२६६
* संक्षिप्त ब्रह्मपुराण *
बहुत डरती हूँ। वे ब्रह्मचर्यव्रतके पालने स्थित | करते थे। मुनिकी तपस्याके प्रभावसे वहाँके
हैं। अत्यन्त उग्र है । उनकी तपस्या बहुत तीव्र है ।
वे अग्नि और सूर्यके समान तेजस्वी हैँ । मुझे
अपनी तपस्यामें विध्न डालने आयी हुई जानकर
परम तेजस्वी कण्डुमुनि कुपित हो उठेंगे और
दुःसह शाप दे देंगे।
यह सुनकर इन्द्रने कहा--' सुन्दरी ! मैं कामदेव,
ऋतुराज वसन्त और दक्षिण समीरको तुम्हारी
सहायतामें देता हूँ। इन सबके साथ उस स्थानपर
जाओ, जहाँ वे महामुनि रहते हैं।' इन्द्रका यह
कथन सुनकर मनोहर नेत्रोंबाली प्रम्लोचा कामदेव
आदिके साथ आकाशमार्गसे कण्डुमुनिके आश्रमपर
गयी। वहाँ पहुँचकर उसने एक बहुत सुन्दर वन
देखा। तीव्र तपस्यामें लगे हुए पापरहित मुनिवर
कण्डु भी आश्रमपर ही दिखायी दिये। प्रम्लोचा
और कामदेव आदिने देखा--वह वन नन्दनवनके
समान रमणीय था। सभी ऋतुओंमें विकसित
होनेवाले सुन्दर पुष्प उसकी शोभा बढ़ा रहे थे।
नाना प्रकारके पक्षी वृक्षोंपर बैठकर अपने श्रवणसुखद
कलरबोंसे उस वनको मुखरित कर रहे थे।
अप्सराने क्रमश: सम्पूर्ण वनका निरीक्षण किया।
उस परम अद्भुत मनोहर काननकी शोभा देख
उसके नेत्र आश्चर्य-चकित हो उठे। उसने वायु,
कामदेव और वसन्तसे कहा-'अब आपलोग
पृथक् -पृथक् मेरी सहायता करें।' उन्होंने 'बहुत
अच्छा' कहकर स्वीकृति दे दी। तब प्रम्लोचा
बोली--' अब मैं मुनिके पास जागी । जो इन्द्रियरूपी
अश्वॉंसे जुटे हुए देहरूपी रथके सारथि बने हुए
हैं, उन्हें आज कामबाणसे आहत करके ऐसी
दशाको पहुँचा दूँगी कि मनरूपी बागडोर उनके
काबूसे बाहर हो जायगी । इस प्रकार उन्हें मैं
अयोग्य सारथि सिद्ध कर दिखाऊँगी।' यों कहकर
वह उस स्थानकौ ओर चल दी, जहाँ मुनि निवास
हिंसक जीव भी शान्त हो गये थे। नदीके तटपर,
जहाँ कोयलकी मीठी तान सुनायी देती थी, वह
उहर गयी। थोड़ी देरतक तो वह खड़ी रही, फिर
उसने संगीत छेड़ दिया। इसी समय वसन्ते भी
अपना पराक्रम दिखाया। समय नहीं होनेपर भी
समस्त काननमें मधु-ऋतुकी मनोहर शोभा छा
गयी। कोकिलकी काकलीसे माधुर्यकी वर्षा होने
लगी। मलयवायु मनोहर सुगन्ध लिये मन्द-मन्द
गतिसे बहने लगी और छोटे-बड़े सभी वृक्षौके
पवित्र पुष्प धीरे-धीरे भूतलपर गिरने लगे। कामने
अपने फूलोंका बाण सँभाला और मुनिके समीप
जाकर उनके मनको विचलित कर दिया। संगीतकी
मधुर ध्वनि सुनकर मुनिके मनमें बड़ा आश्चर्य
हुआ। वे कामबाणसे अत्यन्त पीड़ित हो जहाँ
सुन्दरौ अप्सरा गीत गा रही थी, गये। मुनिने
अप्सराको देखा और अप्सराने भी मुनिपर दृष्टिपात
किया। उनके नेत्र आश्चर्यसे खिल गये। चादर
खिसककर गिर पड़ी। मुनिके मनमें विकलता छा
गयी। उनके शरीरमें रोमाञ्च हो आया। वे पूछने
लगे-' सुन्दरौ! तुम कौन हो? किसकी हो?
तुम्हारी मुसकान बड़ी मनोहर है। सुभ्रू! तुम मेरे
मनको मोहे लेती हो। सुमध्यमे! अपना सच्चा
परिचय दो।'
प्रम्लोचा बोली--मुने ! मैं आपकी सेविका हूँ
और फूल लेनेके लिये यहाँ आयी हूँ। शीघ्र आज्ञा
दीजिये। मैं आपकी क्या सेवा करूँ?
अप्सराकी यह बात सुनकर मुनिका धैर्य छूट
गया। उन्होंने मोहित होकर उसका हाथ पकड़
लिया और उसे साथ लेकर अपने आश्रममें प्रवेश
किया। यह देख कामदेव, वायु और वसन्त
कृतकृत्य हो जैसे आये थे, उसी प्रकार स्वर्गको
लौट गये। वहाँ पहुंचकर उन्होंने इन्द्रसे प्रम्लोचा