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सगरोपाख्यान (२) ] | [ ३६५

हो गये ये ।४॥ उन मुनिगणों ने उस नृप से कहा था कि इस आश्रम में

अत्यन्त ही प्रशान्तः आत्मा बाले और महान्‌ तपस्वी जमदग्नि मुनि निवास

किया करते हैं जिनके पुत्र शस्त्र धारियों में परम श्र छ परशुराम हैं ।५। यह

श्रवण करके परशुराम जी के नाम के अनुकीक्त न से पहिले तो सुनने के

साथ ही उनके हृदय में बड़ा भारी भय उत्पन्न हो गया था किन्तु फ़िर

क्रोध को सहन करके उनको परशुराम की बड़ी भारी क्र, रता के साथ किये

हुए पूवं वैर का अनुस्मरण हो गया था ।६। इसके अनन्तर उन्होंने एक दूसरे

से आपस में कहा था कि इन्होंने तो हमारे पित्ता का बध किया भा तो ऐसे

पिता के हनन करने वाले के पिता का अब इस समय में वध करके हम सब

इस रीति से अपने वैर का बदला अवश्य निकालेंगे ।७।

इत्युक्त वा खड्गहस्तास्ते संप्रविश्य तदाश्रमम्‌ ।

प्रजच्निरे प्रयातेषु मुनिवीरेषु स्वतः ।! ८

तं हत्वाऽस्य शिरो हूत्वा निषादा इव निर्दयाः ।

प्रययुस्ते दूरात्मान. सबला: स्वपुरीं प्रति ।\€

पुत्रास्तस्य महात्मानो हृष् वा स्वपितरं हतम्‌ ।

परिवायं महाराज रुख्दुः णोककशिताः ॥\ १०

भर्तारं निहतं भूमौ पतितं वीक्ष्य .रेणुका ।

पपात मूच्छिता स्यो लतेवाणनिताडिता ।।११

सा स्वचेतसि संमूच्छ्य गोकपावकदी पितान्‌ ।

दूरप्रनश्संज्ञेव सद्यः प्राणेव्यं युज्यत्त १२

अनालपंत्यां त संज्ञां याता हि ते पुनः ।

न्यपतन्मूच्छिता भूमौ निमग्नाः गोकसागरे ।\ १३

ततस्तपोधना येऽन्ये तत्तपोवनवासिनः ।

समेत्याश्वा सया मा सुस्तुल्यदुःखाः सुतान्मूने ।\ १४

इतना कहकर वे सब करों में खड्ग लेकर उस आश्रम कै अन्दर

प्रविष्ट हो गये थे और सभी ओर से गमनागमन करने वाले मुनियों का

हनन किया धा ।७। फिर उनने जमदग्नि मुनि का हनन कर दिया था ओर

दया से रहित निषादों के ही संमान' उस जमदग्नि का मस्तक काटकर

हरण कर लिया था। वे महान दुष्ट आत्मा वाले अपनी सेना के सहित

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