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पत्नी है । मुनिवर आस्तीक, जो तपस्तियोंमें श्रेष्ठ
गिने जाते हैं, ये देवी उनकी माता हैं।
नारद! प्रकृतिदेवीके एक प्रधान अंशको
देवसेना" कहते हँ । मातृकाओंमें ये परम श्रेष्ठ
मानी जाती हैं। इन्हें लोग भगवती "षष्ठी! के
नामसे कहते हैं । प्रत्येक लोकें शिशुओंका पालन
एवं संरक्षण करना इनका प्रधान कार्य है। ये
तपस्विनी, विष्णुभक्ता तथा कार्तिकेयजीकी पत्नी
हैं। ये साध्वी भगवती प्रकृतिका छठा अंश रै ।
अतएव इन्हें "षष्ठौ ' देवी कहा जाता है । संतानोत्पत्तिके
अवसरपर अभ्युदयके लिये इन षष्ठी योगिनीकौ
| हों। संग्राममे जब भगवती दुर्गके सामने प्रबल
| राक्षस-बन्धु शुम्भ और निशुम्भ डटे थे, उस
समय ये काली भगवती दुगकि ललाटसे प्रकर
हुई थो । इन्दं दुर्गाका आधा अंश माना जाता
है। गुण और तेजमें ये दुगकि समान ही हैं।
इनका परम पुष्ट विग्रह करोड़ों सूर्योके समान
प्रकाशमान है। सम्पूर्ण शक्तियोंमें ये प्रमुख हैं।
इनसे बढ़कर बलवान् कोई है ही नहीं। ये परम
योगस्वरूपिणी देवी सम्पूर्ण सिद्धि प्रदान करती
हैं। श्रीकृष्णके प्रति इनमें अटूट श्रद्धा है। तेज,
पराक्रम और गुणमें ये श्रीकृष्णके समान हो हैं।
पूजा होती है। अखिल जगत्में बारहो महीने लोग | इनका सारा समय भगवान् श्रीकृष्णके चिन्तनमें
इनकी निरन्तर पूजा करते हैं। पुत्र उत्पन्न होनेपर | ही व्यतीत होता है। इन सनातनी देवीके शरीरका
छठे दिन सूतिकागृहमें इनकी पूजा हुआ करती | रंग भी कृष्ण ही है। ये चाहें तो एक श्वासे
है--यह प्राचीन नियम है। कल्याण चाहनेवाले
कुछ व्यक्ति इक्कीसवें दिन इनकी पूजा करते हैं।
इनकी मातृका संज्ञा है। ये दयास्वरूपिणौ हैं।
निरन्तर रक्षा करनेमें तत्पर रहती हैं। जल, थल,
आकाश, गृह-जहाँ कहौं भो बच्चोंकों सुरक्षित
रखना इनका प्रधान उद्देश्य है ।
प्रकृतिदेवीका एक प्रधान अंश ' मङ्गलचण्डी '
के नामसे विख्यात है । ये मङ्गलचण्डी प्रकृतिदेवीके
मुखसे प्रकट हुई ह । इनकी कृपासे समस्त मङ्गल
समस्त ब्रह्माण्डको नष्ट कर सकती हैं। अपने
मनोरञ्जनके लिये अथवा जगत्को शिक्षा देनेके
विचारसे ही ये संग्राममे दैत्योके साथ युद्ध करती
है। सुपूजित होनेपर धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष-सब कुछ देनेमे ये पूर्ण समर्थ है । ब्रह्मादि
देवता, मुनिगण, मनु प्रभृति ओर मानवसमाज
सब-के-सब इनको उपासना करते हैँ ।
भगवती ' वसुन्धरा भी प्रकृतिदेवौके प्रधान
अंशसे प्रकट हैँ । अखिल जगत् इन्हींपर ठहरा
सुलभ हो जाते है । सृष्टिके समय इनका विग्रह | है। ये सर्व-शस्य-प्रसूतिका (सम्पूर्ण खेतीको
मङ्गलमय रहता है । संहारके अवसरपर ये क्रोधमयी | उत्पन्न करनेवालो) कही जाती हैँ । इन्हें लोग
बन जाती हैं। इसीलिये इन दैवौको पण्डितजन |'रत्नाकरा' और “रत्रगर्भा' भी कहते है । सम्पूर्ण
" पङ्कलचण्डी ' कहते हैँ । प्रत्येक मङ्गलवारको | रत्रोंकी खान इन्हींके अंदर विराजमान है । राजा
विश्वभरमें इनकी पूजा होती टै । इनके अनुग्रहसे | | और प्रजा- सभौ लोग इनकी पूजा एवं स्तुति
साधक पुरुप पुत्र, पौत्र. धन, सम्पत्ति, यश और | करते हैं। सबको जौविका प्रदान करनेके लिये
कल्याण प्राप्त कर लेते हैं। प्रसन्न होनेपर सम्पूर्ण हौ इन्होंने यह रूप धारण कर रखा है। ये सम्पूर्ण
स्त्रियोंक समस्त मनोरथ पूर्ण कर देना इनका सम्पत्तिका विधान करती हैं। ये न रहें तो सारा
स्वभाव ही है। ये भगवती महेश्वरी कुपित होनेपर चराचर जगत् कहीं भी ठहर नहीं सकता।
क्षणमात्रमें विश्वको नष्ट कर सकती है । मुनिवर ! प्रकृतिदेवीकी जो-जो कलाएं है,
देवी 'काली' को प्रकृतिदेवौका प्रधान अंश उन्हें सुनो और ये जिन-जिनकी पत्नियां हैं, वह
मानते हैं। इन देवीके नेत्र ऐसे हैं, मानो कमल | सब भी मैं तुम्हें बताता हूँ। देवौ ' स्वाहा ` अग्निकी