# श्री लिंग पुराण के ३०१
शची को मेरे से प्राप्त कर लिया है। सो हे रुद्र! तू मुझे
नहीं जानता।
ऐसा कहने पर महादेव ने नेत्र की अग्नि द्वारा उसका
रथ भस्म कर दिया और दृष्टि मात्र से अन्य राक्षसों के
घोड़े, रथ आदि को दग्ध कर दिया। वह दैत्य चलायमान
नहीं हुआ और मरे हुए बान्धवों का सोच भी नहीं किया।
सुदर्शन चक्र से रुद्र को मारने को तैयार हुआ। सुदर्शन
चक्र को चलाने के लिए जैसे ही उसने अपने कन्धे पर
रखा तैसे ही सिर से लेकर पैरों तक दो भाग में कटकर
पृथ्वी पर गिर गया जैसे वज्र से कटा हुआ पर्वत गिर
गया हो । उसके रक्त से सम्पूर्ण जगत व्यास हो गया और
रुद्र के नियोग से उसका माँस भी रक्त हो गया। वही
रक्त महा रौरव नर्क को प्राप्त हो रक्त का कुण्ड बन
गया। जलन्धर को मरा देखकर सभी देव किन्नर यक्ष
आदि हर्ष से गर्जना करने लगे। हे देव! अच्छा हुआ
अच्छा हुआ आदि कहने लगे।
इस जलन्धर वध को जो कोई पढ़े, सुने या सुनावे
वह शिवजी के गाणपत्य रूप को प्राप्त होता है।
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