२५२ # संक्षिप्त
जिवपुराण +
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खनलासी जोव तथा युक्ष आदि स्थावर प्राणी
स्मरण करते हुए रतिको आश्वासन दे इस
ब्रकार ओत्ले ।
देवताओंने कहा--तुम कामके
दारीरका थोड़ा-सा भस्म लेकर उसे
यलपूर्वकं रखो ओर भय छोड़ो । हम सबके
स्वामी महादेखजी काप्रदेवको पुनः जीवित
कर देंगे और तुम फिर अपने प्रियतमको
आप्त कर त्लोगी । कोई किसीको न तो सुख
देनेवाला है और न कोई दुःख ही वैनेजाला
है। सय स्लेग अपनी-अपनी करनीक्रा फल
भोगते हैं। तुम देवता अंको दोष देकर व्यर्थ
ही झोक करती हो ।
इस प्रकार रतिको आश्वासन दे सब
देखता भगवान् शिवके पास आये और उन्हें
कल्ा-- भयजन, ?
दारणागते-बत्सलः महेश्वर ! आप कृपा
करके हथारे इस शुभ वच्चनकों सुनिये ।
शकर ! आप कामदेवकी करतूतपर
भरत्वीभाँति प्रसन्नतापूलवंक चिचार कीजिये।
महेश्वर ¦! कामने जो यह कार्य किया है,
इसमें इश्रका कोई स्वार्थ नहीं श्वा । दृष्ठ
तारकासुरसे पीड़ित हुए हप स्त्व देक्ताओंने
मिलकर उससे यह काम कराया है। नाथ !
ककर ! इसे आप अन्यथा न समझें । सच
कुछ देनेधाले देव ! गिरीश ! सती-साध्वी
रति अकेली अति दुःग्री होकर विल्लाप कर
रही है। आप उसे प्ान्तवना प्रदान करें।
हौकर ! यदि इस क्रोधके द्वारा आपने
कामदेवको मार हात्वा तो हम यही समझेंगे
कि आप देकक्ताओसहित समस्त प्राणियॉका
अभी संहार कर डालना चाहते हैं। रक्तिका
दुःख देखकर देवता नष्ठप्राय हो रहे
हैं; इसलिये आपको रतिका शोक दूर कर
देना चाहिये।
देवताओंका यह ययन सुनकर भगवान्
शिव प्रसन्न हो उनसे इस प्रकार बोले ।
दविवने कहा--देवताओ ओर
ऋषियों ! तुम सब आदरपूर्चक मेरी बात
सुनो ॥ भरे क्रोभसे जो कुछ शो गया है, चह
तो अन्यधा नहीं हो सकता, तथापि रक्तिका
झाक्तिझाली सति कामदेव तेभीतक अनः
(क्ारीररदित ) रहेगा, जबतक रुविमणीपाति
श्रीकृष्णका श्वरत्तीपर अवतार नहीं हो जाता ।
जब श्रीकृष्ण द्वारकामें रहकर पुत्रोंकों उत्पन्न
करेंगे; तब ले रूक्सिणीके गर्भसे कामको
भनी जन्म देंगे। उस कामको ही नाम उप्त
सप्रय 'प्रह्मुन्र' होगा--इसमें संदाय नहीं है।
उस्म पुत्रके जन्य लेते ही शब्ब्रासुर उसे हर
केगा । हरणके पश्चात्त दानवशिरोमणि दाम्बर
उस शिशुको समुद्रम डाल देगा। फिर वह
मृ उसे मरा हुआ समझकर अपने नगरको
सटः जायगा। रते ! उस सपयतक तुष्हें
शाल्बरासुरके भगरपें सुस्यपूर्वक्क निवास
करना चाहिये। वहीं तुम्हें अपने पति
भ्रधुप्चकी आधप्रि होगी ! वहाँ तुयसे मिलकर
काम युद्धमे झम्बरासुरका कध करेगा
और सुखी होगा। देखताओ ! प्रद्युप्न-
नाम्धारी काम अपनी कामिनी रतिको तथा
ऋध्यरासुस्के धनको लेकर उसके साथ पुन:
नगरमे जायगा। ग्रेर यह कथन सर्वधा
सत्य होगा ।
ब्रह्माजी कहते हैं--नारद ! भगयान्
शिवयकी यह चात्र सुनकर देवताओंके चित्तमें