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# श्री लिंग पुराण # ८१

स्तुति करता है तथा पढ़ता है वह शीघ्र ही ब्रह्म लोक को

प्राप्त करता हे । जो श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों से इसको सुनता

है तथा सुनाता है, बह परम गति को प्राप्त करता है । इस

प्रकार इस स्तोत्र के द्वारा ध्यान करके ब्रह्मा जी ने वहाँ

भगवान को प्रणाम किया।

तब भगवान ईश्वर ( रुद्र ) ने कहा- कि हे ब्रह्मा

जी! किये आप क्या चाहते हैं ? मैं आप पर प्रसन्न हूँ।

तब भगवान रुद्र को प्रणाम करके ब्रह्मा जी ने कहा-

हे भगवान! यह विश्वरूप जो गौ अथवा सरस्वती हैं वह

कौन है यह जाने की इच्छा टै । यह भगवती, चार पैर

वाली, चार मुख वाली, चार दाँत वाली, चार स्तन वाली,

चार हाथ वाली, चार नेत्र वाली, यह विश्वरूपा कौन

है ? यह किस नाम की है तथा किस गोत्र की है ? उनके

इस वचन को सुनकर देवोत्तम वृषभध्वज अपने शरीर

से उत्पन्न हुए ब्रह्मा से बोले--हे ब्रह्मन्‌! यह जो कल्प है

उसको विश्वरूप कल्प कहते हैं। यह सभी मन्त्रों का

रहस्य है तथा पुष्टि वर्धक हे । यह परम गोपनीय हे ।

आदि सर्गं में जैसा था वह तुमसे कहता हूँ। यह ब्रह्मा का

स्थान जो तुमने प्राप्त कर लिया है उससे परे विष्णु के पद

से भी शुभ तथा बैकुण्ठ से भी शुद्ध, मेरे वामाङ् से

उत्पन्न यह तेतीसवाँ कल्प है। हे महामते! यह कल्प आनन्द

ही जानना चाहिए तथा आनन्द में ही स्थित है। इस कल्प

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