* श्रीहरिके अनेक अबतारोंका संक्षिप्त बर्णन * ३३५
क्योंकि अभ्युदयका समय आनेपर ही पुरुषोंद्वारा | तुमलोगोंका संहार-काल भी समीप ही है; इसीलिये
बड़े-बड़े पराक्रम होते हैँ! जिस समय तुमने | भगवानून तुम्हारे बल, तेज, पराक्रम और माहात्म्यका
अकेले हो भीष्य-जैसे वीर्तोका वध किया था, | पहले ही संहार कर दिवा है। जो जन्म ले चुका
उस समय उनका भी क्या अपनेसे न्यून पुरुषके | है, उसकी मृत्यु निश्चित है। जो ऊँचे चढ़ चुका
द्वारा पराभव नहीं हुआ था? किंतु यह पराजय | है, उसका नीचे गिरना भी अवश्यंभावी है।
कालकी ही देन थीं। भगवान् विष्णुके प्रभावसे | संयोगका अवसान वियोगे हौ होता है और
जिस प्रकार तुम्हारे द्वारा उनकी पराजय हुई, उसी | संग्रह हो जानेके बाद उसका क्षय होना भी
प्रकार लुटेरोंके हाथसे तुम्हें भी पराजित होना | निश्चित बात है। यह समझकर विद्वान् पुरुष हर्ष
पड़ा। वे जगत्पति भगवान् श्रीकृष्ण भिन्न-भिन्न | और शोकके वशीभूत नहीं होते और इतर मनुष्य
शरीरो प्रवेश करके संसारका पालन करते हैं भी उन्हींक आचरणसे शिक्षा लेकर वैसे ही बनते
और अन्तमं सब जीवॉका संहार कर डालते हैं। | हैं।* नरश्रेष्ठ! यह समझकर तुम्हें भाइयोंके साथ
जब तुम्हारे अभ्युदयका समय था, तब भगवान् | सारा राज्य छोड़कर तपस्याके लिये वनम जाना
श्रीकृष्ण तुम्हारे सहायक हो गये थे और जब वह | चाहिये। अब जाओ, धर्मराज युधिष्ठिरसे मेरी ये
समय बीत गया, तब तुम्हारे विपक्षियोंपर भगवान्की | सारी बातें कहो। वीर ! परसोतक अपने भाइयोंके
कृपादृष्टि हुई है। तुम गङ्गानन्दन भीष्मके साथ साथ जैसे भी हो सके घरसे प्रस्थान कर दो।'
सम्पूर्ण कौरबोंका संहार कर डालोगे--इस बातपर | यह सुनकर अर्जुनने धर्मराजके पास जा
पहले कौन विश्वास कर सकता था और फिर | अपनी देखी और अनुभव की हुई सारी बातें
तुम्हें आभीरोंसे परास्त होना पड़ेगा-यह बात | कह सुनायीं। अर्जुनके मुखसे मेरा संदेश सुनकर
कौन मान सकता था। परंतु दोनों ही बातें सम्भव | समस्त पाण्डव परीक्षित्कों राज्यपर अभिषिक्त
हुईं। पार्थं ! यहं सम्पूर्ण भूतोंमें श्रीहरिकी लीलाका | करके वनँ चले गये। मुनिवरो} इस प्रकार
ही विलास है। अतः तुम्हें तनिक भी शोक नहीं | मैंने आपलोगोंसे यदुकुलमें अवतीर्णं भगवान्
करना चाहिये। सम्पूर्ण जगतके स्वामी भगवान् | श्रीकृष्णकी सम्पूर्ण लीलाओंका विस्तारपूर्वक
श्रीकृष्णने हो सम्पूर्ण यादवोंका संहार किया है। | वर्णन किया।
न~
श्रीहरिके अनेक अवतारोंका संक्षिप्त वर्णन
सुनिर्योनि कहा-- मुनिश्रेष्ठ ! आपने श्रीकृष्ण | पुनः वर्णन कीजिये । हमने साधु पुरुषोकि मुखसे
और बलरामका कैसा अद्भुत माहात्म्य बतलाया! सुना है कि पुरार्णोमे अमिततेजस्वी भगवान्
उनकी महिमा अलौकिक है। इस पृथ्वीपर् | विष्णुके वाराह अवतारका वर्णन है । ब्रह्मन्!
भगवान्के माहात्म्यकी चर्चा अत्यन्त दुर्लभ है । | भगवान् नारायणने किस प्रकार वाराहरूप धारणं
पहाभाग ! आपके मुखसे भगवत्कथा सुनते-सुनते | किया? और किस प्रकार अपनी दंष्टासे एकार्णवे
हमें तृप्ति नहों होती, अत: उनकी लीलाओंका | डूबी हुई पृथ्वीका उद्धार किया? सबको अपनी
~~~ थी ~~ ~ ~
* जातस्य निवतो मृत्युः पतनं च तधोप्रतः । विप्रयोगावसानस्तु संयोग: संचय: श्चयः॥
विज्ञाय न बुधाः शोकं न हर्षमुपयान्ति ये । तेपामेवेतरे चेष्टं शिक्षन्तः सन्ति तादृशा-॥
(२६२१ ८९-९०)