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४५८ # संक्षिप्त शिवपुराण

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कारण इसे छूनेका साहस नहीं होता ।'

ज्राह्मणी जब इस प्रकार विचार कर

क्षत्रियोंने युद्धे पार डाल्ला है। उनकी पत्नी

अत्यन्त व्यप्न हो रातपें शीघ्रतापूर्वक अपने

रही शी, उस समय भक्तवत्सलः भगवान्‌ महलसे बाहर भाग आवी । उन्होंने यहाँ

अंकरने बड़ी कृपा की। बड़ी-बड़ी स्कील्ठाएँ

करनेवाले महेश्वर एक संन्यासीका रूप

श्रारण करके सहसा वहाँ आ पहुँचे, जहाँ बह

ज्राह्मणी संदेहमें पड़ी हुई थी और यथार्थ

खातकों जानना चाहती थी। श्रेष्ठ भिक्षुका

रूप धारण करके आये हुए करुणानिधान

जझिवने उससे हँैसकर कहा--'“ब्राह्मणी !

अपने चित्तये संदेह और खेदको स्थान न

कौ । यह घालक परम पवित्र है । तुम इसे

अपना ही पुत्र समझो और प्रेमपूर्वक इसका

पालन करो।'

ब्राह्मणी बोली--प्रभो ! आप मेरे

भाग्यसे ही यहाँ पधारे हैं। इसमें संदेह नहीं

कि मैं आपकी आज़ासे इस बालकका

अपने पुत्रकी ही भाँति पाखन-पोषण

करूँगी; तथापि मैं विज्ेषरूपसे यह जानना

चाहती ह कि वास्तवमें बह कौन है, किसका

पुत्र दै, ओर आप कौन हैं, जो इस समय

यहाँ पधारे है । भिक्षुबर ! मेरे मनमे आर-

बार यह जात आती है कि आप करुणासिन्धु

शिव ही हैं और यह वाल्क पूर्तजन्यमें

आपका चक्त रहा है। किसी कर्मदोषसे यह

इस दुरवस्थापें पड़ गया है। इसे भोगकर यह

पुनः आपकी कृपासे परम कल्याणका

आागी होगा। मैं भी आपकी सायासे ही

मोहित हो मार्ग भूलकर यहाँ आ गयी हूँ।

आपने ही इसके पालनके छिये घुझे यहाँ

भेजा है।

भिक्षु्रनर दिवे कहा--ब्राह्मणी !

सुनो, यह बालक दिवधक्त विदर्भराज

सत्यरथा पुत्र है। सत्यरथको शाल्यदेशीय

आकर इस बाल्कको जन दिया। सबेरा

होनेपर वे प्याससे पीड़ित हो सरोवरमें उतरी ।

उसी सपय दैववन्न एक ग्राहने आकर उन्हें

अपना आहार बना लिया ।

ब्राह्मणीनी पूछा--भिक्षुदेश ! क्या

कारण है कि इसके पिता राजा सत्यरथ श्रेष्ठ

ओोगॉंके उपभोगके समय जीचमें ही

द्वाल्लदेशीय शत्रुओंड्रारा मार डाले गये।

किस कारणसे इस शिशुक्री माताको ग्राहने

स्त्रा लिया ओर यह शिशु जो जन्मसे ही

अना और बन्धुहीन हो गया, इसका क्या

कारण है ? मेरा अपना पुत्र भी अत्यन्त दरिद्र

एवं भिक्षुक क्यो हुआ तथा मेरे इन दोनों

पुत्रोंकों भविष्यमें कैसे सुख प्राप्त होगा ?

भिक्षुवर्व रिष्ने कहा--इस

राजकुमारके पिता विदर्भराज पूर्वजन्ममें

पाण्दयदेझके श्रेष्ठ राजा धे । वे सव धर्मोकि

ज्ञातता थे और सम्पूर्ण पृथ्वीका धर्मपूर्वक

पालन करते थे । एक दिन प्रदोषकालमें राजा

भगवान्‌ शंकरका पूजन कर रहे थे और बड़ी

अक्तिसे. ब्रिलोकीनाथ

आराधनापें सेल थे। उसी सपय नगरप

सब ओर बड़ा भारी कोलाहल मचा । उस

उत्कट वाब्दको सुनकर राजाने बीकषमें ही

भगवान्‌ दौकरकी पूजा छोड़ दी और नगरमे

क्षोभ फैलनेकी आदाड्ासे राजभवनसे बाहर

निकल गये। इसी समय राजाका महाबली

मन्त्री झन्रुकों पकड़कर उनके समीप रहे

आया ! वह हाप्रु पाण्डयराजकरा ही सामन्त

था| उसे देखकर राजान क्रो धपूर्वक उसका

मस्तक कटवा दिया । दिवपूजा छोड़कर

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