३५६
* पुराणं परमं पुण्ये भविष्यं सर्वसौख्यदम् के
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु
क काक # ह हक हक कक # # #क % क + # # #% # १४% कका क जरणा कक अक
न तो झओकरूप फलका भागी होना पड़ता है, न व्याधि ओर
दरिद्रता ही घेरती है तथा न बन्धनम ही पड़ना पड़ता है । यह
प्रत्येक जन्मे विष्णु अधवा जिवका भक्त होता है । राजन् !
जबतक एक सौ आठ सहल युग नहीं बीत जाते, तबतक वह
स्वर्गल्मेकमें निवास करता है और पुण्य-क्षीण होनेपर पुनः
भूतलपर राजा होता है।
भगवान् श्रीकृष्णने पुन: कहा--महाराज ! बहुत
पहले रथन्तरकल्पमें पुष्पवाहन नामका एक राजा हुआ था, जो
सम्पूर्ण लोकम विख्यात तथा तेजमें सूर्यके समान था । उसकी
तपस्यासे संतुष्ट होकर ब्रह्माने उसे एक सोनेक्र कमल (रूप
विमान) प्रदान किया था, जिससे वह इच्छानुसार जहाँ-कहीं
भी आ-जा सकता था। उसे पाकर उस्र समय राजा पुष्पवाहन
अपने नगर एवं जनपदवासियोंके साथ उसपर आरूढ़ होकर
खेच्छानुसार देवल्लेकमें तथा सातों द्वीपोंमें विचरण किया
करता था। कल्पके आदिमे पुष्करनिवासी उस पुष्पवाहनका
सातवें द्वीपपर अधिकार था, इसीलिये च्छक उसकी प्रतिष्ठा
थी और आगे चलकर वह द्वीप पुष्करद्वीफ्के नासे कहा जाने
छूगा । चकि देवेश्वर ब्रह्माने इसे कमलरूप विमान प्रदान किया
था, इसलिये देवता एवं दानव उसे पुष्पवाहन कहा करते थे ।
तपस्याके प्रभावसे क्ह्माद्वारा प्रदत्त कमलरूप विमानपर आरूढ़
होनेपर उसके लिये त्रिल्मेकीमें कोई भी स्थान अगम्य न था।
नरेन्द्र उसकी पत्ीका नाम लावण्यवती था। वह अनुपम
सुन्दरी थी तथा हजारों नारियोंद्रारा चारों ओरसे साद्व होती
रहती थी । वह राजक्ये उसी प्रकार अत्यन्त प्यारी थी, जैसे
शैकरजीको पार्वतीजी परम प्रिय हैं। उसके दस हजार पुत्र थे,
जो परम धार्मिक और धघनुर्धारियोंमें अप्रगण्य थे। अपनी इन
सारी विभूतियोंपर बारंबार विचारकर राजा पुष्पवाहन विस्मय-
विमुग्ध हो जाता धा। एक बार (भ्रचेताके पुत्र) मुनिवर
वाल्मीकि राजाके यहाँ पधारे। उन्हें आया देखकर राजाने
उनसे इस प्रकार प्रश्न किया--
राजा पुष्पवाहनने पूछा--मुनीद्ध ! किस कारणसे मुझे
यह देवों तथा मानवोद्रार पूजनीय निर्मल विभूति तथा अपने
सौन्दर्यसे समस्त देवाङ्गनाओंको पराजित कर देनेवाली सुन्दरी
भार्या प्राप्त हुई है ? मेरे थोड़े-से तपसे संतुष्ट होकर क्रह्यने मुझे
ऐसा कमल-गृह क्यो प्रदान किया, जिसमें अमात्य, हाथी,
रथसमूह और जनपदवासिर्योसहित यदि सौ करोड़ राजा बैठ
जाये तो भी वे जान नहीं पड़ते कि कहाँ चले गये । वह विमान
तारागणों, सतरेकपाले तथा देवताओकि लिये भी अलक्षित-सा
रहता है। भ्रयेतः ! मैंने, मेरी पुत्रीने अथवा मेरी भार्याने
पूर्वजन्मॉमें कौन-सा ऐसा कर्म किया है, जिसका प्रभाव आज
दिखल्परय पड़ रहा है, इसे आप बतलायें।
तदनन्तर महर्षि वाल्मीकिं राजाके इस आकस्मिक एवं
अद्भुत प्रभावपूर्ण वृत्तान्तको जन्मान्तरसे सम्बन्धित जानकर इस
प्रकार कहने लगे-- "राजन् ! तुम्हारा पूर्वजन्म अत्यन्त भीषण
व्याघके कुलमें हुआ था। एक तो तुम उस कुमे पैदा हुए,
फिर दिन-रात पापकर्ममें भी निरत रहते थे । तुम्हारा शरीर भी
कठोर अरङ्ग संधियुक्त तथा बेडौल धा। तुम्हारी त्वचा
दर्गन्धयुक्त थी ओर नख बहुत बढ़े हुए थे । उससे दुर्गन्ध
निकलती धी और तुम बड़े कुरूप थे। उस जच्में न तो
तुम्हारा कोई हितैषी मित्र था, न पुत्र ओर न भाई-बन्धु हौ थे,
न पिता-माता और वहिन ही धी । भूपाल ! केवल तुम्हारी यह
परम प्रियतमा पत्नी ही तुम्हारी अभीष्ट परमानुकूछ सैगिनी थी ।
एक बार कभी भयंकर अनावृष्टि हुई, जिसके कारण अकाल
पड़ गया। उस समय भूखसे पीड़ित होकर तुम आहारकी
खोजमें निकले, परंतु तुम्हें कुछ भी जंगली (कन्द-मूल) फल
आदि कोई खाद्य वस्तु प्राप्त न हुई । इतनेमें ही तुम्हारी दृष्टि एक
सरोवरपर पड़ी, जो कमलसमृहसे मण्डित था । उसमें बड़े-बड़े
कमल किले हुए थे। तब तुम उसमें प्रविष्ट होकर बहुसंख्यक
कमल-पुष्पोंको लेकर वैदिश नामक नगर- (विदिशा नगरी-)
में चले गये। वहाँ तुमने उन कमल-पुष्पोको बेचकर मूल्य-
प्राप्तिके हेतु पुरे नगरमे चक्र लगाया। सारा दिन बीत गया,
पर उन कमल-पुष्पोंका कोई खरीददार न भित्र । उस समय
६-वाल्मीकीय रामायण, उत्तराण्ड ९३ ॥। १७, ९६। १०, १११।११ तथा अध्यात्मशाम्रषण ७।७। ३१, बालख्मायण, उत्तरयामचपिि आदिके
अनुसार 'प्राचेतस' झब्द महर्षि वाल्मीकिका ही वाचक है।
२-यह इतिहास-पुराणादिमें अति प्रसिद्ध विदिश कमकी नदीके तरपर कसा मध्यपदेधके मध्यकालीन इतिहासका बेसनगर, आजकलका भेलस्रा नगर
है। इसपर कवियमका ' भेलस्त टौप्स' प्रथ प्रसिद्ध है।