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सुर्येक्श वर्णन ] [ ६७

वह अब लंघम करने के योग्य नहीं है ।€। इक्ष्वाकु के द्वारा किये गये

अश्वमेध से जो भी फल होगा उसको हम दोनों को देकर वहू वीर बिना

ही किसी संशय के किम्पुरुष हो जायगा ।१०। तथास्तु अर्थात्‌ ऐसा ही

होगा । यह कहकर वे सब वेवस्व्त मनु के पुत्र वहाँ से चल दिये थे |

इक्ष्वाकु ने फिर अश्वमेघ यज्ञ किया था और उससे वह इल किम्पुरुष हो

गया था ।६१। इसका भी यह परिणाम हुआ था कि वह एक मास

तक तो नारी होकर रहा करता था और एक मास तब पुरुष बन

कर जीवन बिताता था । जिस समय में यह बुध के भवन स्थित रहा

था और नारी के रूप में था उसी समय में इल ने गर्भ धारण कर लिया

था ।१२। फिर इसने अनेक सश्गुण गुण से समन्वित एक पुत्रको जन्म

दिया था । बुध ने उस पुत्र को इसके उदर से समुत्पादित करके वह

फिर स्वर्लोक को चले गये थे ।१३। उध्ती समय में इल के नाम से वह

वषं इलावृत इस नाम से प्रसिद्ध द्वों गया था | सोम और सूर्य के वंश

में यही इल सबसे प्रथम मनु का पुत्र हुआ था ।१४।

एवं पुरूरवाः पुत्तोरभवद्ध शवद्धंन: ।

इक्ष्वाकुरकंवंशस्य तथैवोक्तस्तपोधना: ।।१५

इलः किम्पुरुषत्वे च सुद्युम्न इति चोच्यते ।

पुनः पुवत्रयमभूत्‌ सद्य. म्नस्याप राजितम्‌ ।।१६

उत्कलो वै गयस्तद्वद्धरिताश्वश्च वीर्य्यवान्‌ ।

उत्कलस्योत्कलानाम गवस्यतुगयामताः १७

हरिताश्वस्य दिकपूर्वो विश्रुता कुरुभिः सह्‌ ।

प्रतिष्ठानेऽभिषिच्याथ स पुरूरवसं सुतम्‌ १८

जगामेलाबृत भोक्तु वषं दिव्यफलाशनम्‌ ।

दक्ष्वाकु्ज्येष्ठदायादो मध्यदेशमवाप्तवान्‌ ।। १६

नरिष्यन्तस्य पुच्ाऽभ्‌च्छचौ नाम महाबलः ।

नाभागस्याम्बरीषस्तु धृष्टस्य च सुतत्रयम्‌ ।)२०

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