काण्ड-९ सूक्त ३े ११
मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित और क्रान्तदर्शियों द्वारा प्रमाण से रची गई शाला को सोमपान के स्थल पर बटन वाले
अपरदेव, इद्धारिन संरक्षित करें ॥१९ ॥
२३९२. कुलायेऽभि कुलायं कोशे कोशः समुब्जित: ।
तत्र मर्तो वि जायते यस्माद् विशं प्रजायते ॥२० ॥
घोंसले में घोंसला (घर में कमरे अथवा देह में गर्भाशय) रै, कोशो त काश (कमर ग कमरा अथवा जोव
कोशो से जीवकोश) भली प्रकार सम्बद्ध है । वर्हा प्राणधारो जीवो के मरणधर्मा शरीर विभिन्न प्रकार से उत्पत्र
होते हैं, जिनसे सम्पूर्ण विश्व प्रजायुक्त होता जाता है ॥२० ॥
२३९३. या द्विपक्षा चतुष्यक्षा षट्पक्षा या निमीयते ।
अष्टपक्षां दशपक्षां शालां मानस्य पत्नीमण्निर्ग भ इवा शये ॥२९ ॥
दो पक्षों ( पहलुओं या खण्डो ) बाली, चार पक्षों, छह पक्षों, आठ पक्षों तथा दस पक्षो वाली शाला (यज्ञशाला)
निर्भित को जातो है । उस मानपतली (शाला) में हम उसी प्रकार आश्रय लेते हैं, जिस प्रकार गर्भ गृह में अग्नि स्थित
रहती है ॥२१ ॥
[ वास्तुकला के अनेक एकां का वर्णन इस मंत्र पें किया गया है । उस काल पें घी आवश्यकतानुसार अनेक आकार-प्रकार
के गृह विनिर्षित होते वे ||
२३९४. प्रतीचीं त्वा प्रतीचीनः शाले प्रैम्यहिंसतीम्। अग्नि न्तरापश्चर्तस्य प्रथमा द्वा: ॥
शाले ! पश्चिम की ओर मुख करने वाले हम पश्चिमाभिमुखं स्थित और हिंसाभाव से रहित शाला में प्रवि?
होते है । ऋत (सत्य या यज्ञ) के प्रथम द्वार में हम अग्नि एवं जल के साथ प्रवेश करते हैं ॥२२ ॥
२३९५. इमा आपः प्र भराम्ययक्ष्मा यक्ष्मनाशनी: । गृहानुप प्र सीदाम्यमृतेन सहाग्निना ॥
इन रोगरहित यक्ष्मारोंग के नाशक जल को हम शाला में भरते हैं और अमृतमय अग्नि के साथ घर के
समीप ही हम नटते हैं ॥२३ ॥
२३९६.मा नः पाशं एति मुचो गुरुर्भारो लघुर्भव। वधूमिव त्वा शाले यत्न कामं भरामसि॥
हे शाले ! नव-विवाहित कन्या (वधू) के समान हम तुझे सुसज्जित करते है, आप अपने पाशो को हमारों
ओर पत फेंकना । आपका भारौ बोझ हलका हो जाए ॥२४ ॥
२३९७. प्राच्या दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाहयभ्यः॥२५॥
शाला की पूर्वदिशा की महिमा के लिएनमन हैं, श्रेप्ठ प्रशंसनीय टेत्रों के निभित्त यह आहूति समर्पित हो ॥२५॥|
२३९८. दक्षिणाया दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥२६ ॥
शाला की दक्षिण दिशा की महिमा के लिए हारा नमन है, श्रेष्ठ देवों के निधित्त यह आहुति समर्पित हो ॥२६।\
२३९९. प्रतीच्या दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाहो भ्य: ॥२७ ॥
शाला कौ पक्षिप दिशा की महत्ता के निमित्त हमारा वन्दन है. श्रेष्ट प्रशंसनीय देवों के लिए यह श्रेष्ठ
उक्ति समर्पित हो ॥२७ ॥
२४००. उदीच्या दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥२८ ॥
शाला की उत्तर दिशा की महिमा के निमित्त हमारा वन्दन है, श्रेष्ठ पूजनीय देवों के लिए यहं श्रेष्ठ
कथन समर्पित हो ॥२८ ॥
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