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कल्प प्रतिसन्धि वर्णनम्‌ | | ७३

स्थिति का समय पूर्ण हो चुका था और पर्चिमोत्तर में भासन्नथा। जो

देव कल्प में अवसान प्राप्त होने वाले थे वे उस उपप्लव को प्राप्त हुआ देखने

वाले ये ।२४। उस अवसर में उत्सुक हुए और विषाद से भागों में स्थानों को

व्यक्त करके फिर उन्होंने सविग्न होते हए अयन भाग महूर्लोक के लिए

बनाया था ।२५। वे युक्तो को उपपन्न होते हैं और शरीर में महती को रान्न

होते है बे सब भ्रचर.विशुद्धि से समन्वित थे तथा मानसी सिद्धि में समा-

स्थित हुए थे ।२६। उस समय में उन कल्पवासियों के साथ महान आसादित

हुआ था.। उनके साथ मे गमन करने वाले ब्राह्मण-क्षत्रिय--वैश्य और

अप्ररजन भी थे । वे चौदह देवों के संघ महलोंक में प्राप्त हो गये थे .।. फ़िर

उस मह॒लोंके से गमन करके बड़े उद्ंग के सहित उन्होने अपना मन जन-

लोक में जाने के लिए किया था ।२७-२८।

एतेन क्रमयोगेन यथुस्त कल्पवासिनः ।

एवं देवयुगानां तु सहस्राणि परस्परम्‌ ॥।२६

विशुद्धिबहुलाः सर्वे मानसीं सिद्धिमास्थिताः ।

तं : कल्पवासिभिः साद्ध जन जासादितस्तु वे ॥॥३०

तत्र कल्पान्दश स्थित्वा सत्यं गच्छंति वे पुनः । |

गत्वा त ब्रह्मलोकं वै अपरावतिनीं गतिम्‌ ॥॥३ १

आधिपत्यं चिमाने वं एेश्वर्येण तु तत्समाः ।

भवंति ब्रह्मणा तुल्या रूपेण विषयेण च ॥३२

तत्र ते ह्यवतिष्ठंत प्रीतियुक्ताश्च संयमान्‌ ।

आनंदं ब्रह्मणः प्राप्य मुच्यन्त ब्रह्मणा सह्‌ ॥३३

अवश्यभाविनार्थेन प्राकृतेनैव ले स्वयम्‌ ।

मानाचंनाभिः संबद्धास्तदा तत्कालभाविताः 4 ३४

स्वपतो बुद्धिपूर्वं त्‌. बोधो भवति वँ यथा ।

तथा तु भाविते सेवां तथात्तंदः प्रवर्तते ॥॥३ ५

इसी कम के योग से वे कल्पवासी चले गये ये । इस प्रकार से सहलो

ही देवों के युग थे ।२६। सभी विशुद्धि की प्रचुरता वाले थे और अतएव वै

सब मानसो सिद्धि मेँ समास्थित थे! उनने कल्प वासियों -के साथ जनलोक

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