Home
← पिछला
अगला →

पूर्वभागे प्ठमोऽष्याचः |

लोक में बिख्यात हुए। भगवान्‌ नारयण यें परायण होकर

उन्होंने अपनो शाख्ात्तगगंत वेद का अध्ययन किया।

फ्रचेताध्यों पारिषायां प्रजापति:।

दक्षो जहे महाभागो यः पूर्व बरह्मणः सुत:॥५४॥

उन दश प्रचताओं से मारिषा में महान्‌ प्रजापति दक्ष

उत्पन्न हुए थे, जो पहले ब्रह्माजी के पुत्र थे।

मतु दक्षो महेशेत रुद्रेण सह घीमता।

कृत्वा विवादं रुद्रेण शपतः प्राचेतसो3भवत्‌॥ ५ ५॥

वे दक्ष धीमान्‌ महेश सदर के साध विवाद करके रुदर के

द्वार शापग्रस्त होकर प्राचेतस्‌ हो गये थे।

सपायान्तं पहादेवो दक्षौ देव्या गृहं हरः।

दष्टा यथोचितां पूजां दक्षाव प्रददौ स्वयप्‌॥५६॥

तदा वै तमसाविष्ट: सोऽपि ब्रह्मणः सुतः।

एजामनर्हमचिच्छञ्जमाप कृपितों गृहमृ॥ ५७॥

महादेव शिव ने देवी पार्वती के घर आते हुए दक्ष को

देखकर स्वयं उनकी यथोचित पूजा को किन्तु ब्रह्मपुत्र दक्ष

उस समय अत्यधिक क्रोधाविष्ट थे, अतः पूजा को अयोग्य

मानकर वे क्रोधित होकर घर से निकल गये।

कटाचित्स्वगृहं प्राप्तां सती दक्षः सुटु्मनाः।

धरा सह विनिन्तैनां धर्त्सवायास वै रुवा॥५ ८॥

अन्ये जापातरः श्रेष्ठा भर्तुस्तव पिनाङिनः।

त्वपष्यसत्सुताः स्माकं गृहाद्‌ मच्छ यवागतप्‌॥५९॥

किसी समय अपने घर पर आयी हुईं सतौ के सापने

दुःखी मन वाले दक्ष ने क्रोधावेश में पतिसहित उसकी

निन्दा करने लगे थे कि तुम्हारे पति शिव से तो मेरे दूसरे

जामाता अधिक श्रेष्ठ हैं। तुम भी मेरी असत्‌ पुत्री हो। जैसे

आयौ हो बैसो हो घर से निकल जाओ।

तस्य तद्दाक्यपाकर्ण्य स्रा देवौ शङ्करष्रिया।

विनिन्द पितरं दक्षं ददाहात्मानमात्मना॥ ६ ०॥

प्रणाप्य पशुभर्त्तारे धर्तारं कृत्तिवाससम्‌

हिमवहुहिता साभूत्तपसा सस्य तोषिता॥ ६१॥

दक्ष के ऐसे वचन सुनकर शंकरप्रिया दस देवौ पार्वती ने

अपने पिता दक्ष कौ निन्दा की और व्याघ्रचर्म को धारण

करने वाले और समस्त प्राणियों का भरण करने वाले

पशुपतिनाथ को प्रणाम करके अपने से स्व्यं को जला

डाला। इसके बाद हिमालय की तपस्या से संतुष्ट वह देवी

हिमालय को पुत्री पार्वतीरूप में उत्पत्र हुई।

ज्ञात्वा तं भगवान: प्रपन्नार्तिहरो हर:।

शज्ञाप दाक्षं कुपितः सपागत्याय तद्गृहम्‌॥ ६२॥

त्यक्त्वा देहपिपं ब्राह्म॑ क्षत्रियाणां कुले भव।

स्वस्या सुतायां पृडातपा पुत्रपुत्पादयिष्यसि॥ ६ ३॥

अनन्तर ठस सतो को द्ध जानकर भक्तों के क्ट का

हरण करने वाले भगवान्‌ रुद्र महादेव ने कुपित होकर उन्हों

के घर आकर दक्ष को शाप दे दिया- तुम ब्रह्मा से उत्पन्न

इस ब्राह्मण शरीर को त्याग कर क्षत्रिय-कुल में उत्पन्न

होओगे और मूढ़ात्मा होकर अपनी पुत्री में हो पुत्रोत्पादन

करोगे।

एवपुक्त्वा पहादेवो ययौ कैलासपर्वतम्‌।

स्वायम्भुयोऽपि कालेन दक्ष: प्रायेतसोऽपयत्‌॥ दे ४॥

इस प्रकार कहकर महादेव कैलास पर्वत पर आ गये।

स्वायम्भुव दक्ष (ब्रह्मपुत्र होते हए) भी काल आने पर

प्रचेताओं के पुत्ररूप में उत्पन्न हुए।

एतदः किं सर्वं मनोः स्वायम्भुवस्य तु।

निसर्गं दक्षपर्यन्त शृण्वतां पापनाफानम्‌॥ ६५॥

इस प्रकार आपके समक्ष स्वायम्भुव मनु की दक्षपर्यन्त

सृष्टि का वर्णन मैंने कर दिया जो कथा श्रोताओं के लिए

पापनाशिनी है।

इति श्रीकूर्मपुणाणे पूर्वभागे राजवंशानुकीत्तनि

च्तुलज्ोउप्याय:॥ १४॥

पञ्चदशोऽध्यायः

(दक्षयज्ञ का विष्व)

तैषिषेया उचुः

देवानां दानवानाक्ष गणवोंरगरक्षसाम्‌॥

उत्पत्ति विस्तरादबूहि पूत वैवस्यतेऽन्ते॥ १॥

स शप्तः जञष्पूना पूर्व दक्ष: प्राचेतसों नृष:।

किमकारवीनयहावुदधे श्रोतुमिच्छाम साम्प्रतम्‌॥ २॥

तैमिषारण्यवासी ऋषियों ने कहा- हे सूतजी ! वैवस्वत

मन्वन्तर में देवों-दानवों, गन्धर्व, सर्पों और राक्षसों को

उत्पत्ति जिस प्रकार हुई थी उसका विस्तर पूर्वक वर्णन करें।

पहले भगवान्‌ शम्भु के द्वारा प्राप्त शाप से ग्रस्त उस प्रचेता

के पुत्र राजा दक्ष ने क्या किया था? हे महाबुद्धे! इस समय

वह सब कुछ हम आपसे सुनना चाहते हैं।

← पिछला
अगला →