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भगवान् शिवके भिक्षुवर्यावतारकी कथा, राजकुमार और द्विजकुमारपर कृपा
ऋदीक्वर कहते हैं--मुनिश्रेष्ठ ! अब तुम
भगवान् सम्भुके नारी-संदेहभक्ञक भिक्षु-
अवत्तारका वर्णन सुनो, जिसे उन्होंने अपने
प्यक्तपर दया करके ग्रहेण किया था । विदर्भं
दशमे सत्यरंथ नामसे प्रसिद्ध एक राजा थे,
जो थर्ममें तत्पर, सत्यश्ञीक और बड़े-बड़े
शिवभक्तोंसे भेम करनेवाले थे। धर्मपूर्तक
पृथ्वीका पान करते हुए उनका बहुत-सा
सपय सुखपूर्वक बीत गया । तदनन्तर किसी
सपय शाल्चदेश्तके राजाओंने उस राजाकी
राजधानीपर आक्रमण करके उसे चारों
ओरसे घेर लिया। बलल््लोन्मत्त झाल्वदेशीय
क्षत्रियोंके साथ, जिनके पास बहुत बड़ी सेना
थी, राजा सत्यरथका बड़ा भयंकर युद्ध
हुआ। झत्रुओंके साथ दारुण युद्ध करके
उनकी बड़ी भारी सेना नष्ट ह्ये गयी। फिर
दैवयोगसे राजा भी काल्वोकि हाथसे मारे
गये । उन नरेशके मारे जानेपर मरनेसे कचे
हुए सैनिक मन्त्रियोंसहित भयसे विद्धल हो
भाग खड़े हुए। मुने ! उस समय विदर्भराज
सत्यरथकी महारानी शाम्रुओंसे घिरी होनेपर
भी कोई प्रयत्न करके रातके समय अपने
नगरसे बाहर निकल गयीं । वे गर्भवती थीं;
अतः झोकसे संतप्त हो भगवान् दंकरके
चरणारविन्दोका चिन्तन करती हं वे धीरे-
धीरे पूर्वीदिशाकी ओर बहुत दूर चली गयीं ।
सवेरा होनेपर रानीने भगवान् शंकरकी
ख्यासे एक निर्मल सरोवर देखा। उस
समयतक ये बहत दूरका रास्ता तय कर
शुकी थीं। सरोवरके तटपर आकर वे
सुकुमारी रानी एक छयादार बृक्षके नीचे
यैठ गयीं । भाग्यक उसी निर्जन स्थानमें
चुश्चके नीचे ही रानीने उत्तम गुणोंसे युक्त
शुभ मुहूर्तमें एक दिष्य यालकको जन्म
दिया, जो सभी शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न था ।
दैववज् उस बात्प्ककी जननी महारानीकों
बड़े जोरक्री प्यास गी । ताज थे पानी पीनेके
लिये उस सरोवरमें उत्तरी । इतनेमें ही एक
बड़े भारी ग्राहने आकर रानीको अपना ग्रास
बना लिया । यह बालक पैदा होते ही माता-
पितासे हीन हो गया और भूख-प्याससे
पीड़ित हो उस तारकरे किनारे जोर-जोरसे
रोने लगा । इतनेपें ही उसपर कृपा करके
भगवान् सहेश्वर वहाँ आं गये और उस
शिशुक्की रक्षा करने लगे । उन्हींकी प्रेरणासे
एक ग्राह्मणी अकस्मात् वहाँ आ गयी । वह
विभवा थीं, घर-घर भीख माँगकर जीवन-
निवांह करती थी और अपने एक बर्षके
चार्कको गोदमें लिये हुए उस तास्तर्के
तटपर पहुँची थी । उसने एक अनाथ शिशुको
यहाँ करन्दन करते देखा । निर्जन वनमें उस
बआाछकको देखकर ब्राह्मणीको बड़ा विस्मय
हुआ और यह मन-ही-पन विचार करने
रूगी-- 'अडहो ! यह मुझे इस समय बड़े
आश्षर्यकी ब्रात दिखायी देती है कि यह
नवजात शिशु, जिसकी नाल भी अभीतक
नहीं कटी है, पृथ्वीपर पड़ा हुआ है। इसकी
माँ भी नहीं है। पिता आदि दूसरे कोई
सहायक भी यहा नहों दिखायी देते । क्या
कारण हो गद्या ? न जाने यह किसका पुत्र
है ? इसे जाननेवात्वा यहाँ कोई भी नहीं है,
जिससे इसके जन्मके विषयपें पूछू। इसे
देखकर मेरे हृदयमें करुणा उत्पन्न हो गयी है ।
सैं इस बाल्क्रका अपने औरस पुप्रकी भाँति
पालन-पोषण करना चाहती हूँ। परंतु इसके
कुछ और जन्प आदिका ज्ञान न होनेके