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पूर्वभाग-तृत्तीय पाद

अग्रभागमें बसुदेव-देवको, नन्द-यशोदा, बलभद्र-

सुभद्रा तथा गोप और गोपियोंका पूजन करें। इन

सबके मन, बुद्धि तथा नेत्र गोविन्दमें ही लगे हुए हैं।

दोनों पिता वसुदेव और नन्द क्रमशः पीत और पाण्डु

बर्णके हैं। माताएँ (देवकी ओर यशोदा) दिव्य हार,

दिव्य वस्त्र, दिव्याङ्गराग तथा दिव्य आधृषणोंसे

विभूषित है । दोनेनि चरु तथा खीरसे भरे हुए पात्र ले

रखे हैं। देवकीका रंग लाल है और यशोदाका श्याम ।

दोनेनि सुन्दर हार और मणिमय कुण्डलोंसे अपनेको

विभूषित किया ह । बलरामजी श्भ तथा चद्धमाके

समान गौरवर्णके है। वे मृसल और हल धारण करते

है । उनके श्रीअज्ञोंपर नीले रंगका वस्त्र सुशोभित होता

है। हलधरके एक कानमें कुण्डल शोभा पाता है।

भगवानूको जो श्यामला कला है, वही भद्रस्वरूपा

सुभद्रा है। उसके आभूषण भी भद्र (मङ्गल ) -रूप हैं।

सुभद्राजीके एक हाथमें वर और दूस अभय है। वे

पीताम्बर धारण करती है। गोपगणेकि हाथमें वेणु,

बौणा, सोनेकी छड़ी, श्व और सींग आदि है।

गोपियेंकि करकमलोंमें नाना प्रकारके खाद्य पदार्थ हैं।

इन सबके बाह्मभागमें मन्दार आदि कल्पवृक्षोकी पूजा

करे। मन्दार, सन्तान, पारिजात, कल्पवृक्ष और

हरिचन्दन (ये ही उन वृक्षोके नाम हैं)। उक्त पाँच

वृक्षोंसे चारकी चारों दिशाओंमें और एककी मध्यभागमें

पूजा करके उनके बाह्यभागमें इन्द्र आदि दिक्‍पालों

और उनके वद्र आदि अस्त्रॉकी पूजा करे। तत्पश्चात्‌

श्रीकृष्णफे आठ नामोंद्राग उनका यजन करना

चाहिये। वे नाम इस प्रकार हैं-कृष्ण, वासुदेव,

देवकीनन्दन, नारायण, यदुश्रेष्ठ, वार्ष्णय, धर्मपालक

तथा असुराक्रान्त-भूभारहारी । विद्वान्‌ पुरुषोंको सम्पूर्ण

कामनाओंकी प्राप्तिक लिये तथा संसार-सागरसे पार

होनेके लिये इन आवरणोंसहित असुरारि श्रीकृष्णकी

आराधना करनी चाहिये।

अब मैं भगवान्‌ श्रीकृष्णके त्रिकाल पूजनका

वर्णनं करता हूँ, जो समस्त मनोरथोंकी सिद्धि

प्रदान करनेवाला है।

प्रातःकालिक ध्यान

श्रीमदुद्यानसंवीतहेमभूरत्रमण्डपे ॥

लसत्कल्पट्रुमाधःस्थरल्राव्जपीठसंस्थितम्‌ ।

मूत्रामरत्नसंकाशं गुडल्िग्धालकं शिशुम्‌ ॥

चलत्कनककुण्डलोछछसितचारु गण्डस्थलं

सुघोणधरमद्धुतस्मितमुखाम्बुजं सुन्दरम्‌।

स्फुरद्विमलरत्रयुक्कनकसूत्रनर््ध दधत्‌-

सुवर्णपरिमण्डितं सुभगयपौण्डरीकं नखम्‌॥

ममुदधूसरोरःस्थले धेनुभूल्या

सुपुष्टाङ्गमष्टापदाकल्पदीषम्‌ ॥

कटीरस्थले चारुजङ्गान्तयुग्मं

पिनद्धं क्रणत्किङ्किणीजालदाप्ना ॥

हसद्न्धुजीवप्रसून -

प्रभापाणिपादाप्बुजोदारकान्त्या ।

करे दक्षिणे पायसानं

सुहैंगवीनं तथा वामहस्ते ॥

लसद्रोपगोपीगवां वृन्दमध्ये

हसन्तं

दधानं

स्थितं वासवाद्चैः सुरैरचिताडूप्रिम्‌।

पहीभारभूतामरारातियृथां -

स्ततः पूतनादीन्‌ निहन्तुं प्रवृत्तम्‌॥

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