॥ ५९९ ) ¡ ममा म \{ ग्रस ण्द्बराण्
पूर्वमेवाटमश्नौषं विजित्य, सकल महीम्, |, ...,. ... ,
सबलो नगरीं प्राप्त. कृतदारो भृवानिति ५५. ..
राज्ञां तु प्रव॒यो धर्मो यत्प्रजाप्रिपालनम्)। जप
भवेति सुखिनो नूनं श प्रतर न् „3
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स. भवानुज्यभरणं परित्यज्य मदंतिकम् । |
५. „भार्यायां सहितो राजन्समायातोऽसि मेवद ॥५५ 0 >
गैमिनिरुवाच- एवमुक्तस्तु मुनिना सगरो राजसक्तम: । , ...
क्रतांजलिपुटो भृत्वा प्रहतं मधुर वेच: ॥५८ , धि
इसके अनन्तर आतिथ्य और विश्रान्ति हौ जाने पर आगे विराग
मान ऋषिको प्रणाम करने के पश्चात् ओवं महामुनि ने राजा से ध्ीरें-धौरे
मृदु व्रचन कहे थे ।५०। है राज़न ! आपके राज्य में बाहिर और भीतर सब,
प्रकार का कुशल-क्षे म:तो हैन ? और, तो धर्मके साथ अपनी मस्तकं प्रजा
की सुरक्षा तो कर,ही रहे हैंन 2? ।५१। आप तीनों बर्गो को जीतने के लिए
उपायों कटारा अच्छी तरह से अभिलापा करते हैं न, ? अपरे द्वारा म॑ली-
भाँति, फ्रेरित गुण.गण आपके लिये फल् दिया. ही. करते दन. ॥५२॥
न.पश्रा8;! यह्ू तो बड़े ही हर्ष कं! बात है कि आपने समस्त ,णत्तओं पर
विजय प्राप्त कर ली है. यह भी बड़े ही प्रसन्तता है कि आत ध्रमं पूर्वक
सम्पूर्णे राज्य की सुरक्षा किया करते हूँ ।५३। जिनकी ध्मे में ही स्थिति
होती है उनको मह्ाालोक. में कोई ,भी..विप्लव नहीं: हुआ करता है । जब वह
फ्र्म: जिसके द्रा अभिरज्षित: होता है तो. क्या वह-स्वयं हो उसकी रक्षा
नहीं किया करता है ? अवश्य धमं उसको सुरक्षित होकर रक्षा,करता है
।५४। यह तो पूर्व में ही, सुल॒- लिया. था कि , आपके सम्पूर्ण जयुन्धरराप्र
विजय प्राप्त करके अपने बज के साथ सपृत्तीक अपनी,- नगरी में प्राप्त हो
गये हैं ।५५। राजाओं का हो दी प्रमश्रष्ठ धमं होता है कि इनके द्वारा
अपनी प्रजा का परिपालन किया जाता है । ऐसे ही. नष -निएचय ही इस
लोक में और परलोक में सुखी हुआ हैं ।५६! गिते राजा आप हैं फिर
राज्य के भरण का त्याग करके इसे समय में मेरे, संभीप में
समागत हए हैं और दोनों परतिनेयों को भी साथ में लेकर आये र राजन् !
क्या कारण है मघे आहस आंममन! का जो भी कारण दहो बतलाइईसे ।५७।
जौमिनी मुनि ने कहन्ना--उसः सुनि के द्वारा;इस - रीक्नि से दानाः से-धूछा था
तो उस परम श्र नप सगर ने दोनों. करों.को जोड़कर उनसे मध्चुर वचर्तों
में निविदन किया, था।शदे। „क 5 5५. पे, : ॥