गणनाथ पराक्रम वर्णन | [ ३७१
होकर रण करने का उत्साह करते हैं ।१६। आपकी सामान्य भी आज्ञा
पाकर हम लोग सम्पूणं भवन का मर्दन करने में हुठ से समर्थ हैं । उस मुग्ध
भामिनी की तो बात ही क्या है। अर्थात वह बिचारी तारी हमारेःसामने
बहुत ही तुच्छ है ।२०। क्या हम सातों सागरों का चूष डालें अथवा समस्त
पर्वतो को खोदकर चूण कर देवे और इन तीनों भुवनों को उठाकर अधर
देवे । तात्पर्ये यह है कि हम असम्भव कार्य को भी आपके आदेश से कर
सकने की शक्ति रखते हैं ।२१।
छिनदाम सुरान्र्वान्भिनदाम तदालयान् ।
पिनषाम हरित्पालानाज्ञां देहि महामते ।२२
इत्य् दीरित माकर्ण्य महाहंकारगवितम् ।
उवाच वचनं क्रूद्धः प्रतिघारुणलोचनः ॥२३
विशुक्र भवता गत्वा मायांतहितवष्मंणा ।
जयविघ्नं महायन्त्रं कत्तव्य कटके द्विषाम् ।। २४
इति तस्य वचः श्रुत्वा विशुक्रो रोषरूषितः ।
मायातिरोहितवपुजंगाम ललिताबलम् ।।२५
तसिमन्प्रयातुमृदयृक्त सूर्योऽस्तं समूपागतः ।
पर्यस्तकिरणस्तोमपाटलीकृतदिङ्मुखः ।।२६
अनुरागवती संध्या प्रयातं भानुमालिनम् ।
अनुवत्राज पातालकुज्जे रंतुमिवोत्सुका ॥२७
बेगात्प्रपततो भानोर्देहसंगात्समुत्यिता: ।
चरमाग्धैरिव पयः-कणास्तारा बिरेजिरे ॥२८
हम समस्त सुरों को छेद डालेगे शोर उनके आलयों को तोड-फोड
डालेंगे । हम दिक्पाला को पोस डालेंगे । हे महामते ! आप हमको अपनी
आज्ञा भर दे दोजिए ।२२। इस महान अहुंकार गे युक्त वचन को सुनकर
लाल नेत्रों वाला भण्ड क्र्ुद्ध होकर बोला था ।२३। हे विशुक्र ! माया से
अपने वर्ष्म को छिपाकर आप वहाँ जाकर कटक में शत्न् ओों के जय के विघ्न
वाले महामन्त्र को करो ।२४। उसके इस वचन को श्रवण करके विशुक्र रोष
से भरगयाथा और माया से अपने शरीर को छिपाकर ललिता की सेना