीरयेत् ।२३
ये बान्धवा बान्धवेया येऽन्यजन्मनि बान्धवाः ।
ते तृष्तिमखिला यान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवांछति ।२४
ततश्चाचम्य विधिवेदालिभेत्पद्ममग्रतः ।
अक्षताभिः सपुष्पाभिः सजलारुणचेन्दनम् ।
अध्यं' दद्यात्प्रयत्ने न सूय्येनामानि कोतंयेत् ।२५
पिता आदि का नाप और गोत्र का उच्चारण करके तथा माता-
मह आदिका भी नाम गोत्रे कहकर विधिपूर्वकं भली भाँति तपण करके
भक्ति के साथ इस मन्त्र को उच्चारित करे ।२३। जो मेरे बान्धब और
बान्धवेय हों तथा जो मेरे अन्य जन्म में बान्धव रहे हों वे सब तृप्ति
को प्राप्त हों ओर वह भी सन्तृप्ते हो जावे जो मुझसे अर्थात् परे द्वारा
दिए हुए जल प्राप्त करने की इच्छा रखता हो ।२४। इसके पश्चात्
आचमन करके विधि पूर्वक आगे पद्म का विलेखन करे । पथुष्पों के
सहित क्षक्षतों में अरुण चन्दन से समन्वित जल का अर्घ्यं देना चाहिए
तथा प्रयत्न से सूर्य के नामों का कीतंन करे ।२५।
नमस्ते विष्णुरूपाय नमो विष्णुमुखाय वे ।
सहस्ररश्मये नित्यं नमस्ते सर्वतेजसे ।२६
नमस्तेशिव ! सर्वेश ! नमस्तेस्वंवत्सल ।
जगत्स्वाभिन्नमस्तेऽस्तु दिग्यचन्दनभूषित ।२७
पद्मासन ! नमस्तेऽस्तु कुण्डलाङ्धं दभूषित ।
नमस्ते सर्वलोकेश-! जगत्सर्वं विबोधसे । २८