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परशुराम द्वारा द्विज-सुत रक्षण ] [ १७३

हिरण्यगभं रूप भगवानु हर के लिये नमस्कार दहै ।२०। सम्पूणं लोकों की

स्थिति के वास्ते व्यापार करने वाले-सत्व विज्ञान के स्वरूप से समन्वित

प्रत्यगात्मा--पर और विश्वात्मा के लिए मेरा प्रणाम निवेदित है १२१।

तमोगुणविकाराय जगत्संहारकारिणे ।

कल्पान्ते रुद्ररूपाय परापरविदे नमः ॥२२

अविका राय नित्याय नमः सदसदात्मने ।

बुद्धिबुदि प्रबोधाय बुद्धींद्रियविकारणे ॥\२३

वस्वादित्यमरुद्भिश्च साध्यरुद्राश्विभेदत: ।

यन्मायाभिन्नमतयो देवास्तस्मै नमोनमः ॥२४

अविकारमजं नित्यं सृक्ष्मरूपमनौपमम्‌ ।

तव यत्तन्न जानंति योगिनोऽपि संदाऽमलाः ।२५

त्वामविज्ञाय दुज्ञेयं सम्यग््रह्यादयोऽपि हि ।

संसरंति भवे नूनं न तत्कमत्मिकार्चिरम्‌ ॥२६

यावन्नोपंति चरणौ तवाज्ञानविघातिनः ।

तावदुश्रमति संसारे पण्डितोऽचेतनोऽपि वा ।\२७

सएव दक्षः स कृती स मुनिः स च पंडित: ।

भवतश्नरणां भोजे येन बुद्धिः स्थिरीकृता ॥ २८,

तमोयुण के विकार रूप वाले-इस जगत्‌ के संहार कर्ता-कल्प के

अन्त में श्र रूप वाले और पर तथा अपर के ज्ञाता भगवान्‌ शङ्कुर के लिए

गमस्कार है ।२२। विकारों से रहित-निस्य-सत्‌ और असत्‌ रूप वाले बुद्धि

की बुद्धि के प्रबोध रूप तथा बुद्धि और इन्द्रियो मे विकार करने वाले शम्भु

के लिए प्रणाम है ।२३। वसु-आदित्य और मगदगणों से तथा साध्य रुद्र

ओर अश्विनीकुम। र-इनके भेदो से देवगण भी जिस की माया से भिलन-मति

वाले होते हैं उन परम देव शिव के लिए नमस्कार है और पुन: नमस्कार है

।२४। आपके जिस विकार से रहित-अजन्मा-नित्य और अनुपम सूक्ष्म स्वरूप

को सदा अमल योगीजन भी नहीं जानते हैं ।२५। ब्रह्मा आदि भी दुःख से

जानने के योग्य आपको न जानकर निश्चय ही इस संसाह में संसरण किया

करते हैँ ओर तत्कमेक चिरकालं तक नहीं रहते दँ ।२६। अज्ञान के विधघात

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