* आद्ध-कल्पका वर्णन « ३६१
वनिक भी संदेह नहीं है। जिसके पितर युवावस्थामें | करनेवाला पुरुष उत्तम आरोग्य लाभ करता है।
ही मृत्युको प्राप्त हुए अथवा शस्त्रद्वारा मारे गये | पूर्वाषाढ़ नक्षत्रमें यशकी प्राप्ति होती है। उत्तराषाढ़ामें
हों, वे उन पितरोंकों तृत्त करनेकी इच्छासे ` श्राद्धसे शोक दूर होता है। श्रवणमें श्राद्धके
चतुर्दशी तिधिको श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करें। जो | अनुष्ठानसे शुभ लोक प्राप्त होते हैं। धनिष्ठामें
पुरुष पवित्र होकर अमावास्थाकों यत्नपूर्वक | श्राद्धसे अधिक धनका लाभ होता है। अभिजित्में
श्राद्ध करता है, बह सम्पूर्णं कामनाओं तथा | श्राद्धसे बेदोंकी दिद्वत्ता प्राप्त होती है। शतभिषामें
अक्षय स्वर्गको प्राप्त करता है। पितरोंकी पूजा करनेसे वैद्यकके कार्यमें सिद्धि
मुनिवरो! अब पितरोंकों प्रसन्नताके लिये | प्राप्त होती है। पूर्वाभाद्रपदामें श्राद्धसे भेड़ और
जो-जो वस्तु देनी चाहिये, उसका वर्णन सुनो। | बकरी तथा उत्तराभाद्रपदामें गौएँ प्राप्त होती हैं।
जो श्राद्धकर्ममें गुडमिश्रित अन्न, तिल, मधु | रेवतीमें श्राद्धका अनुष्ठान करनेसे जस्ता आदि
अथवा मधुमिश्रित ,अन्न देता है, उसका वह | धातुओंकी तथा अश्विनीमें घोड़ोंकी प्राप्ति होती
सम्पूर्ण दान अक्षय होता है। पितर कहते | है। भरणी नक्षत्रमें श्राद्ध करनेवाला पुरुष उत्तम
हैं--' क्या हमारे कुलमें ऐसा कोई पुरुष होगा, | आयु प्राप्त करता है। तत्त्वज्ञ पुरुष उक्त नक्षत्रोमें
जो हमें जलाञ्जलि देगा, वर्षामें और मधा, श्राद्ध करनेपर ऐसे हौ फलके भागी होते हैं।
नक्षत्रमें हमको मधुमिश्रित खीर अर्पण करेगा? | अत: अक्षय फलकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको
मनुष्योंको बहुत-से पुत्रोंकी अभिलाषा करनी | कन्याराशिपर सूर्यके रहते उक्त नक्षत्रोंमें काम्य
चाहिये। यदि उनमेंसे एक भी गया चला जाय | श्राद्धका अनुष्ठाने अवश्य करना चाहिये। सूर्यके
अथवा कन्याका विवाह करे या नील वृषका | कन्याराशिपर स्थित रहते मनुष्य जिन-जिन
उत्सर्ग करे तो पितरोंकों पूर्ण तृत्ति और उत्तम | कामनाओंका चिन्तन करते हुए श्राद्ध करते हैं,
गति प्राप्त हो।' कृत्तिका नक्षत्रमें पितरोंकी पूजा | उन सबको प्राप्त कर लेते हैं। जब सूर्य
करनेवाला मानव स्वर्गलोकको प्राप्त होता है। | कन्याराशिपर स्थित हों, तब नान्दीमुख पितरोंका
संतानकी इच्छा रखनेवाला पुरुष रोहिणीमें श्राद्ध | भी श्राद्ध करना चाहिये; क्योंकि उस समय सभी
करे। मृगशिरामें श्राद्ध करनेसे मनुष्य तेजस्वी ' पितर पिण्ड पानेकी इच्छा रखते हैं । जो राजसूय
होता है। आद्रमिं शौर्य और पुनर्वसुमें स्त्रीकी | | और अश्वमेध-यज्ञोंका दुर्लभ फल प्राप्त करना
प्राप्ति होती है; पुष्यमें अक्षय धन, आश्लेषामें | चाहता हो, उसे कन्याराशिपर सूर्यके रहते जल,
उत्तम आयु, मधामे संतान और पुष्टि तथा शाकं और मूल आदिसे भी पितरोंकी पूजा
पूर्वाफाल्गुनीमें सौभाग्यकी प्राप्ति होती है।| अवश्य करनी चाहिये। उत्तराफाल्गुनी और हस्त
उत्तराफाल्गुनीमें श्राद्ध करनेवाला मनुष्य संतानवान् | नक्षत्रोंपर सूर्यदेवके स्थित रहते जो भक्तिपूर्वक
और श्रेष्ठ होता है। हस्त नक्षत्रमें श्राद्ध करनेसे | पितरोंका पूजन करता है, उसका स्वर्गलोकमें
शास्त्रज्ञानमें श्रेष्ठता प्राप्त होती है। चित्रामें रूप, निवास होता है। उस समय यमराजकी आज्ञासे
तेज और संतति मिलती है। स्वातीमें श्राद्ध | पितरोंकी पुरी तृबतक खाली रहती है, जबतक
करनेसे व्यापारमें लाभ होता है । विशाखा पुत्रकी ` कि सूर्य वृश्चिक राशिपर मौजूद रहते हैं। वृश्चिक
अभिलाषा पूर्ण करनेवाली है। अनुराधामें श्राद्ध | बीत जानेपर भी जब कोई श्राद्ध नहीं करता, तब
करनेसे चक्रवर्ती - पदकी प्राप्ति होती है। ज्येष्ठामें | देवताओंसहित पितर॒ पनुष्यको दुःसह शाप
श्राद्धसे प्रभुत्व प्रात्त होता है। मूले श्राद्ध देकर खेदपूर्वक लंबौ साँसें लेते हुए अपनी