+ प्रकृतिखण्ड + १६९
इस प्रकार स्तुति करके लक्ष्मीकान्त भगवान् | तुलसीकी भक्तिभावसे पूजा करता है, वह सम्पूर्ण
श्रीहरि वहीं बैठ गये। इतनेमें उनके सामने साक्षात् | पापोंसे मुक्त होकर भगवान् विष्णुके लोकमें चला
तुलसी प्रकट हो गयी। उस साध्वीने उनके | जाता है। जो कार्तिक महीौनेमें भगवान् विष्णुको
चरणोंमें तुरंत मस्तक झुका दिया। अपमानके | तुलसोपत्र अर्पण करता है, वह दस हजार
कारण उस मानिनीकी आँखोंसे आँसू बह रहे | गोदानका फल निश्चितरूपसे पा जाता है। इस
थे; क्योंकि पहले उसे बड़ा सम्मान मिल चुका | तुलसीनामाष्टकके स्मरणमात्रसे संतानहीन पुरुष
था। ऐसी प्रिया तुलसीको देखकर प्रियतम | पुत्रवानू बन जाता है। जिसे पत्नी न हो, उसे
भगवान् श्रीहरिने तुरंत उसे अपने हृदयमें स्थान | पत्री मिल जाती है तथा बन्धुहीन व्यक्ति
दिया। साथ ही सरस्वतौसे आज्ञा लेकर उसे अपने | बहुत-से बान्धर्वोको प्राप्त कर लेता है । इसके
महलमें ले गये। उन्होने शीघ्र ही सरस्वतीके | स्मरणसे रोगी रोगमुक्त हो जाता है, बन्धनमें
साथ तुलसीका प्रेम स्थापित करवाया। साथ ही | पड़ा हुआ व्यक्ति छुटकारा पा जाता है, भयभीत
भगवानने तुलसीको वर दिया-' देवि! तुम | पुरुष निर्भय हो जाता है और पापौ पापोंसे मुक्त
सर्वपूज्या ओर शिरोधार्या होओ। सब लोग तुम्हारा | हो जाता है ।
आदर एवं सम्मान कर ।' भगवान् विष्णुके इस नारद! यह तुलसी-स्तोत्र बतला दिया। अब
प्रकार कहनेपर वह देवी परम संतुष्ट हो गयी। | ध्यान और पूजा-विधि सुनो | तुम तो इस ध्यानकों
सरस्वतीने उसे हदयसे लगाया और अपने पास | जानते ही हो। बेदकी कण्व-शाखामे इसका
बैठा लिया। नारद! लक्ष्मी और गङ्गा इन दोनों | प्रतिपादन हुआ है । ध्यानमें सम्पूर्णं पापोंको नष्ट
देवियोंने मन्द मुस्कानके साथ विनयपूर्वक साध्वी करनेकी अबाध शक्ति है। ध्यान करनेके पश्चात्
तुलसौका हाथ पकड़कर उसे भवनमें प्रवेश बिना आवाहन किये भक्तिपूर्वक तुलसीके वृक्षमें
कराया । वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपूजिता, विश्चपावनी,
पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी-ये |
देवौ तुलसौके आठ नाम हैं। यह सार्थक
= स्तोत्रके रूपमे परिणत है । जो पुरुष
तुलसीकी पूजा करके इस “नामाष्टक ' का पाठ
करता है, उसे अश्वमेध-यज्ञका फल प्राप्त हो
जाता है।* कार्तिककी पूर्णिमा तिधिको देवौ
पोडशोपचारसे इस देवीकी पूजा करनी चाहिये ।
परम साध्वी तुलसी पुष्पोंमें सार हैं। ये
पूजनीया तथा मनोहारिणी हैं। सम्पूर्ण पापरूपी
ईधनको भस्म करनेके लिये ये प्रज्वलित अप्रिकौ
लपटके समान हैं। पुष्पोमे अथवा देवियोंमें
किसीसे भी इनकी तुलना नहीं हो सको।
इसीलिये उन सब पवित्ररूपा इन देवीको तुलसी
तुलसीका मङ्गलमय प्राकट्य हुआ और सर्वप्रथम | कहा गया। ये सबके द्वारा अपने मस्तकपर धारण
भगवान् श्रीहरिने उसकी पूजा सम्पन्न की। जो | करने योग्य हैं। सभीको इन्हें पानेकी इच्छा रहती
इस कार्तिकी पूर्णिमाके अवसरपर विश्वपावनी | है । विश्वको पवित्र करनेवाली ये देवी जीवन्मुक्त
यस्या देव्यास्तुला नास्ति विश्वेषु निखिलेषु च । तुलसी तैन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम् ॥
कृष्णजीवनरूपा या शश्रत्परियतमा सतौ । तेन कृष्णजीवनोति मम रक्षतु जौवनम्॥
(प्रकृतिखण्ड २२। १८-२६)
*यृद्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी । पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी॥
नामार्थसंयुतम् । यः पठेत् तां च सम्पूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेतू॥
(प्रकृतिखण्ड २२। ३३-३४)
एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्र