+ ग्रह्मखण्ड *
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ब्रह्माजीका नारदको गृहस्थधर्मका महत्त्व बताते हुए विवाहके लिये राजी
करना और नारदका पिताकी आज्ञा ले शिवलोकको जाना
सौति कहते हैं--नारदको इस प्रकार जाते
देख ब्रह्माजी उदास हो गये और इस प्रकार बोले ।
ब्रद्माजीनी कहा--अच्छी बात है। बेटा!
तुम तपस्याके लिये जाओ। अब संसारकी सृष्टि |
करनेसे मेरा भी क्या प्रयोजन है? मैं सर्वेश्वर
श्रीकृष्णको जाननेके लिये गोलोकको जाऊँगा।
सनक, सनन्दन, सनातन तथा चौथा बेटा
सनत्कुमार-ये चारों वैरागी हैं ही। यति, हंसी,
आरुणि, वोढु तथा पञ्चशिख-ये सब पुत्र तपस्वी
उत्पन्न हुई नारी हौ माता-पिताके दोषसे उदण्ड
होती है । वही दुष्टा तथा सब कर्माँमें स्वतन्त्र होती
है। बेटा! सभी स्त्रियाँ दुष्ट नहीं होती हैं; क्योंकि
वे लक्ष्मीकौ कलाएँ हैं। जो अप्सराओंके अंशसे
तथा नीच कुलमें उत्पन्न होती हैं, वे ही स्त्रियाँ
कुलटा हुआ करती हैं। साध्वी स्त्री गुणहीन
स्वामीकी सेवा एवं प्रशंसा करती है ओर कुलटा
सद्गुणशाली पतिकी भी सेवा नहीं करती । उलटे
उसकी निन्दा करती है। अतः साधुपुरुष प्रयत्नपूर्वक
हो गये । फिर संसारकौ रचनासे मेरा क्या प्रयोजन ? | उत्तम कुलमें उत्पन्न हुई कन्यके साथ विवाह
मरीचि, अड्विरा, भृगु, रुचि, अत्रि, कर्दम, प्रचेता, | करे। उसके गर्भसे अनेक पुत्रौको जन्म देकर
क्रतु और मनु-ये मेरे आज्ञापालक हैं। समस्त | वृद्धावस्थामें तपस्याके लिये जाय । आगमे निवास
पत्रमे केवल वसिष्ठ ऐसे हैं, जो सदा मेरौ | करना उत्तम है, साँपके मुखमें तथा काँटेपर भी
आज्ञाके अधीन रहते हैं। उपर्युक्त पुत्रके सिवा | रह लेना अच्छ है, परंतु मुँहसे दुर्वचन निकालनेवाली
अन्य सब-के-सब अविवेकी तथा मेरी आज्ञासे | स्त्रीके साथ निवास करना कदापि अच्छा नहीं है।
बाहर हैँ । ऐसी दशामें मेरा संसारक सृष्टिसे क्या बह इन अग्नि, सर्प ओर कण्टकसे भी अधिक
प्रयोजन है ? बेटा ! सुनो मैं तुम्हें वेदोक्त मङ्गलमय | दुःखदायिनी होती है । बेटा! मैंने तुम्हें वेद पढ़ाया
वचन सुना रहा हूं। वह वचन परम्परा-क्रमसे | है । अब तुम मुझे यही गुरुदक्षिणा दो किं विवाह
पालित होता आ रहा है तथा धर्म, अर्थ, काम एवं | कर लो। वत्स! तुम्हारी पूर्वजन्मकी पत्नी मालती
मोक्षरूप चारों पुरुषाथौको देनेवाला है। समस्त | उत्तम कुलमें उत्पन्न हुई है। तुम किसी मङ्गलमय
विदान् धर्म, अर्थ, काम और मोक्षकी इच्छा रखते | दिन और क्षणमें उसके साथ विवाह करो।
हैं; क्योकि ये वेदे विहित तथा बिद्वानोंकी | सती तुम्हें पानेके लिये ही मनुवंशी संजयके घरमें
सभाओंमें प्रशंसित हैं। वेदोंमें जिसका विधान है | जन्म लेकर भारतवर्षे तपस्या कर रही है । इस
वह धर्म है ओर जिसका निषेध है वह अधर्म है । समय उसका नाम रननमाला है। वह लक्ष्मीकी
ब्राह्मणको चाहिये कि वह पहले सुखपूर्वक
यज्ञोपवीत धारण करके फिर वेदोका अध्ययन
करे । अध्ययन समाप्त होनेपर गुरुको दक्षिणा दे ।
इसके बाद उत्तम कुलपे उत्पन्न एवं परम विनीत |
स्वभाववाली कन्याके साथ विवाह करे। उत्तम |
कुलमें उत्पन्न हुई नारी साध्वी तथा पतिसेवामें
तत्पर होती है । अच्छे कुलकी स्त्री कभी उद्रण्ड
नहीं हो सकती । पदारागमणिकी खानमें काँच
कैसे पैदा हो सकता है? नारद! नोच कुलमें|
कला है। तुम उसे ग्रहण करो। भारतवर्षमें
लोगोंकी तपस्याका फल व्यर्थ नहीं होता। मनुष्यको
अध्ययनके पश्चात् पहले गृहस्थ होना चाहिये,
फिर वानप्रस्थ । तत्पश्चात् मोक्षके निमित्त तपस्याका
आश्रय लेना चाहिये । बेदमें यही क्रम सुना गया
है। श्रुतिमे यह भी सुना गया है कि वैष्णवोकि
लिये श्रीहरिकौ पूजा ही तपस्या है । तुम वैष्णव
हो। अतः घरमे रहो और श्रीकृष्ण-चरर्णोकौ
अर्चना करो। बेटा! जिसके भीतर और बाहर