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८.१० युद संहिता

३४६. युवं तमिन्द्रापर्वता पुरोयुधा यो नः पृतन्यादप तं तमिद्धतं वत्रेण तं तमिद्धतम्‌ । दुरे

चत्ताय छन्त्सद्रहनं यदिनक्षत्‌ । अस्माक श्रि शूर विश्वतो दर्मा दर्षीष्ट विश्वतः ।

भूर्भुवः स्वः सुप्रजाः प्रजाभिः स्याम सुवीरा वीरं: सुपोषा: पोषैः ॥५३ ॥ ।

युद्ध-क्षेत्र में आगे बढ़कर पराक्रम दिखाने वाले हे इन्द्रापर्वत देवो ! आप दोनों युद्ध करने वाले प्रत्येक शत्रु

को अपने तीक्ष्ण वज के प्रहार से यमलोक पहुँचाएँ । हे वीर ! शत्रुओं द्वारा चारों ओर से घिर जाने पर, हमें उनसे

मुक्त करां । पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग तीनों लोकों में व्याप्त हे देव आपके अनुग्रह से हम सभी याजक श्रेष्ठ,

बीर-पराक्रमी सन्तानो से युक्त होकर अपार धन-वैभव से लाभान्वित हों ॥५३ ॥

३४७. परमेष्ठ््चभिधीतः प्रजापतिर्वाचि व्याइतायामन्धो अच्छेतः। सविता सन्यां

विश्वकर्मा दीक्षायां पृषा सोमक्रयण्यामिन्द्रश्न ॥५४ ॥

(हे याजको !) हे यज्ञ में प्रयुक्त "परमेष्टी ' नाप वाले 'सोम' ! आप के लिए , (विघ्नो की उपस्थिति पर)

“परमेष्ठिने स्वाहा” मंत्र से आज्याहुति दी जाए । स्तुति किये जाने पर प्रजापति नामर वाले सोम के लिए (विघ्नो

की उपस्थिति पर) "प्रजापतये स्वाहा” मंत्र से आज्याहुति दें । सोम के अभिमुख होने पर 'अन्धनामं' होने से

(यजमान किसी विध्नोपस्थिति पर) “अन्धसे स्वाहा” मन्त्र से आज्याहति अर्पित करें । सब के पोषक-संरक्षक

सोम ' सविता" नाम होने पर ( किसी विध्नोपस्थिति में ) “सविश्रे स्वाहा” मन्रोच्चवारण से आज्याहति दें । दीक्षा

में सोम का विश्वकर्मा नाम होने से (विध्नागमन पर) “विश्वकर्मणे स्वाहा" पचर से आज्याहूति अर्पित करें ।

आरोग्यवर्द्धक किरणों को लाने वाले सोम के पूषा नापर होने पर “पृष्णे स्वाहा” मन्त्र से आज्यादुति दी जाए ॥५४ ।

३४८. इन्द्रश्च मरुतश्च क्रयायोपोत्थितोसुर: पण्यमानो मित्र: क्रीतो विष्णुः शिपिविष्ट5

ऊरावासन्नो विष्णुर्नरन्धिषः ॥५५ ॥

खरीदने के लिए तत्पर होने पर सोम का इन्द्रदेव और मरुद्देव नाप होने से (अनिष्टोपस्थिति पर)

“इन्द्राय परुद्धय्छम स्वाहा" मनर से आज्याहूति दें । खरीदते समय “असुर' नाम वाले सोम के लिए (अनिष्ट

उपस्थित होने पर) “ असुराय स्वाहा” मंत्र से आज्याहुति दें । मूल्य देकर प्राप्त किया हुआ सोम “मित्र' नाम होते

से (विघ्न आने पर) “मित्राय स्वाहा" मंत्र से आज्याहुति दें । यजमान की गोद में उपलब्ध सोम “विष्णु' नामधारी

होने पर (किसी विध्न-निवारण हेतु) "विष्णवे शिपिविष्टाय स्वाहा” मंत्र से आज्याहुति अर्पित करें । शकट पर

रखकर ले जाया जा रहा सोम, विष्णु नाम से जाना जाता हैं । (कोई विघ्न आने पर) “विष्णवे नरन्धिषाय स्वाहा”

मंत्र से आज्याहुति प्रदान करें ॥५५ ॥

३४९. प्रोह्यमाणः सोमऽ आगतो वरुण 5 आसन्द्यामासन्नोग्निराम्नीश्चऽ इन्द्रो हविधनि

थर्वोपावहियमाणः ॥५६ ॥

गाड़ी द्वारा आने वाला सोम 'सोम' नाम से ही जाना जाता है, उसे (किसी विष्नोपस्थिति पर) " सोमाय स्वाहा”

मंत्र से आज्याहुति अर्पित करे । चौकी पर सुरक्षित सोम 'बरुण' नाम होने पर (किसी विध्नागमन की स्थिति ये)

“वरुणाय स्वाहा" मंत्र से आज्याहूति दें । आग्नीध में सन्निहित सोम “अग्नि नाम होने पर (विध्नोपस्थिति पर)

“ अम्नये स्वाहा" मंत्र से आज्याहुति अर्पित करें । हविष्यात्र के रूप वाला सोम 'इन्द्र' ग्राम से जाना जाता है ।

उसे ( किसी विध्नोपस्थिति में ) "इनदराय स्वाहा" मत्र से आज्याहुति दें । अभिषव के लिए प्रस्तुत सोम "अथर्व"

नाम होने पर (किसी वि्नोपस्थिति पर) “अश्वाय स्वाह“ से आज्याहुति दें ॥५६ #

३५०. विश्वे देवाऽ अ&शुषु न्युप्तो विष्णुराप्रीतपा5 आप्यान्यमानो यम: सूयमानो विष्णुः

सम्ध्रियमाणो यायुः पूयमानः शुक्रः पूतः शुक्र: क्षीरश्रीम॑न्धी सक्तुश्रीः ॥५७ ॥ नि

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