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आचारकाण्ड }

माँगा है, वैसा ही सब कुछ होगा। आप नागोंकी दासतासे

अपनी माता विनतको मुक्त करवा सकेंगे। सभी देवताओंको

जीतकर अमृत ग्रहण करनेमें आपको सफलता प्राप्त होगी।

अत्यन्त शक्तिसम्पन होकर आप मेरे बाहन होंगे। विषोंके

चिनाशकौ शक्ति भी आपको प्राप्त होगी। मेरी कृपासे आप

* गरुडपुराणके प्रतिपा विषयोंका निरूपणा +

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मेरे ही माहात्म्यकों कहनेवाली पुराण-संहिताका प्रणयन

करगे । मेरा जैसा स्वरूप कहा गया है, वैसा ही आपमें भी

प्रकट होगा। आपके द्वात प्रणीते यह पुराणसंहिता आपके

*गरुड' नामसे लोकमें प्रसिद्ध होगी।

है विनतासुत । जिस प्रकार देव-देवॉके मध्य मैं ऐश्वर्य

और श्रीरूपमे विख्यात हूँ, उसी प्रकार हे गरुड! सभी

पुराणे यह गरुडमहापुराण भी ख्याति अर्जित करेगा । जैसे

विश्वे मेरा कर्तन होता है, वैसे हो गरूडके नामसे आपका

भी संकीर्तन होगा । है पक्षिश्रेठ! अब आप पेरा ध्यान करके

उस पुराणका प्रणयन करें।

हे रुद्र! मेरे द्वाण यह वरदान दिये जानेके याद इसी

सम्बन्धमें कश्यप ऋषिके द्वारा पूछे जानेपर गरुड़ने इसी

पुराणको उन्हें सुनाया। कश्यपने इस गरुडमहापुराणका श्रवण

करके गारूडीविद्याके बलसे एक जले हुए वृक्षकों भी जीवित

कर दिया था। गरुडने स्वयं (भौ) इसौ विके दवाय अनेक

प्राणियॉंकों जीवित किया था। 'यक्षि ॐ उ स्वाहा ' यह जप

करने “योग्य गारुडी परविद्या है। हे र्द! मेरे स्वरूपसे

परिपूर्ण गरुडद्वारा कहे गये इस गक्डमहापुराणको आप सुनें।

(अध्याय २)

जज व्य ~

गरुडपुराणके प्रतिपाद्य विषर्योका निरूपण

सूतजीने कहा-- हे शौनक ! जिस गस्डमहापुराणको

ब्रह्मा और शिवने भगवान्‌ विष्णुसे, मुनिश्रेष्ठ व्यासने ब्रह्मे

और मैंने व्याससे सुना धा. उसे ही इस नैमिषारण्यरमे आप

सबको प सुना रहा हूँ। इस गरुडमहापुराणके प्रारम्भे

सर्गवर्णन तदनन्तर देवार्चन, तीर्थमाहात्व्य, भुयनयृत्तान्त,

मन्वन्तर, वर्णधर्म, आश्रमधर्म, दानधर्मं, राजधर्मं, व्यवहार,

त्रत, वंशानुचरित, निदानपूर्वक अष्टाङ्ग आयुर्वेद, प्रलय,

धर्म, काम, अर्थ, उत्तम ज्ञाने और भगवान्‌ विष्णुकी

मायामय एवं सहज लौलाओंको विस्तारपूर्वक कहा गवा

है। भगवान्‌ वामुदैवके अनुग्रहे इस गरुडमहापुराणके

उपदेष्टरूपमें श्रीगरुड सब प्रकारसे अत्यन्त सामर्ध्यवान्‌ हो

गये और उसके प्रभावसे उन्होंके वाहन बनकर वे सृष्टि,

स्थिति तथा प्रलयके कारण भी वने गये। देवोंकों जीतकर

(अपनी माताको दासतासे मुक्त करानेके लिये) अमृत प्राप्त

करनेमें भी उन्होंने सफलता प्राप्त कौ।

जित भगवान्‌ विष्णुके उदरमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विद्यमान

है, उसकी क्षुधाकौ भी उन्होंने (अपनो भक्तिसे) शान्त

किया। जिनके दर्शन या स्मरणमात्ररों सर्पोका विनाश

हो जाता है, जिस गारुडमन्त्रके बलसे कश्यप ऋषिने

जले हुए वृक्षकों भी जीवित कर दिया था, उन्हों

हुरिरप गरुड़ने इस गरुड़महापुराणका वर्णन श्रीकश्यपसे

किया था।

है शौनक ! यह श्रोमद्गरुडमहापुराण अत्यन्त पवित्र तथा

पाठ करनेपर सव कुछ प्रदान करनेवाला है। व्यासजीको

नमस्कार करके मैं यथावत्‌ उसे कह रहा हूँ। आप सब

उसको सुनें। (अध्याय ३)

^ य

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