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अध्याय २०७ ]

तथा दीक्षा ग्रहण करनेसे उत्तम कुलमें जन्म मिलता

है। फल और मूल खाकर निर्वाह करनेवाले प्राणी

राज्य एवं केवल पत्तेके आहारपर अवलम्बित

व्यक्ति स्वर्ग प्राप्त करते हैं। पयोत्रत करनेसे स्वर्ग

तथा गुरुकी सेवामें रत रहनेसे प्रचुर लक्ष्मी प्राप्त

होती है। श्राद्ध, दान करनेके प्रभावसे पुरुष पुत्रवान्‌

होते हैं। जो उचित विधिसे दीक्षा लेते अथवा तृण

आदिकी शय्यापर शयन करके तप करते हैं, उन्हें

गौ आदि सम्पत्तियाँ प्राप्त होती हैं। जो प्रातः,

मध्याह और सायंकालमे त्रिकाल स्नानका अभ्यासी

है, वह ब्रह्मको प्राप्त करता है । केवल जल पीकर

तपस्या करनेवाला अपना अभीष्ट प्राप्त कर लेता

है *। सुत्रत! यज्ञशाली पुरुष स्वर्गं तथा उपहार

पानेका अधिकारी है। जो दस वर्षोतक विशेष

रूपसे जल पीकर ही तपस्यामें तत्पर रहते हैं तथा

लवण आदि रासायनिक पदार्थोका सेवन नहीं

करते, उन्हें सौभाग्यकी प्राप्ति होती है। पांस-

त्यागी व्यक्तिकी संतान दीर्घायु होती है। चन्दन

और मालासे रहित तपस्वी मानव सुन्दर स्वरूपवाला

होता है। अनका दान करनेसे मानव बुद्धि ओर

स्मरणशक्तिसे सम्पन्न होता है। छाता दान करनेसे

उत्तम गृह, जूतादानसे रथ तथा वस्त्र-दान करनेसे

सुन्दर रूप, प्रचुर धन एवं पुत्रोंसे प्राणी सम्पन

होते हैं। प्राणियोंको जल पिलानेसे पुरुष सदा तृप्त

रहता है। अन ओर जल-दोनोंका दान करनेके

प्रभावसे प्राणियोंकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।

जो सुगन्धित फूलों एवं फलोंसे लदे हुए वृक्ष

ब्राह्मणको दान करता है, वह सब प्रकारकी

» दान-धर्पका महत्त्व *

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उपयोगी वस्तु्ओंसे भरा गृह प्राप्त करता है ।

सुन्दरौ स्त्रियां ओर अमूल्य रत्र उस गृहमें परिपूर्ण

रहते है । अन्न, वस्त्र, जल और रस प्रदान करनेसे

व्यक्तिको दूसरे जन्मे वे सभी सुलभ होते हैं। जो

ब्रा्म्णोको धूप और चन्दन दान करता है, वह

अगले जन्ममें सुन्दर तथा नीरोग होता है। जो

व्यक्ति किसी ब्राह्मणको अन्न तथा सभी उपकरर्णोसे

युक्त गृह दान करता है, उसे जन्मान्तरमें बहुत-से

हाथी, घोड़े और स्त्री-धन आदिसे परिपूर्णं उत्तम

महल निवास करनेके लिये प्राप्त होते है । धूप

प्रदान करनेसे मानवको गोलोकर्मे तथा वसुओंके

लोकर्पे रहनेका सुअवसर सुलभ होता है । हाथी

तथा हष्ट-पुष्ट वैल दान करनेसे प्राणी स्वर्गमें

जाता है और वहाँ उसे कभी समाप्त न होनेवाला

दिव्य सुख-भोग प्राप्त होता है। घृतका दान

करनेसे तेज एवं सुकुमारता तथा तैलदानसे प्राणमें

स्फूर्तिं ओर शरीरम कोमलता उपलब्ध होती है।

शहद दान करनेसे प्राणी दूसरे जन्मे अनेक

प्रकारके रसोंसे सदा तृप्त रहता है । दीपक दान

करनेसे अन्धकारका कष्ट नहीं होता तथा खीर

दान करनेवाले व्यक्तिका शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है।

खिचड़ी दान करनेसे कोमलता और सौभाग्य प्राप्त

होता है। फल दान करनेवाला व्यक्ति पुत्रवान्‌ तथा

भाग्यशाली होता है। रथ दान करनेसे दिव्य विमान

तथा दर्पणोंका दान करनेसे प्राणी उत्तम भाग्य प्राप्त

करता है, इसमें कोई संशय नहीं। डरे हुए प्राणीको

अभय प्रदान करनेसे मनुष्यकी सभी कामनाएँ पूर्ण

हो जाती हैं। [अध्याय २०७]

[ -असफा:४०-० ०

* ज्ञानविज्ञानमारोग्य हूपसौभाग्यप्तम्पद: । तपसा प्राप्यो भोयो मनसा नोफदिश्यते॥

एवं प्राप्नोति पुण्येन मौनेनाजञों महामुने । उपभोगास्तु दमेव ब्रह्मचर्येण जीवितम्‌॥

अहिंसया पां रूप॑ दीक्षया कुलजन्म च । फलमूलाशिनो रण्यं स्वर्गः पर्णाशिनां भवेत्‌ ॥

चयोभक्ष्या दिवं यान्ति जायो द्रविणाकयता । गुरुशुदृषया तित्य॑ श्राद्धदानेन संततिः ॥

गवाधा: कालदीश्भिर्ये नु वा तृणजशायित्र: । स्वयं त्रिषवणाद्‌ ग्रह्म त्वपः पौत्वेष्टसोकभ्यक्‌ ॥ (२०७। ३८--४२)

कम॑विपाकका इसी प्रकारका परम सुन्दर वर्णन ब्रह्मपुराण अध्याय २१७ में भौ प्राप्त होता है ।

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