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३५६ न संक्षिप्त

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इस प्रकार जब सुरेन्द्र आदि देघोनें पहेश्चरकी

स्तुति की और विष्णुने ईशान-सप्बन्धी

मन्लरका जप किया, तव सर्वेश्वर भगवान्‌

दित प्रसन्न हो गये और वृषपर सवार हो

कहीं प्रकट हो गये। उस समय पार्वत्तीपति

'दिवका मन प्रसन्न था। उन्होंने नन्दीश्वरकी

पीठसे उत्तरकर विष्णुका आलिङ्गन किया

और फिर वे नन्दीपर हाथ टेककर खड़े

हो गये और सम्पूर्ण देशताओंकी ओर

कृपाभरी दृष्टिसे देखकर गण्भीर बाणीपें

शीहरिसे बोले ।

हिवजीने कहा--देवश्नेष्ठट ! उन

अधर्मनिष्ठ दैत्योके तीनों पुरोको मैं नष्ट कर

डार्लुगा--इसमें संशय नहीं है; परंतु वे

महादैत्य मेरे भक्त थे और उनका मन सुदृढ

रूपसे मुझमें गा रहता था; अतः यद्यपि

इस समय उन्होंने व्याजलदा उत्तप धर्पका

परित्याग कर दिया है, तथापि क्‍या वे मेरे ही

द्वारा मारने योग्य हैं? इसलिये जिन्होंने

त्रिपुरतासी सारे दैत्योंकों धर्मभ्रष्ट करके मेरी

अक्तिसे विमुख कर दिया है, वे विष्णु

अथवा अन्य कोई ही उन्हें क्‍यों नहीं मारते ?

मुनीश्वर ! दाम्भुके ये क्न सुनकर उन

समस्त देवताओंका तथा श्रीहरिका भी मन

उदासर हो गया । जब सृष्टिकर्ता ब्रह्माने देखा

कि देवताओं और विष्णुकरे मुखपर उदासी

छा गयी है, तव उन्होंने हाथ जोड़कर दाम्भुसे

कहना आरम्भ किया।

ब्रह्माजी बोके--परमेश्वर ! आप

योगक्ेत्ताओमें शरेष्ठ, परत्रह्म तथा सदासे देवों

और ऋषियोंकी रक्षामें तत्पर है; अतः पाप

आपका स्पर्श नहीं कर सकता। साथ ही

आपके आदेझसे ही तो उन्हें मोहे डाला

गया ह । इसके श्रेरक तो आप ही हैं। इस

स्मयं अवक्य ही उन्होंने अपने बर्पका

परित्याग कर दिया है और वे आपकी

भक्तिसे त्रिमुख हो गये हैं; तथापि आपके

सिला दूसरा कोई उनका व्च नहीं कर

सकता। देवों और ऋषियोंके प्राणरक्षक

महादेव ! साथुओऑकी रक्षाके लिये आपक्ते

द्वारा उन स्लेक्छोंका वध उचित है। आप तो

राजा हैं, अतः राजाको धर्मानुसार

पाप्योंका वध करनेसे पाप नहीं लगता;

इसलिये इस काँटेको उस्वाड़कर साधु-

ब्राह्मणोंकी रक्षा कीजिये । राजा यदि अपने

राज्य तथा सर्वल्लोकाशिपत्यक्तों स्थिर रखना

आहता हो तो उसे अपने राज्यमें एवं अन्यन्न

भी ऐसा ही व्यवहार करना चाहिये।

इसलिये आप देवगणोंकी रक्षाके लिये उद्यत

हो जाइत, विस्म्ब मत कीजिये । देवदेवे !

बड़े-बड़े सुनीध्वर, यज्ञ, सम्पूर्ण वेद, झास्त्र,

मैं और विष्णु भी निश्चय ही आपकी प्रजा

हैं। प्रभो ! आप देवताओंके सार्वभौम

सप्राद हैं। ये श्रीहरि आदि देवगण तथा सारा

जगत्‌ आपका ही कुटुष्व है। अजन्मा देव !

श्रीहरि आपके युघराज हैं और में ब्रह्मा

आपका पुरोहित हैँ तथा आपकी आतज्ञाका

पालन करनेवाले दाक्त राजकार्यं सैभालने-

वाले मन्त्री हैं। सर्वेवा ! अन्य देवता भी

आपके शासनके नियन्त्रणे रहकर सदा

अपने-अपने कार्यमें तत्पर रहते है । यह

बिलकुत्ठ स्त्य है।

सनत्कुमारजी कहते हैं--व्यासजी !

ब्रह्माकी यह बात सुनकर सुरपालक परमेश्वर

छिवका पन प्रसन्न हो गया । तन उन्होंने

ब्रह्माजीसे कहा ।

दिवजी बोले--ब्रह्मनू! यदि आप

मुझे देवता ओंका सम्राद्‌ बतलला रहे हैं तो मेरे

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