दो सौ बीसवाँ
पुष्कर कहते हैं-- अभिषेक हो जानेपर उत्तम
राजाके लिये यह उचित है कि वह मन्त्रीको साथ
लेकर शत्रुओऑंपर विजय प्राप्त करे। उसे ब्राह्मण या
क्षत्रियको, जो कुलीन और नीतिशास्त्रका ज्ञाता
हो, अपना सेनापति बनाना चाहिये । द्वारपाल भी
नीतिज्ञ होना चाहिये। इसी प्रकार दूतको भी
मृदुभाषी, अत्यन्त बलवान् और सामर्थ्यवान् होना
उचित है ॥ १-२॥
राजाको पान देनेवाला सेवक, स्त्री या पुरुष
कोई भी हो सकता है । इतना अवश्य है कि उसे
एजभक्त, क्लेश-सहिष्णु ओर स्वामौका प्रिय
होना चाहिये। सांधिविग्रहिक (परराष्ट्सचिव' )
उसे बनाना चाहिये, जो संधि, विग्रह, यान,
आसन, द्धी भाव और समाश्रय--इन छहों गुणोंका
समय और अवसरके अनुसार उपयोग करनेमें
निपुण हो। राजाकी रक्षा करनेवाला प्रहरी हमेशा
हाथमें तलवार लिये रहे। सारथि सेना आदिके
विषयमे पूरी जानकारी रखे। रसोइयोंके अध्यक्षको
राजाका हितैषी और चतुर होनेके साथ ही सदा
रसोईघरमें उपस्थित रहना चाहिये। राजसभाके
सदस्य धर्मके ज्ञाता हों । लिखनेका काम करनेवाला
पुरुष कई प्रकारके अक्षरोंका ज्ञाता तथा हितैषी
हो । द्वार-रक्षामें नियुक्त पुरुष ऐसे होने चाहिये,
जो स्वामीके हितमें संलग्न हों और इस बातकौ
अच्छी तरह जानकारी रखें कि महाराज कब-कब
उन्हें अपने पास बुलाते हैं। धनाध्यक्ष ऐसा मनुष्य
हो, जो रल आदिकी परख कर सके और धन
बढ़ानेके साधनोंमें तत्पर रहे। राजवैद्यको आयुर्वेदका
पूर्ण ज्ञान होना चाहिये। इसी प्रकार गजाध्यक्षको
भी गजविद्यासे परिचित होना आवश्यक है।
|
२११.
अध्याय
राजाके द्वारा अपने सहायकोंकी नियुक्ति ओर उनसे काम लेनेका ठंग
हाथी -सवार परिश्रमसे थकनेवाला न हो । घोड़ोंका
अध्यक्ष अश्चविद्याका विद्वान् होना चाहिये।
दुर्गके अध्यक्षको भी हितैषी एवं बुद्धिमान् होना
आवश्यक है । शिल्पी अथवा कारीगर वास्तुविद्याका
ज्ञाता हो। जो मशीनसे हथियार चलाने, हाथसे
शस्त्रोंका प्रयोग करने, शस्त्रको न छोड़ने, छोड़े
हुए शस्त्रको रोकने या निवारण करनेमें तथा
युद्धकी कलाम कुशल और राजाका हित चाहनेवाला
हो, उसे ही अस्त्राचार्यके पदपर नियुक्त करना
चाहिये। रनिवासका अध्यक्ष वृद्ध पुरुषको
बनाना चाहिये । पचास वर्धकी स्त्रियँ ओर सत्तर
वर्षके बूढ़े पुरुष अन्तःपुरके सभी कार्योमिं लगाये
जा सकते हैं। शस्त्रागारमें ऐसे पुरुषको रखना
चाहिये, जो सदा सजग रहकर पहरा देता रहे।
भृत्योंके कार्योकों समझकर उनके लिये तदनुकूल
जीविकाका प्रबन्ध करना उचित है। राजाको
चाहिये कि वह उत्तम, मध्यम और निकृष्ट
कार्योका विचार करके उनमें ऐसे ही पुरुषोंकों
नियुक्त करें। पृथ्वीपर विजय चाहनेवाला भूपाल
हितैषी सहायकोंका संग्रह करे। धर्मके कार्योमिं
धर्मात्मा पुरुषोंको, युद्धमें शूरवीरोको और
धनोपार्जनके कार्योमें अर्थकुशल व्यक्तियोंको
लगाबे। इस बातका ध्यान रखे कि सभी कार्योमें
नियुक्त हुए पुरुष शुद्ध आचार-विचार रखनेवाले
हों॥ ३--१२॥
स्त्रियॉँंकी देख-भालमें नपुंसकोंको नियुक्त
करे। कठोर कर्मांमें तीखे स्वभाववाले पुरुषोंको
लगाबे। तात्पर्य यह कि राजा धर्म-अर्थ अथवा
कामके साधनमें जिस पुरुषको जहाँके लिये शुद्ध
एवं उपयोगी समझे, उसकी वहीं नियुक्ति करे।
* वह मन्य्री, जिसको दूसरे देशके राजाओंसे सुलहकी ब्रातचीत करने या युद्धः ठेडनेका अधिकार दिया गया हो।