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+ अध्याय ४ड४॑*

कारीगरोंके साथ यज्ञका चरु भक्षण करके रातमें | फिर अस्त्रकी भी पूजा करे।

सोते समय स्वप्र-मन्त्रका जप करे। "जो समस्त

प्राणियोंके निवास-स्थान हैं, व्यापक हैं, सबको

उत्पन्न करनेवाले हैं, स्वयं विश्वरूप रहै और

सम्पूर्ण विश्व जिनका स्वरूप है, उन स्वप्रके

अधिपति भगवान्‌ श्रीहरिको नमस्कार है। देव!

देवेश्वर! मैं आपके निकट सो रहा हूँ। मेरे मनमें

जिन कार्योका संकल्प है, उन सबके सम्बन्धमें

मुझसे कुछ कहिये ' ॥ २२--२४॥

"ॐ (३ टं फट्‌ विष्णवे स्वाहा ।' इस प्रकार

मन्त्र-जप सो जानेपर यदि अच्छा स्वप्र हो

तो सब शुभ होता है और यदि बुरा स्वप्र हुआ

तो नरसिंह-मन्त्रसे हवन करनेपर शुभ होता है ।

सबेरे उठकर अस्त्र-मन््रसे शिलापर अर्ध्यं दे।

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कुदाल (फाबड़े),

टंक और शस्त्र आदिके मुखपर मधु और घी

लगाकर पूजन करना चाहिये। अपने-आपका

विष्णुरूपसे चिन्तन करे। कारीगरको विश्वकर्मा

माने और शस्त्रके भी विष्णुरूप होनेकी ही

भावना करे। फिर शस्त्र कारीगरको दे और

उसका मुख-पृष्ठ आदि उसे दिखा दे ॥ २५--२७॥

कारीगर अपनी इन्द्रियोंको वशमें रखे और

हाथमें टंक लेकर उससे उस शिलाको चौकोर

बनावे। फिर पिण्डी बनानेके लिये उसे कुछ

छोटी करें। इसके बाद शिलाको वस्त्रमे लपेटकर

रथपर रखे और शिल्पशालामें लाकर पुनः उस

शिलाका पूजन करे। इसके बाद कारीगर प्रतिमा

बनावे ॥ २८-२९॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'मच्दिरके देवताकी स्थापना, भूतशान्ति शिल्म-लक्षण और

प्रतिमा-विर्माण आदिका निरूपण” कामक तँतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ४२॥

=^.

चौवालीसवाँ

अध्याय

वासुदेव आदिकी प्रतिमाओंके लक्षण

भगवान्‌ हयग्रीव बोले-- ब्रह्मन्‌! अब मैं

तुम्हें वासुदेव आदिकी प्रतिमाके लक्षण बताता

हूँ, सुनो। मन्दिरके उत्तर भागमें शिलाको पूर्वाभिमुख

अथवा उत्तराभिमुख रखकर उसकी पूजा करे

और उसे बलि अर्पित करके कारीगर शिलाके

बीचमें सूत लगाकर उसका नौ भाग करे। नवें

भागको भी १२ भागोंमें विभाजित करनेपर एक-

एक भाग अपने अद्भुलसे एक अङ्गुलका होता

है। दो अन्जुलका एक गोलक होता है, जिसे

“कालनेत्र' भी कहते हैं॥१-३॥

उक्त नौ भागोंमेंसे एक भागके तीन हिस्से

करके उसमें पार््गि-भागकी कल्पना करे। एक

भाग घुटनेके लिये तथा एक भाग कण्ठके लिये

भाग भी एक बित्तेका ही होना चाहिये। इसी

प्रकार एक बित्तेका कण्ठ और एक ही बित्तेका

इृदय भी रहे। नाभि और लिङ्गके बीचमें एक

बित्तेका अन्तर होना चाहिये। दोनों ऊरु दो

बित्तेके हों। जंघा भी दो वित्तेकी हो। अब

सूत्रोंका माप सुनो--॥ ४--६॥

दो सूत पैरमें और दो सूत जड्डामें लगावे।

घुटनोंमें दो सूत तथा दोनों ऊरुओं भी दो

सूतका उपयोग करे। लिङ्गे दूसरे दो सूत तथा

कटिमें भी कमरबन्ध (करधन) बनानेके लिये

दूसरे दो सूतोका योग करे। नाभिमें भी दो सूत

काममें लावे। इसी प्रकार हदय और कण्ठमें दो

सूतका उपयोग करे । ललाटमें दूसरे और मस्तके

निश्चित रखे । मुकुटको एक वित्ता रखे । मुँहका | दूसरे दो सूतोंका उपयोग करे। बुद्धिमान्‌ कारीगरोंको

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